Thursday, September 19, 2024
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तुलसी चालीसा (Tulsi Chalisa pdf)

तुलसी चालीसा (Tulsi Chalisa Pdf) हिन्दू धर्म में माता तुलसी की स्तुति और पूजा के लिए एक महत्वपूर्ण पाठ है। तुलसी, जिसे पवित्र तुलसी (ऑसिमम टेनुइफ्लोरम) भी कहा जाता है, एक अत्यंत पूजनीय पौधा है और इसे देवी तुलसी का स्वरूप माना जाता है। तुलसी माता को स्वास्थ्य, शुद्धता, और धार्मिकता की देवी माना जाता है और उनके पौधे को घर में सुख-शांति और समृद्धि का प्रतीक समझा जाता है।

तुलसी माता का स्वरूप बहुत ही पवित्र और ममतामयी है। उन्हें भगवान विष्णु की प्रिय माना जाता है और उनके बिना कोई भी पूजा अधूरी मानी जाती है। तुलसी के पौधे का धार्मिक और आयुर्वेदिक महत्व भी अत्यधिक है, जिसमें अनेक रोगों के निवारण की शक्ति है।

तुलसी चालीसा 40 छंदों का एक संग्रह है, जिसमें माता तुलसी की महिमा, उनके गुणों और उनके आशीर्वाद का वर्णन किया गया है। इस चालीसा का पाठ भक्तों को मानसिक शांति, शुद्धता और स्वास्थ्य प्रदान करता है। माता तुलसी की कृपा से सभी प्रकार के पाप, रोग और कष्टों से मुक्ति मिलती है।

तुलसी चालीसा का नियमित पाठ करने से माता तुलसी की विशेष कृपा प्राप्त होती है। यह चालीसा विशेष रूप से तुलसी विवाह, एकादशी और अन्य पूजा अवसरों पर गायी जाती है। माता तुलसी की भक्ति से भक्तों को मानसिक और शारीरिक शांति मिलती है और वे जीवन में सफलता और समृद्धि की ओर अग्रसर होते हैं।


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|| तुलसी चालीसा ||

॥ दोहा ॥
जय जय  तुलसी भगवती सत्यवती सुखदानी ।
नमो नमो हरि प्रेयसी श्री वृन्दा गुन खानी ॥

