साईं चालीसा (Sai Chalisa) एक भक्ति गीत है जो शिरडी के साईं बाबा पर आधारित है। यह चालीसा साईं बाबा के अद्भुत जीवन और उनकी अलौकिक शक्तियों का वर्णन करती है, जिसे साईं भक्तों द्वारा अत्यंत श्रद्धा और भक्ति के साथ गाया जाता है। साईं बाबा को एक ऐसे संत के रूप में माना जाता है जिन्होंने अपने जीवन में सभी धर्मों के लोगों को समान रूप से अपनाया और उन्हें सत्य, प्रेम, और करुणा का मार्ग दिखाया। आप यहां से साईं बाबा आरती भी पढ़ सकते हैं।
साईं चालीसा एक लोकप्रिय प्रार्थना है जो 102 छन्दों से बनी है। इन छन्दों में साईं बाबा के जीवन के विभिन्न पहलुओं का वर्णन किया गया है, जैसे कि उनकी दिव्य शिक्षाएँ, चमत्कारिक घटनाएँ, और उनके भक्तों के प्रति उनकी असीम करुणा। यह चालीसा न केवल साईं बाबा की महिमा का बखान करती है, बल्कि उनके चरणों में शरण लेने का माध्यम भी है।
साईं चालीसा का पाठ साईं भक्तों द्वारा नियमित रूप से किया जाता है, विशेष रूप से गुरुवार के दिन, जो साईं बाबा को समर्पित माना जाता है। इस चालीसा का पाठ करने से भक्तों को मानसिक शांति, जीवन में समृद्धि और साईं बाबा के आशीर्वाद की प्राप्ति होती है। कहा जाता है कि साईं बाबा के करीब आने और अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए इस चालीसा का पाठ अत्यंत प्रभावी होता है।
साईं चालीसा में साईं बाबा की जीवन यात्रा और उनके चमत्कारी कार्यों का उल्लेख मिलता है, जो भक्तों के लिए प्रेरणादायक होते हैं। इसमें बाबा के उपदेशों और उनके द्वारा दिए गए जीवन के आदर्शों को सरल और स्पष्ट भाषा में प्रस्तुत किया गया है, जिससे हर उम्र के लोग इसे आसानी से समझ और गा सकते हैं।
इस चालीसा के माध्यम से भक्त साईं बाबा से जुड़ाव महसूस करते हैं और उन्हें अपने जीवन की कठिनाइयों से मुक्ति पाने का मार्ग प्राप्त होता है। साईं चालीसा का पाठ करने से भक्तों के हृदय में श्रद्धा और विश्वास जागृत होता है, और वे साईं बाबा की दिव्यता का अनुभव करते हैं।
- हिन्दी
- English
|| साईं चालीसा ||
पहिले साईं के चरणों में,
अपान शीश नामौं मैं।
कैसे शिरडी साईं ऐ,
सारा हाला सुनौं मैं॥
माता कौन है, पिता कौन है,
ये ना किसी ने भी जाना।
कहाँ जन्म साईं ने धरा,
प्रश्न पहेली रहा बाना॥
कोई कहे अयोध्या के,
ये रामचन्द्र भगवान हैं।
कोई कहता साईं बाबा,
पवन पुत्र हनुमान हैं॥
कोई कहता मंगला मूर्ति,
श्री गजानंद हैं साईं।
कोई कहता गोकुल मोहना,
देवकी नंदना हैं साईं॥
शंकर समझे भक्त कै तो,
बाबा को भजते रहते।
कोई कहा अवतार दत्त का,
पूजा साईं की कराटे॥
कुछ भी मानो उनको तुमा,
पर साईं हैं सच्चे भगवाना।
बड़े दयालु दीनबंधु,
कितनोम को दिया जीवन दान॥
कै वर्षा पहेले की घटाना,
तुम्हें सुनूंगा में बता।
किसी भाग्यशाली की,
शिरडी में ऐ थी बाराता॥
आया साथा उसी के था,
बलाका एका बहुत सुंदरा।
अया, अकरा वहिन बसा गया,
पावना शिरडी किया नगारा॥
काई दिनो टका भटकाता,
भिक्षा मंगा उसेने दारा-दारा।
औरा दिखाई ऐसी लीला,
जग में जो हो गई अमारा॥
जैसे-जैसे अमारा उमरा बदी,
बढ़ती ही वैसी गै शाना।
घर-घर होने लगा नगर में,
