श्री यमुनाष्टक (Shri Yamunashtakam) एक प्राचीन और अत्यंत महत्वपूर्ण स्तोत्र है, जो श्री यमुना नदी की महिमा और उनके दिव्य स्वरूप का गुणगान करता है। इस स्तोत्र की रचना महाप्रभु वल्लभाचार्य ने की थी, जो वैष्णव सम्प्रदाय के प्रसिद्ध संत और आचार्य थे। वल्लभाचार्य जी ने भक्तों के लिए कई महत्वपूर्ण ग्रंथ और स्तोत्रों की रचना की है, जिनमें से श्री यमुनाष्टक विशेष स्थान रखता है। आप लक्ष्मी चालीसा के लिए क्लिक करें
श्री यमुनाष्टक में कुल आठ श्लोक होते हैं, जो यमुना देवी के विभिन्न रूपों, लीलाओं और महिमा का वर्णन करते हैं। इन श्लोकों के माध्यम से भक्त यमुना जी की कृपा प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। यह स्तोत्र भक्ति और श्रद्धा का प्रतीक है, और इसे सुनने या गाने से भक्तों के मन में शांति और संतोष की अनुभूति होती है। आप सरस्वती चालीसा के लिए क्लिक करें
यमुना नदी का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व अत्यंत उच्च है। हिन्दू धर्म में यमुना को एक पवित्र नदी माना जाता है, और इसके तट पर कई महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल स्थित हैं। यमुना जी का वर्णन विभिन्न पुराणों और धर्मग्रंथों में भी मिलता है। मान्यता है कि यमुना जी के जल में स्नान करने से पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
श्री यमुनाष्टक में यमुना जी की विभिन्न लीलाओं का उल्लेख किया गया है, जिनमें से प्रमुख हैं श्री कृष्ण के साथ उनकी लीलाएं। वल्लभाचार्य जी ने यमुना जी को श्री कृष्ण की प्रिय सखी के रूप में दर्शाया है और उनके माध्यम से भक्तों को भगवान श्री कृष्ण की कृपा प्राप्त करने का मार्ग बताया है। यमुना जी की महिमा का वर्णन करते हुए वल्लभाचार्य जी ने कहा है कि यमुना जी के जल में स्नान करने से भक्तों के सभी पाप धुल जाते हैं और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है।
श्री यमुनाष्टक का पाठ करने से व्यक्ति के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का आगमन होता है। यह स्तोत्र व्यक्ति को भक्ति मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता है और उसे ईश्वर के निकट ले जाने में सहायक होता है। यमुना जी की महिमा का गुणगान करते हुए वल्लभाचार्य जी ने कहा है कि यमुना जी के बिना श्री वृंदावन की महिमा अधूरी है। श्री यमुनाष्टक के माध्यम से भक्त यमुना जी की कृपा प्राप्त कर सकते हैं और अपने जीवन को पवित्र बना सकते हैं।
Download Shri Yamunashtakam Lyrics PDF
- हिंदी / संस्कृत
- English
|| श्री यमुनाष्टक ||
नमामि यमुनामहं सकल सिद्धि हेतुं मुदा
मुरारि पद पंकज स्फ़ुरदमन्द रेणुत्कटाम ।
तटस्थ नव कानन प्रकटमोद पुष्पाम्बुना
सुरासुरसुपूजित स्मरपितुः श्रियं बिभ्रतीम ॥१॥
कलिन्द गिरि मस्तके पतदमन्दपूरोज्ज्वला
विलासगमनोल्लसत्प्रकटगण्ड्शैलोन्न्ता ।
सघोषगति दन्तुरा समधिरूढदोलोत्तमा
मुकुन्दरतिवर्द्धिनी जयति पद्मबन्धोः सुता ॥२॥
भुवं भुवनपावनीमधिगतामनेकस्वनैः
प्रियाभिरिव सेवितां शुकमयूरहंसादिभिः ।
तरंगभुजकंकण प्रकटमुक्तिकावाकुका-
नितन्बतटसुन्दरीं नमत कृष्ण्तुर्यप्रियाम ॥३॥
अनन्तगुण भूषिते शिवविरंचिदेवस्तुते