श्री हरि शीश बिरजिनी, देहु अमर वर अम्ब ।
जनहित हे वृन्दावनी अब न करहु विलम्ब ॥

॥ चौपाई ॥
धन्य धन्य श्री तलसी माता ।
महिमा अगम सदा श्रुति गाता ॥

हरि के प्राणहु से तुम प्यारी ।
हरीहीँ हेतु कीन्हो तप भारी ॥

जब प्रसन्न है दर्शन दीन्ह्यो ।
तब कर जोरी विनय उस कीन्ह्यो ॥

हे भगवन्त कन्त मम होहू ।
दीन जानी जनि छाडाहू छोहु ॥ ४ ॥

सुनी लक्ष्मी  तुलसी की बानी ।
दीन्हो श्राप कध पर आनी ॥

उस अयोग्य वर मांगन हारी ।
होहू विटप तुम जड़ तनु धारी ॥

सुनी  तुलसी हीँ श्रप्यो तेहिं ठामा ।
करहु वास तुहू नीचन धामा ॥

दियो वचन हरि तब तत्काला ।
सुनहु सुमुखी जनि होहू बिहाला ॥ ८ ॥

समय पाई व्हौ रौ पाती तोरा ।
पुजिहौ आस वचन सत मोरा ॥

तब गोकुल मह गोप सुदामा ।
तासु भई तुलसी तू बामा ॥

कृष्ण रास लीला के माही ।
राधे शक्यो प्रेम लखी नाही ॥

दियो श्राप तुलसिह तत्काला ।
नर लोकही तुम जन्महु बाला ॥ १२ ॥

यो गोप वह दानव राजा ।
शङ्ख चुड नामक शिर ताजा ॥

 तुलसी भई तासु की नारी ।
परम सती गुण रूप अगारी ॥

अस द्वै कल्प बीत जब गयऊ ।
कल्प तृतीय जन्म तब भयऊ ॥

वृन्दा नाम भयो  तुलसी को ।
असुर जलन्धर नाम पति को ॥ १६ ॥

करि अति द्वन्द अतुल बलधामा ।
लीन्हा शंकर से संग्राम ॥

जब निज सैन्य सहित शिव हारे ।
मरही न तब हर हरिही पुकारे ॥

पतिव्रता वृन्दा थी नारी ।
कोऊ न सके पतिहि संहारी ॥

तब जलन्धर ही भेष बनाई ।
वृन्दा ढिग हरि पहुच्यो जाई ॥ २० ॥

शिव हित लही करि कपट प्रसंगा ।
कियो सतीत्व धर्म तोही भंगा ॥

भयो जलन्धर कर संहारा ।
सुनी उर शोक उपारा ॥

तिही क्षण दियो कपट हरि टारी ।
लखी वृन्दा दुःख गिरा उचारी ॥

जलन्धर जस हत्यो अभीता ।
सोई रावन तस हरिही सीता ॥ २४ ॥

अस प्रस्तर सम ह्रदय तुम्हारा ।
धर्म खण्डी मम पतिहि संहारा ॥

यही कारण लही श्राप हमारा ।
होवे तनु पाषाण तुम्हारा ॥

सुनी हरि तुरतहि वचन उचारे ।
दियो श्राप बिना विचारे ॥

लख्यो न निज करतूती पति को ।
छलन चह्यो जब पारवती को ॥ २८ ॥

जड़मति तुहु अस हो जड़रूपा ।
जग मह  तुलसी विटप अनूपा ॥

धग्व रूप हम शालिग्रामा ।
नदी गण्डकी बीच ललामा ॥

जो  तुलसी दल हमही चढ़ इहैं ।
सब सुख भोगी परम पद पईहै ॥

बिनु तुलसी हरि जलत शरीरा ।
अतिशय उठत शीश उर पीरा ॥ ३२ ॥

जो तुलसी दल हरि शिर धारत ।
सो सहस्त्र घट अमृत डारत ॥

तुलसी हरि मन रञ्जनी हारी ।
रोग दोष दुःख भंजनी हारी ॥

प्रेम सहित हरि भजन निरन्तर ।
तुलसी राधा में नाही अन्तर ॥

व्यन्जन हो छप्पनहु प्रकारा ।
बिनु तुलसी दल न हरीहि प्यारा ॥ ३६ ॥

सकल तीर्थ तुलसी तरु छाही ।
लहत मुक्ति जन संशय नाही ॥

कवि सुन्दर इक हरि गुण गावत ।
तुलसिहि निकट सहसगुण पावत ॥

बसत निकट दुर्बासा धामा ।
जो प्रयास ते पूर्व ललामा ॥

पाठ करहि जो नित नर नारी ।
होही सुख भाषहि त्रिपुरारी ॥ ४० ॥

॥ दोहा ॥
 तुलसी चालीसा पढ़ही  तुलसी तरु ग्रह धारी ।
दीपदान करि पुत्र फल पावही बन्ध्यहु नारी ॥

सकल दुःख दरिद्र हरि हार ह्वै परम प्रसन्न ।
आशिय धन जन लड़हि ग्रह बसही पूर्णा अत्र ॥

लाही अभिमत फल जगत मह लाही पूर्ण सब काम ।
जेई दल अर्पही तुलसी तंह सहस बसही हरीराम ॥

तुलसी महिमा नाम लख तुलसी सूत सुखराम ।
मानस चालीस रच्यो जग महं तुलसीदास ॥

|| Tulsi Chalisa pdf ||

॥ Doha ॥
jay jay Tulsi bhagavatee satyavatee sukhadaanee ॥
namo namo hari priyasee shree vrnda gun khaani ॥

shree hari aasheesh birajini, dehu amar var amb ॥
barbaadee he vrndaavanee ab na karahu vilaam ॥