साईं बाबा का गुणगान॥10॥
दिग-दिगंता में लगा गुंजने,
फिरा तो सैजी का नाम।
दीना-दुखी की रक्षा करना,
यहीं रहेगा बाबा का काम॥
बाबा के चरणो में जाकर,
जो कहता मैं हूं निर्धन।
दया उसी पर होती उनकी,
खुला जाते दुख के बंधना॥
कभी किसी ने मांगी भिक्षा,
दो बाबा मुझको संताना।
एवं अस्तु तब कहाकरा साई,
देते द उसको वरदाना॥
स्वयं दु:खी बाबा हो जाते,
दीना-दु:खी जन का लाखा हला।
अंतःकरण श्री साईं का,
सागर जैसा रहा विशाला॥
भक्त एक मद्रासी आया,
घर का बहुत बड़ा धनावना।
माला खजाना बेहड़ा उसका,
केवल नहीं रही संताना॥
लगा मनने साईनाथ को,
बाबा मुझ पर दया करो।
झांझ से झंकृता नैया को,
तुम्हीं मेरी पारा करो॥
कुलदीपक के बिना अँधेरा,
छाया हुआ घर में मेरे।
इसली अया हुन बाबा,
होकर शरणागत तेरे॥
कुलदीपक के आभा में,
व्यर्थ है दौलत की माया।
आजा भिखारी बनकारा बाबा,
शरण तुम्हारी में आया॥
दे दो मुझको पुत्र-दाना,
मैं रिनी रहूंगा जीवन भार।
औरा किसी की आस ना मुझको,
सिर्फ भरोसा है तुमा पारा॥
अनुनय-विनय बहुत की उसने,
चरणों में धरा के शीश।
तबा प्रसन्न होकर बाबा ने,
दिया भक्त को यहा आशीषा॥20॥
“अल्ला भला करेगा तेरा”,
पुत्र जन्म हो तेरे घर।
कृपा रहेगी तुझ परा उसकी,
आभा तेरे उसका बालक परा॥
अबा तका नहीं किसी ने पाया,
साईं की कृपा का पारा।
पुत्र रत्न दे मद्रासी को,
धन्य किया उसका संसार॥
तन-मन से जो भजे उसी का,
जग में होता है उद्धारा।
सांचा को आंच नहीं है कोई,
सदा जूठा की होती हारा॥
मैं हूं सदा सहारे उसे,
सदा रहूंगा उसका दासा।
साईं जैसा प्रभु मिला है,
इतना ही काम है क्या आसा॥
मेरा भी दिना था एका ऐसा,
मिलती नहीं मुझे रोटी।
ताना पारा कपड़ा दुरा रहा था,
शेष रही नन्हीं सी लंगोटी॥
सरिता सन्मुख होने पर भी,
मैं प्यासा का प्यासा था।
दुर्दिना मेरा मेरे उपरा,
दावाग्नि बरसता था॥
धरती के अतिरिकता जगत में,
मेरा कुछ अवलंब न था।
बना भिखारी मैं दुनिया में,
दारा-दारा ठोकर खाता था॥
ऐसे में एक मित्र मिला जो,
परम भक्त साईं का था।
जंजालों से मुक्ता मगरा,
जगती में वहा भी मुझसा था॥
बाबा के दर्शन की खातिर,
मिला दोनों ने किया विचारा।
साईं जैसी दया मूर्ति के,
दर्शन को हो गए तैयार॥
पावना शिरडी नगर में जाकारा,
देखा मतवली मुराति।
धन्य जन्म हो गया कि हमने,
जबा देखी साईं की सुरति॥30॥
जबा से किये हैं दर्शन हमने,
दुख सारा कफुरा हो गया।
संकटा सारे मिटाई आभा,
विपदाओं का अंत हो गया॥
मन औरा सम्मान मिला,
भिक्षा में हमको बाबा से।
प्रतिबिम्बिता हो उठे जगत में,
हमा साईं की आभा से॥
बाबा ने सम्मान दिया है,
मन दिया ईसा जीवन में।
इसाका ही संभाल ले में,
हंसता जाउंगा जीवन में॥
साईं की लीला का मेरे,
मन पर ऐसा आसरा हुआ।
लगता जगती के काना-काना में,
जैसा हो वहा भरा हुआ॥
“काशीराम” बाबा का भक्त,
शिर्डी में रहता था।
मैं साईं का साईं मेरा,
वाह दुनिया से कहता था॥
सीकर स्वयं वस्त्र बेचत,
ग्राम-नगर बजारो में।
झंकृता उसकी हृदय तंत्री थी,
साईं की झंकारों में॥
स्तब्ध निशा थी, द सोया,
रजनी आंचला में चंदा सितारे।
नहिं सूझता रहा हाथ को,
हठ तिमिरा के मारे॥
वस्त्र बेचाकरा लौटा रहा था,