घनाघननिभे सदा ध्रुवपराशराभीष्टदे ।
विशुद्ध मथुरातटे सकलगोपगोपीवृते
कृपाजलधिसंश्रिते मम मनः सुखं भावय ॥४॥
यया चरणपद्मजा मुररिपोः प्रियं भावुका
समागमनतो भवत्सकलसिद्धिदा सेवताम ।
तया सह्शतामियात्कमलजा सपत्नीवय-
हरिप्रियकलिन्दया मनसि मे सदा स्थीयताम ॥५॥
नमोस्तु यमुने सदा तव चरित्र मत्यद्भुतं
न जातु यमयातना भवति ते पयः पानतः ।
यमोपि भगिनीसुतान कथमुहन्ति दुष्टानपि
प्रियो भवति सेवनात्तव हरेर्यथा गोपिकाः ॥६॥
ममास्तु तव सन्निधौ तनुनवत्वमेतावता
न दुर्लभतमारतिर्मुररिपौ मुकुन्दप्रिये ।
अतोस्तु तव लालना सुरधुनी परं सुंगमा-
त्तवैव भुवि कीर्तिता न तु कदापि पुष्टिस्थितैः ॥७॥
स्तुति तव करोति कः कमलजासपत्नि प्रिये
हरेर्यदनुसेवया भवति सौख्यमामोक्षतः ।
इयं तव कथाधिका सकल गोपिका संगम-
स्मरश्रमजलाणुभिः सकल गात्रजैः संगमः ॥८॥
तवाष्टकमिदं मुदा पठति सूरसूते सदा
समस्तदुरितक्षयो भवति वै मुकुन्दे रतिः ।
तया सकलसिद्धयो मुररिपुश्च सन्तुष्यति
स्वभावविजयो भवेत वदति वल्लभः श्री हरेः ॥९॥
॥ इति श्री वल्लभाचार्य विरचितं यमुनाष्टकं सम्पूर्णम ॥
|| Shri Yamunashtakam Lyrics in English ||
Namaami Yamuna Maham, Sakal Sidhi Hetu Muda.
Murari Pad Pankaj, Sphurad Mand Renutkataam.
Tatastha Nav Kaanan Prakat Mod Pushpambuna.
Surasursu-Poojit Smarpitu Shreeyam Bibhrateem. [1]
Kalind-Giri-Mastake, Patdamand-Poorojwalaa.
Vilas-Gamanollasat, Prakat-Gand Shailonnattaa.
Saghosh Gati-Dantura, Samadhi-Roodh-Dolottammaa.
Mukund-Rati-Vardhini, Jayati Padmabandho-Sutaa. [2]
Bhuvam Bhuvan Paavani, Madhi-Gataa-Maneka Swane.
Priya-Bhiriv-Sevitaam, Shuk Mayur Hansadibhi.
Tarang-Bhuj Kankan, Prakat-Muktika-Valuka.
Nitamb-Tat-Sundareem, Namat Krushna-Turya-Priyaam. [3]
Anant-Gun-Bhooshite, Shiv-Viranchi-Dev Stute.
Ghanaa-Ghan-Nibhe-Sadaa, Dhruv-Paraasharaa-Bhishta-De.
Vishuddh-Mathura-Tate, Sakal Gop Gopi Vrite.
Kripa-Jaladhi-SanShreete, Mam Manah Sukham Bhaavay. [4]
Yayaa Charan Padmaja, Muraripoh Priyam Bhaavuka.
Samaa-Gamanato-Bhavat, Sakal Sidhida Sevtam.
Taya Sadrushtamiyat, Kamalja-Sapatneev Yat.
Hari-Priy-Kalindayaa, Manasi-Me Sadaa Stheeyataam. [5]
Namostu Yamune Sadaa, Tav Charitr-Matyadbhutam.
Na-Jaatu-Yam-Yaatna, Bhavati-Te-Payah-Paanatah.
Yamopi-Bhagini Sutaan, Kath-Muhanti-Dushtaanapi
Priyo-Bhavati Sevnaat, Tav Hareryathaa Gopika. [6]
Mamaastu Tav Sannidhau, Tanu Navatv-Metaavataa.
Na-Durlabhtamaa-Rati, Muraripau-Mukund-Priye.
Atostu-Tav-Laalna, Surdhuni Param Sangamaat.
Tavaiv Bhuvi Keertitaa, Na-Tu-Kadaapi Pushti-Sthithe. [7]
Stutim Tav Karoti Kah, Kamalja-Sapatni-Priye
Hareryadanu-Sevaya, Bhavati-Saukhya-Ma-Mokshatah.
Iyam Tav Kathaadhika, Sakal Gopikaa-Sangamah.
Smar-Shram Jalarubhih, Sakal Gatrajaih Sangamah. [8]
Tavaashtak-Midam-Mudaa, Pathati Surasoote Sadaa.
Samast Duritakshayo, Bhavati Vai Mukunde-Rati.
Tayaa Sakal Sidhayo, Murari-Pushch-Santushyati.