॥ chaupaee ॥
dhany dhany shree talasee maata ॥
mahima agam sada shruti gata ॥

hari ke pranahu se tum priy ॥
harihin keenho tap bhaaree ॥

jab aakarshak hai darshan dinahyo ॥
tab kar joree vin us kinhyo ॥

he bhagavant kant mam hohoo ॥
deen jaani jaani chhadaahoo chhohu ॥ 4 ॥

aneeti lakshmee Tulsi kee vaanee ॥
deenho shraap kadh par aani ॥

vah antim var maangan haaree ॥
hohoo vitap tum jadatanu dhaaree ॥

seeta Tulsi heen sarpyo tehin thama ॥
karahu vaas tuhoo nindaan dhaama ॥

diyo vachan hari taba ॥
sunahu sumukhee jani hohoo bihaala ॥ 8 ॥

samay paee vhau raun rizort tora ॥
poojihau aas vachan sat mora ॥

tab gokul mah gop sudaama ॥
taasu bhee Tulsi too baama ॥

krshn raas leela ke maahee ॥
raadhe shakyo prem lakhee nahin ॥

diyo shraap Tulsisah aatuta ॥
nar lokahee tum janmahu baala ॥ 12 ॥

yo gop he daanav raaja ॥
shankh chud naamak sheer taaza ॥

Tulsi bhee taasu kee naaree ॥
param sati gun roop agaaree ॥

as davai kalp beet jab gayau ॥
kalp trteey janm tab bhayau ॥

vrnda naam bhayo Tulsi ko ॥
asur jalandhar naam pati ko ॥ 16 ॥

kari ati dvand atul baladhaama ॥
leena shankar sembaat ॥

jab nij sainy sahit shiv haare ॥
marahi na tab har harihi bulaay ॥

pativrata vrnda thee naaree ॥
kou na sake patihi sanhaari ॥

tab jaalandhar hee bhesh banaaya ॥
vrnda dhig hari pyaachyo jay ॥ 20 ॥

shiv hit lahi kari kapaat prasanga ॥
kiyo satitv dharm tohi bhanga ॥

bhayo jalandhar kar sanhaara ॥
ekata ur shok upaara ॥

tihi kshan diyo kapaat hari taari ॥
lakhee vrnda duhkh gir uchaaree ॥

jalandhar jas hatyo abheeta ॥
soi raavan tas harihi seeta ॥ 24 ॥

ees prastar samadharmee haridvaar ॥
dharm khandee mam patihi sanhaara ॥

yahee kaaran hai ki lahee shraap hamaara ॥
hove tanu paashaan gareeb ॥

ekaant hari turathi vachan uchaare ॥
diyo shraap bina vichaare ॥

lakshyo na nij karatooti pati ko ॥
chhalan chahyo jab paarvatee ko ॥ 28 ॥

jadamati tuhu as ho jadavataroopa ॥
jag mah Tulsi vitap soopa ॥

bhagavaan roop ham shaaligraam ॥
nadee gandakee beech laama ॥

jo Tulsi dal hamahee chadhe ihain ॥
sab sukh bhogee param pad paihai ॥

binu Tulsi hari jalat shareera ॥
atishay uthat sheesh ur peera ॥ 32 ॥

jo Tulsi dal hari shree dhaarat ॥
so sahastr ghat amrt daarat ॥

Tulsi hari man rajanee haaree ॥
rog dosh duhkh bhanjanee haaree ॥

prem hari sahit bhajan mool ॥
Tulsi mein raadha nahin antara ॥

vyanjan ho chhappanahu prakaara ॥
binu Tulsi dal na harihi pyaaree ॥ 36 ॥

sakal teerth Tulsi taru chaahee ॥
lahat mukti janasanshay nahin ॥

kavi sundar ik hari gun gaavat ॥
Tulsi hi nikat sahasagun paavat ॥

basat nikat durbaasa dhaama ॥
jo prayaas te poorv lalaama ॥

paath karahi jo nit nar naaree ॥
hohi sukh bhaashahi tripuraari ॥ 40 ॥

॥ Doha ॥
Tulsi Tulsi padhahee Tulsi taru grah dhaaree ॥
deepadaan kari putr phal paavahee bandhyaahu naaree ॥