हया! हटा से काशी।
विचित्र बड़ा संयोग कि उसका दिन,
अता था एककी॥
घेरा रहा में खड़े हो गए,
उपयोग कुटिला अन्याई।
मारो काटो लूटो इसाकी हि,
ध्वनि पदि सुनै॥
लुटा पिटाकरा उसे वहां से,
कुटिला गए चंपता हो।
अघाटों में मरमहता हो,
उसे दी थी संग्या खो॥40॥
बहुत देर तका पड़ा रहा वाहा,
वहिन उसी हालात में।
जेन काबा कुछ होशा हो उठ,
वहहिं उसकी पलक में॥
अनाजाने ही उसके मुँह से,
निकला पड़ा था सै।
जिसकी प्रतिध्वनि शिरडी में,
बाबा को पड़ी सुनाई॥
क्षुब्ध हो उठा मनसा उनाका,
बाबा गए विकल हो।
लगता जैसा घटाना सारी,
घटी उन्हीं के सन्मुख हो॥
उन्मादी से इधर-उधर तबा,
बाबा लेगे भटकने।
सन्मुख चिजें जो भी ऐ,
उनको लगाणे पटाकाने॥
औरा धड़काते अंगारो में,
बाबा ने अपना करा डाला।
हुए शशांकिता सभी वाहा,
लक्खा तांडवनृत्य निराला॥
समझ गए सबा लोगा,
कि कोई भक्त पदा संकटा में।
क्षुबिता खड़े थे सभी वहां,
पर हुए विस्मय में॥
बचने की ही खातिर इस्तेमाल करो,
बाबा आजा विकल है।
उसकी ही पीड़ा से पिरिता,
उनाका अन्तःस्थल है॥
इतने में ही विविधा ने अपनी,
विचित्रता दिखलाई।
लाख करा जिसे जनता की,
श्रद्धा सरिता लहराई॥
लेकरा संग्याहिना भक्त को,
गादी एका वाह आई।
सन्मुखा आपने देखा भक्त को,
साईं की आँखें भरी आई॥
शांता, धीरा, गंभीरा, सिंधु सा,
बाबा का अंतःस्थला।
अजा न जाने क्यों रहा-रहकरा,
हो जाता था चंचला॥50॥
अजा दया की मूर्ति स्वयं था,
बना हुआ उपचारी।
आभा भक्त के लिए आजा था,
देवा बना प्रतिहारी॥
अजा भक्ति की विषम परीक्षा में,
सफल हुआ काशी।
उसके ही दर्शन की खातिर थे,
उमादे नगर-निवासी॥
जबा भी औरा जहां भी कोई,
भक्त पड़े संकट में।
उसकी रक्षा करें बाबा,
अटे हैं पलभरा में॥
युग-युग का है सत्य यहाँ,
नहीं कोई नई कहानी।
अपतग्रस्ता भक्त जबा होता,
जते खुदा अंतर्यामी॥
भेद-भाव से परे पुजारी,
मानवता के थे साई।
जितने प्यारे हिंदू-मुस्लिमा,
उतने ही द सिक्ख इसाई॥
भेदा-भाव मंदिरा-मस्जिदा का,
तोड़ा-फोड़ा बाबा ने डाला।
रह रहीमा सभी उनाके थे,
कृष्ण करीमा अल्लाताला॥
घंटे की प्रतिध्वनि से गूंजा,
मस्जिद का कोना-कोना।
मिले परसपरा हिंदू-मुस्लिमा,
प्यारा बड़ा दीना-दीना दूना॥
चमत्कारा था कितना सुंदरा,
परिचय ईसा काया ने दी।
औरा नीमा कडुवहता में भी,
मिठासा बाबा ने भरा दी॥
सबा को स्नेह दिया साई ने,
सबको संतुला प्यारा किया।
जो कुछ भी चाहा,
बाबा ने उसे वही दिया॥
ऐसे स्नेहशील भजन का,
नाम सदा जो जप करे।
पर्वत जैसा दुःख न क्यों हो,
पलभरा में वहा दुरा तारे॥60॥
साईं जैसा दाता हमा,
अरे नहीं देखा कोई।
जिसे केवल दर्शन से ही,
सारी विपदा दूर गाई॥
तन में साईं, मन में साईं,
साईं साईं भजा करो।
अपने तन की सुधि-बुधि खोकारा,
सुधि उसकी तुम किया करो॥
जबा तू अपनी सुधि तजा,
बाबा की सुधि किया करेगा।
औरा राता-दीना बाबा-बाबा,
हाय तू राता करेगा॥
बाबा को हैं! विवाशा हो,
सुधि तेरी लेनी ही होगी।
तेरी हारा इच्छा बाबा को,
पूरी ही करनी होगी॥
जांगला, जगंला भटका ना पगला,
औरा ढूंढ़ने बाबा को।
एका जगह केवल शिरडी में,
तू पाएगा बाबा को॥
धन्य जगत में प्राणि है वाहा,
जिसने बाबा को पाया।