Swabhaav-Vijayo-Bhavet, Vadati Vallabhah Shree Hareh. [9]
॥ Iti Shree Vallabh veeraachaaryachitan yamunaashtakan sampoornam ॥
Yamunashtakam Video
Shri Yamunashtakam Benefits
श्री यमुनाष्टक के लाभ
श्री यमुनाष्टक एक अत्यंत पवित्र और लाभकारी स्तोत्र है, जिसे भगवान श्री वल्लभाचार्य द्वारा रचित किया गया है। इस स्तोत्र का पाठ और गायन भक्तों को आध्यात्मिक, मानसिक, और शारीरिक लाभ प्रदान करता है। यहाँ श्री यमुनाष्टक के प्रमुख लाभों का वर्णन किया गया है:
आध्यात्मिक शांति और मोक्ष की प्राप्ति
श्री यमुनाष्टक के नियमित पाठ से भक्तों के जीवन में आध्यात्मिक शांति और संतोष आता है। यमुना जी की महिमा का गुणगान करने से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है, जोकि हिन्दू धर्म में परम लक्ष्य माना गया है। यमुना जी के जल में स्नान करने और उनकी स्तुति करने से पापों का नाश होता है और आत्मा पवित्र होती है।
मानसिक शांति और तनावमुक्ति
श्री यमुनाष्टक के पाठ से मानसिक शांति और संतुलन प्राप्त होता है। यह स्तोत्र व्यक्ति के मन से तनाव, चिंता और नकारात्मक विचारों को दूर करता है। यमुना जी की महिमा का स्मरण करते हुए व्यक्ति को मानसिक शांति का अनुभव होता है, जो आज के व्यस्त जीवन में अत्यंत आवश्यक है।
शारीरिक स्वास्थ्य
यमुना जी के पवित्र जल का सेवन और स्नान करने से शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार होता है। यमुना जी के जल को अमृत समान माना गया है, जो शरीर को रोगमुक्त और स्वस्थ बनाता है। श्री यमुनाष्टक के पाठ से शरीर की ऊर्जा और शक्ति में वृद्धि होती है, जिससे व्यक्ति दिनभर ऊर्जावान और सक्रिय रहता है।
भक्ति और श्रद्धा में वृद्धि
श्री यमुनाष्टक का नियमित पाठ और गायन व्यक्ति के भक्ति और श्रद्धा को बढ़ाता है। यह स्तोत्र भक्तों को भगवान श्री कृष्ण और यमुना जी के प्रति अपने प्रेम और भक्ति को प्रकट करने का एक माध्यम प्रदान करता है। यमुना जी की महिमा का गुणगान करते हुए भक्तों का विश्वास और समर्पण और अधिक गहरा होता है।
सकारात्मक ऊर्जा और समृद्धि का आगमन
श्री यमुनाष्टक के पाठ से व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और समृद्धि का आगमन होता है। यह स्तोत्र व्यक्ति के जीवन में शुभता और समृद्धि लाता है। यमुना जी की कृपा से भक्तों के घर में सुख, शांति और समृद्धि का वास होता है।
पारिवारिक सद्भाव और एकता
श्री यमुनाष्टक का पाठ परिवार में सद्भाव और एकता को बढ़ावा देता है। इस स्तोत्र का गायन पूरे परिवार के साथ मिलकर करने से पारिवारिक बंधन मजबूत होते हैं और आपसी प्रेम और सहयोग में वृद्धि होती है।
धार्मिक और सांस्कृतिक समृद्धि
श्री यमुनाष्टक का पाठ धार्मिक और सांस्कृतिक समृद्धि को भी बढ़ावा देता है। यमुना जी की महिमा का स्मरण करते हुए व्यक्ति अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक जड़ों से जुड़ा रहता है, जिससे उसकी धार्मिक भावना और सांस्कृतिक पहचान मजबूत होती है।
अतः, श्री यमुनाष्टक का नियमित पाठ और गायन व्यक्ति के जीवन में आध्यात्मिक, मानसिक, और शारीरिक लाभ प्रदान करता है। यह स्तोत्र व्यक्ति के जीवन को पवित्र, शांत और समृद्ध बनाता है और उसे भक्ति मार्ग पर अग्रसर होने के लिए प्रेरित करता है।
यमुनाष्टक से संबंधित सामान्य प्रश्न (FAQs)
यमुनाष्टक किसकी रचना है?
यमुनाष्टक की रचना महाप्रभु वल्लभाचार्य जी ने की है।
यमुना किसकी बेटी है?
यमुना भगवान सूर्य की बेटी हैं। उन्हें सूर्यदेव की पुत्री के रूप में भी जाना जाता है।
यमुना जी किसकी पत्नी थी?
यमुना जी श्रीकृष्ण की पत्नी थीं।
यमुनाष्टकम किसने लिखा था?
यमुनाष्टकम की रचना महाप्रभु वल्लभाचार्य जी ने की थी।