sakal duhkh daridr hari har hvai param prasann ॥
aashiy dhan jan lahi grah basahi poorna atr ॥

laahi abhimat phal jagat mah laahi poorn sab kaam ॥
Tulsi dal arpahi Tulsi tanh sahas basahi hariraam ॥

Tulsi mahima naam laakh Tulsi sut sukharaam ॥
maanas chaaleesa rachyo jag mahan Tulsidas ॥


तुलसी चालीसा के लाभ

  1. भक्ति और श्रद्धा में वृद्धि: तुलसी चालीसा का पाठ करने से हमारी भक्ति और श्रद्धा में वृद्धि होती है। यह हमें ईश्वर के प्रति और उसकी सेवा में आग्रह प्रदान करता है।
  2. मन की शुद्धि: तुलसी चालीसा का पाठ करने से मानसिक और आध्यात्मिक शुद्धि होती है। यह हमारे मन को शांति और स्थिरता प्रदान करता है और नकारात्मकता से मुक्ति दिलाता है।
  3. स्वास्थ्य के लाभ: तुलसी चालीसा के पाठ से हमारे शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार होता है। तुलसी के गुण और उसके आयुर्वेदिक लाभ हमें रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि करते हैं।
  4. अशुभ प्रभावों से मुक्ति: तुलसी चालीसा का नियमित पाठ करने से बुरी आदतों, अशुभ प्रभावों और नकारात्मक शक्तियों से मुक्ति मिलती है। यह हमें सकारात्मक दिशा में ले जाता है और जीवन में समृद्धि की ओर प्रेरित करता है।
  5. परिवार में समरसता: तुलसी चालीसा का पाठ परिवार के बीच समरसता और शांति बनाए रखने में मदद करता है। यह परिवार के सदस्यों के बीच सम्मान, प्रेम और सहयोग की भावना को बढ़ाता है।
  6. कर्मयोगी बनाने में सहायक: तुलसी चालीसा का पाठ करने से हमारे कर्मयोगी जीवन को बढ़ावा मिलता है। यह हमें कर्मों में निष्काम भाव से कार्य करने की प्रेरणा देता है और समर्पण भाव से जीवन जीने में मदद करता है।
  7. आर्थिक समृद्धि: तुलसी चालीसा का पाठ करने से आर्थिक समृद्धि और लाभ प्राप्ति में सहायक मिलता है। यह हमें उत्तम विचारधारा और कर्मठता से आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है।
  8. धर्मिक उन्नति: तुलसी चालीसा का पाठ करने से हमारी धार्मिक उन्नति होती है। यह हमें धर्म के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता है और अच्छे कर्मों में लगने की प्रेरणा देता है।

ये थे कुछ मुख्य लाभ जो तुलसी चालीसा के पाठ से प्राप्त हो सकते हैं। इसे नियमित रूप से पाठ करने से हमारे जीवन में सकारात्मक परिवर्तन और उत्कृष्टता आ सकती है।

Hemlata
Hemlatahttps://www.chalisa-pdf.com
Ms. Hemlata is a prominent Indian author and spiritual writer known for her contributions to the realm of devotional literature. She is best recognized for her work on the "Chalisa", a series of devotional hymns dedicated to various Hindu deities. Her book, available on Chalisa PDF, has garnered widespread acclaim for its accessible presentation of these spiritual texts.
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