दुख में, सुख में प्रहार अथा हो,
साईं का ही गुण गया॥
गिरे संकटों के पर्वत,
चाहे बिजली ही टूटा पड़े।
साई का ले नाम सदा तुमा,
सन्मुख सबा के रहो अड़े॥
ईसा बुड्ढे की सुना करामाता,
तुम हो जाओगे हिराना।
दंगा रहा गाए सुनाकरा जिसे,
जेन कितने चतुर सुजाना॥
एका बड़ा शिरडी में साधु,
ढोंगी था कोई आया।
भोली-भाली नगर-निवासी,
जनता को था भरमाया॥
जदी, बुटियां उनकों ढिक्कारा,
करणे लगा वहा भाषाना।
कहने लगा सुनो श्रोतागण,
घर मेरा है वृन्दावन ॥70॥
औषधि मेरे पास एका है,
औरा अजाबा इसमें शक्ति।
इसे सेवन करने से ही,
हो जाति दुख से मुक्ति॥
अगर मुक्ता होना चाहो,
तुमा संकटा से बिमारी से।
तो है मेरा नम्र निवेदन,
हारा नारा से, हारा नारी से॥
लो खरिदा तुमा इसाको,
इसाकी सेवन विधियां हैं न्यारी।
यद्यपि तुच्च वस्तु है यहा,
गुण उसके हैं अति भारी॥
जो है संतति हिना यहां यादी,
मेरी औषधि को खाए।
पुत्र-रत्न हो प्राप्त,
अरे वाहा मुन्हा मंगा फल पाए॥
औषधि मेरी जो न खरीददे,
जीवन भर पछताएगा।
मुझे जैसा प्राण शायद हाय,
अरे यहां आ पाएगा॥
दुनिया दो दिनों का मेला है,
मौज शौक तुम भी करा लो।
अगर इसे मिलाता है, सबा कुछ,
तुम भी इसको ले लो॥
हेरानी बढती जनता की,
लाखा इसाकी करास्तानी।
प्रमुदिता वाह भी मन- हाय-मन था,
लाखा लोगों की नादानी॥
खबर सुनाने बाबा को याहा,
गया दौडाकर सेवक एका।
सुनकारा भृकुटि तानि आभा,
विस्मरण हो गया सभी विवेका॥
हुकमा दिया सेवका को,
सतवारा पकड़ा दुष्टा को लाओ।
या शिरडी की सीमा से,
कपटी को दूर भगाओ॥
मेरे रहते भोली-भाली,
शिरडी की जनता को।
कौन नीचा ऐसा जो,
सहसा करता है छलने को॥80॥
पलभरा में ऐसे ढोंगी,
कपति नीच लुटेरे को।
महानशा के महागर्ता में पहुंचा,
दुन जीवन भर को॥
तनिका मिला आभासा मदारी,
क्रुरा, कुटिला अन्ययी को।
काला नाचता है अबा सिरा पारा,
गुस्सा आया साईं को॥
पलभरा में सबा खेला बंदा कारा,
भागा सिरा पारा राखकरा पैरा।
सोचा रहा था मन ही मन,
भगवान नहीं है अब खैरा॥
सच्चा है साईं जैसा दानी,
मिला न बन सकेगा जग में।
अनशा ईशा का साईं बाबा,
उनको न कुछ भी मुश्किल जगा में॥
स्नेहा, शिला, सौजन्या आदि का,
आभूषण धारण करा।
बढ़ता ईसा दुनिया में जो भी,
मनवा सेवा के पाठ पारा॥
वही जीता लेता है जगती के,
जन जन का अंतःस्थल।
उसकी एका उदासी ही,
जगा को करा देती है विहवला॥
जबा-जबा जगा में भरा पापा का,
बढ़ा-बाधा ही जाता है।
प्रयोग मिटने की ही खातिर,
अवतारी ही आता है॥
पापा औरा अन्य सभी कुछ,
इस जगती का हारा के।
दुरा भागा देता दुनिया के,
दानवा को क्षण भर के॥
स्नेहा सुधा की धरा बरसाने,
लगती है इस दुनिया में।
गले परस्परा मिलाने लगते,
हैं जन जन अपसा में॥
ऐसे अवतारी साई,
मृत्युलोक में अकरा।
समता का यहा पथ पढ़ाय,
सबको अपान आपा मितकारा ॥90॥
नाम द्वारका मस्जिद का,
राखा शिरडी में साईं ने।
दापा, तप, संतपा मिटाया,
जो कुछ आया साईं ने॥
सदा यदा में मस्त राम की,
बैठे रहते थे साईं।
पहरा अथा ही राम नाम को,
भजते रहते थे साई॥
सुखी रुखी तजि बसि,
चाहे या होवे पकावना।
सौदा प्यारा के भूखे साईं की,
ख़तीरा द सभी समाना॥
स्नेहा आभा श्रद्धा से अपनी,
जाना जो कुछ दे जाते थे।
बड़े चावा से उसका भोजन को,
बाबा पावना कराते थे॥
कभी-कभी मन बहलाने को,
बाबा बागा में जाते थे।
प्रमुदिता मन में निरख प्रकृति,
छटा को वे होते थे॥
रंगा-बिरंगे पुष्प बागा के,
मंदा-मंदा हिला-डुला कराके।
बिहड़ा वीराने मन में भी,
स्नेह सलिला भर जाते थे॥
ऐसी समुधुरा बेला में भी,
दुखा अपटा, विपदा के मारे।
अपने मन की व्यथा सुनाने,
जाना रहते बाबा को घेरे॥
सुनकरा जिनकी करुणाकथा को,
नयना कमला भार अटे थे।
दे विभूति हारा व्यथा, शांति,
उनाके उरा में भार देते थे॥
जेन क्या अद्भुत शिक्षा,
उसकी विभूति में होती थी।
जो धारण कराटे मस्तका पारा,
दुख सारा हारा लेती थी॥
धन्य मनुज वे साक्षात् दर्शन,
जो बाबा साई के पाये।
धन्य कमला करा उनको जिनसे,
चरण-कमला वे परासाय॥100॥
कषा निर्भय तुमको भी,
साक्षात साई मिला जाता।
वर्षाें से उजड़ा चमन अपान,
फिरा से आजा खिला जाता॥
गारा पकड़ता में चरणा श्री के,
नहीं छोड़ता उमरभरा।
मन लेता में जरूरा उनको,
गारा रूठते सै मुझ परा॥
|| Sai Baba Chalisa Lyrics ||
Pahale Sai Ke Charanom Mein,
Apana Shisha Namaun Main।
Kaise Shirdi Sai Aye,
Sara Hala Sunaun Main॥
Kauna Hai Mata, Pita Kauna Hai,
Ye Na Kisi Ne Bhi Jana।
Kahan Janma Sai Ne Dhara,
Prashna Paheli Raha Bana॥
Koi Kahe Ayodhya Ke,
Ye Ramachandra Bhagawana Hain।
Koi Kahata Sai Baba,
Pavana Putra Hanumana Hain॥
Koi Kahata Mangala Murti,
Shri Gajananda Hain Sai।
Koi Kahata Gokula Mohana,
Devaki Nandana Hain Sai॥
Shankara Samajhe Bhakta Kai To,
Baba Ko Bhajate Rahate।
Koi Kaha Avatara Datta Ka,
Puja Sai Ki Karate॥
Kuchha Bhi Mano Unako Tuma,
Para Sai Hain Sachche Bhagawana।
Bade Dayalu Dinabandhu,
Kitanom Ko Diya Jivana Dana॥
Kai Varsha Pahale Ki Ghatana,
Tumhein Sunaunga Mein Bata।
Kisi Bhagyashali Ki,
Shirdi Mein Ai Thi Barata॥
Aya Satha Usi Ke Tha,
Balaka Eka Bahuta Sundara।
Aya, Akara Vahin Basa Gaya,
Pavana Shirdi Kiya Nagara॥
Kai Dino Taka Bhatakata,
Bhiksha Manga Usane Dara-Dara।
Aura Dikhai Aisi Lila,
Jaga Mein Jo Ho Gai Amara॥
Jaise-Jaise Amara Umara Badi,
Badhati Hi Vaise Gai Shana।
Ghara-Ghara Hone Laga Nagara Mein,
Sai Baba Ka Gunagana ॥10॥
Dig-Diganta Mein Laga Gunjane,
Phira To Saiji Ka Nama।
Dina-Dukhi Ki Raksha Karana,
Yahi Raha Baba Ka Kama॥
Baba Ke Charano Mein Jakar,
Jo Kahata Mein Hun Nirdhana।
Daya Usi Para Hoti Unaki,
Khula Jate Duhkha Ke Bandhana॥
Kabhi Kisi Ne Mangi Bhiksha,
Do Baba Mujhako Santana।
Evam Astu Taba Kahakara Sai,
Dete The Usako Varadana॥
Swayam Duhkhi Baba Ho Jate,
Dina-Duhkhi Jana Ka Lakha Hala।
Antahkarana Shri Sai Ka,
Sagara Jaisa Raha Vishala॥
Bhakta Eka Madrasi Aya,
Ghara Ka Bahuta Bada Dhanavana।
Mala Khajana Behada Usaka,
Kevala Nahin Rahi Santana॥
Laga Manane Sainatha Ko,
Baba Mujha Para Daya Karo।
Jhanjha Se Jhankrita Naiya Ko,
Tumhin Meri Para Karo॥
Kuladipaka Ke Bina Andhera,
Chhaya Hua Ghara Mein Mere।
Isalie Aya Hun Baba,
Hokara Sharanagata Tere॥
Kuladipaka Ke Abhava Mein,
Vyartha Hai Daulata Ki Maya।
Aja Bhikhari Banakara Baba,
Sharana Tumhari Mein Aya॥
De Do Mujhako Putra-Dana,
Mein Rini Rahunga Jivana Bhara।
Aura Kisi Ki Asa Na Mujako,
Sirpha Bharosa Hai Tuma Para॥
Anunaya-Vinaya Bahuta Ki Usane,
Charanon Mein Dhara Ke Shisha।
Taba Prasanna Hokara Baba Ne,
Diya Bhakta Ko Yaha Ashisha ॥20॥
“Alla Bhala Karega Tera”,
Putra Janma Ho Tere Ghara।
Kripa Rahegi Tujha Para Usaki,
Aura Tere Usa Balaka Para॥
Aba Taka Nahin Kisi Ne Paya,
Sai Ki Kripa Ka Para।
Putra Ratna De Madrasi Ko,
Dhanya Kiya Usaka Sansara॥
Tana-Mana Se Jo Bhaje Usi Ka,
Jaga Mein Hota Hai Uddhara।
Sancha Ko Ancha Nahin Hain Koi,
Sada Jutha Ki Hoti Hara॥
Main Hun Sada Sahare Usake,
Sada Rahunga Usaka Dasa।
Sai Jaisa Prabhu Mila Hai,
Itani Hi Kama Hai Kya Asa॥
Mera Bhi Dina Tha Eka Aisa,
Milati Nahin Mujhe Roti।
Tana Para Kapada Dura Raha Tha,
Shesha Rahi Nanhin Si Langoti॥
Sarita Sanmukha Hone Para Bhi,
Mein Pyasa Ka Pyasa Tha।
Durdina Mera Mere Upara,
Davagni Barasata Tha॥
Dharati Ke Atirikta Jagata Mein,
Mera Kuchha Avalamba Na Tha।
Bana Bhikhari Main Duniya Mein,
Dara-Dara Thokara Khata Tha॥
Aise Mein Eka Mitra Mila Jo,
Parama Bhakta Sai Ka Tha।
Janjalon Se Mukta Magara,
Jagati Mein Vaha Bhi Mujhasa Tha॥
Baba Ke Darshana Ki Khatira,
Mila Donon Ne Kiya Vichara।
Sai Jaise Daya Murti Ke,
Darshana Ko Ho Gaye Taiyara॥
Pavana Shirdi Nagara Mein Jakara,
Dekha Matavali Murati।
Dhanya Janma Ho Gaya Ki Hamane,
Jaba Dekhi Sai Ki Surati ॥30॥
Jaba Se Kiye Hai Darshana Hamane,
Duhkha Sara Kaphura Ho Gaya।
Sankata Sare Mitai Aura,
Vipadaon Ka Anta Ho Gaya॥
Mana Aura Sammana Mila,
Bhiksha Mein Hamako Baba Se।
Pratibimbita Ho Uthe Jagata Mein,
Hama Sai Ki Abha Se॥
Baba Ne Sammana Diya Hai,
Mana Diya Isa Jivana Mein।
Isaka Hi Sambala Le Mein,
Hansata Jaunga Jivana Mein॥
Sai Ki Lila Ka Mere,
Mana Para Aisa Asara Hua।
Lagata Jagati Ke Kana-Kana Mein,
Jaise Ho Vaha Bhara Hua॥
“Kashirama” Baba Ka Bhakta,
Shirdi Mein Rahata Tha।
Main Sai Ka Sai Mera,
Vaha Duniya Se Kahata Tha॥
Sikara Svayam Vastra Bechata,
Grama-Nagara Bajaro Mein।
Jhankrita Usaki Hridaya Tantri Thi,
Sai Ki Jhankaron Mein॥
Stabdha Nisha Thi, The Soya,
Rajani Anchala Men Chanda Sitare।
Nahin Sujhata Raha Hath Ko,
Hatha Timira Ke Mare॥
Vastra Bechakara Lauta Raha Tha,
Haya! Hata Se Kashi।
Vichitra Bada Sanyoga Ki Usa Dina,
Ata Tha Ekaki॥
Ghera Raha Mein Khade Ho Gaye,
Use Kutila Anyayi।
Maro Kato Luto Isaki Hi,
Dhvani Padi Sunai॥
Luta Pitakara Use Vahan Se,
Kutila Gaye Champata Ho।
Aghaton Me Marmahata Ho,
Usane Di Thi Sangya Kho ॥40॥
Bahuta Dera Taka Pada Raha Vaha,
Vahin Usi Halata Mein।
Jane Kaba Kuchha Hosha Ho Utha,
Vahin Usaki Palaka Mein॥
Anajane Hi Usake Muha Se,
Nikala Pada Tha Sai।
Jisaki Pratidhvani Shirdi Mein,
Baba Ko Padi Sunai॥
Kshubdha Ho Utha Manasa Unaka,
Baba Gaye Vikala Ho।
Lagata Jaise Ghatana Sari,
Ghati Unhi Ke Sanmukha Ho॥
Unmadi Se Idhara-Udhara Taba,
Baba Lege Bhatakane।
Sanmukha Chijein Jo Bhi Ai,
Unako Lagane Patakane॥
Aura Dhadhakate Angaro Mein,
Baba Ne Apana Kara Dala।
Huye Sashankita Sabhi Vaha,
Lakha Tandavanritya Nirala॥
Samajha Gaye Saba Loga,
Ki Koi Bhakta Pada Sankata Mein।
Kshubita Khade The Sabhi Vahan,
Para Huye Vismaya Mein॥
Use Bachane Ki Hi Khatira,
Baba Aja Vikala Hai।
Uski Hi Pida Se Pirita,
Unaka Antahasthala Hai॥
Itane Mein Hi Vividha Ne Apani,
Vichitrata Dikhalayi।
Lakha Kara Jisako Janata Ki,
Shraddha Sarita Laharai॥
Lekara Sangyahina Bhakta Ko,
Gadi Eka Vaha Ayi।
Sanmukha Apane Dekha Bhakta Ko,
Sai Ki Ankhein Bhara Ayi॥
Shanta, Dhira, Gambhira, Sindhu Sa,
Baba Ka Antahsthala।
Aja Na Jane Kyon Raha-Rahakara,
Ho Jata Tha Chanchala ॥50॥
Aja Daya Ki Murti Svayam Tha,
Bana Hua Upachari।
Aura Bhakta Ke Liye Aja Tha,
Deva Bana Pratihari॥
Aja Bhakti Ki Vishama Pariksha Mein,
Saphala Hua Tha Kashi।
Usake Hi Darshana Ki Khatira The,
Umade Nagara-Nivasi॥
Jaba Bhi Aura Jahan Bhi Koi,
Bhakta Pade Sankata Mein।
Usaki Raksha Karane Baba,
Ate Hain Palabhara Mein॥
Yuga-Yuga Ka Hai Satya Yaha,
Nahin Koi Nai Kahani।
Apatagrasta Bhakta Jaba Hota,
Jate Khuda Antaryami॥
Bheda-Bhava Se Pare Pujari,
Manavata Ke The Sai।
Jitane Pyare Hindu-Muslima,
Utane Hi The Sikkha Isai॥
Bheda-Bhava Mandira-Masjida Ka,
Toda-Phoda Baba Ne Dala।
Raha Rahima Sabhi Unake The,
Krishna Karima Allatala॥
Ghante Ki Pratidhvani Se Gunja,
Masjida Ka Kona-Kona।
Mile Paraspara Hindu-Muslima,
Pyara Bada Dina-Dina Duna॥
Chamatkara Tha Kitana Sundara,
Parichaya Isa Kaya Ne Di।
Aura Nima Kaduvahata Mein Bhi,
Mithasa Baba Ne Bhara Di॥
Saba Ko Sneha Diya Sai Ne,
Sabako Santula Pyara Kiya।
Jo Kuchha Jisane Bhi Chaha,
Baba Ne Usako Vahi Diya॥
Aise Snehashila Bhajana Ka,
Nama Sada Jo Japa Kare।
Parvata Jaisa Duhkha Na Kyon Ho,
Palabhara Mein Vaha Dura Tare ॥60॥
Sai Jaisa Data Hama,
Are Nahin Dekha Koi।
Jisake Kevala Darshana Se Hi,
Sari Vipada Dura Gai॥
Tana Mein Sai, Mana Mein Sai,
Sai Sai Bhaja Karo।
Apane Tana Ki Sudhi-Budhi Khokara,
Sudhi Usaki Tuma Kiya Karo॥
Jaba Tu Apani Sudhi Taja,
Baba Ki Sudhi Kiya Karega।
Aura Rata-Dina Baba-Baba,
Hi Tu Rata Karega॥
To Baba Ko Are! Vivasha Ho,
Sudhi Teri Leni Hi Hogi।
Teri Hara Ichchha Baba Ko,
Puri Hi Karani Hogi॥
Jangala, Jaganla Bhataka Na Pagala,
Aura Dhundhane Baba Ko।
Eka Jagaha Kevala Shirdi Mein,
Tu Paega Baba Ko॥
Dhanya Jagata Mein Prani Hai Vaha,
Jisane Baba Ko Paya।
Duhkha Mein, Sukha Mein Prahara Atha Ho,
Sai Ka Hi Guna Gaya॥
Gire Sankaton Ke Parvata,
Chahe Bijali Hi Tuta Pade।
Sai Ka Le Nama Sada Tuma,
Sanmukha Saba Ke Raho Ade॥
Isa Budhe Ki Suna Karamata,
Tuma Ho Jaoge Hairana।
Danga Raha Gae Sunakara Jisako,
Jane Kitane Chatura Sujana॥
Eka Bara Shirdi Mein Sadhu,
Dhongi Tha Koi Aya।
Bholi-Bhali Nagara-Nivasi,
Janata Ko Tha Bharamaya॥
Jadi, Butiyan Unhein Dhikhakara,
Karane Laga Vaha Bhashana।
Kahane Laga Suno Shrotagana,
Ghara Mera Hai Vrindavana ॥70॥
Aushadhi Mere Pasa Eka Hai,
Aura Ajaba Isamein Shakti।
Isake Sevana Karane Se Hi,
Ho Jati Duhkha Se Mukti॥
Agara Mukta Hona Chaho,
Tuma Sankata Se Bimari Se।
To Hai Mera Namra Nivedana,
Hara Nara Se, Hara Nari Se॥
Lo Kharida Tuma Isako,
Isaki Sevana Vidhiyan Hain Nyari।
Yadyapi Tuchchha Vastu Hai Yaha,
Guna Usake Hain Ati Bhari॥
Jo Hai Santati Hina Yahan Yadi,
Meri Aushadhi Ko Khae।
Putra-Ratna Ho Prapta,
Are Vaha Munha Manga Phala Pae॥
Aushadhi Meri Jo Na Kharide,
Jivana Bhara Pachhatayega।
Mujha Jaisa Prani Shayada Hi,
Are Yahan Aa Payega॥
Duniya Do Dinon Ka Mela Hai,
Mauja Shauka Tuma Bhi Kara Lo।
Agara Isase Milata Hai,
Saba Kuchha,Tuma Bhi Isako Le Lo॥
Hairani Badhati Janata Ki,
Lakha Isaki Karastani।
Pramudita Vaha Bhi Mana- Hi-Mana Tha,
Lakha Logon Ki Nadani॥
Khabara Sunane Baba Ko Yaha,
Gaya Daudakara Sevaka Eka।
Sunakara Bhrikuti Tani Aura,
Vismarana Ho Gaya Sabhi Viveka॥
Hukma Diya Sevaka Ko,
Satvara Pakada Dushta Ko Lao।
Ya Shirdi Ki Sima Se,
Kapati Ko Dura Bhagao॥
Mere Rahate Bholi-Bhali,
Shirdi Ki Janata Ko।
Kauna Nicha Aisa Jo,
Sahasa Karata Hai Chhalane Ko ॥80॥
Palabhara Mein Aise Dhongi,
Kapati Nicha Lutere Ko।
Mahanasha Ke Mahagarta Mein Pahuncha,
Dun Jivana Bhara Ko॥
Tanika Mila Abhasa Madari,
Krura, Kutila Anyayi Ko।
Kala Nachata Hai Aba Sira Para,
Gussa Aya Sai Ko॥
Palabhara Mein Saba Khela Banda Kara,
Bhaga Sira Para Rakhakara Paira।
Socha Raha Tha Mana Hi Mana,
Bhagawana Nahi Hai Aba Khaira॥
Sacha Hai Sai Jaisa Dani,
Mila Na Sakega Jaga Mein।
Ansha Isha Ka Sai Baba,
Unhein Na Kuchha Bhi Mushkila Jaga Mein॥
Sneha, Shila, Saujanya Adi Ka,
Abhushana Dharana Kara।
Badhata Isa Duniya Mein Jo Bhi,
Manava Seva Ke Patha Para॥
Vahi Jita Leta Hai Jagati Ke,
Jana Jana Ka Antahsthala।
Usaki Eka Udasi Hi,
Jaga Ko Kara Deti Hai Vihvala॥
Jaba-Jaba Jaga Mein Bhara Papa Ka,
Badha-Badha Hi Jata Hai।
Use Mitane Ki Hi Khatira,
Avatari Hi Ata Hai॥
Papa Aura Anyaya Sabhi Kuchha,
Isa Jagati Ka Hara Ke।
Dura Bhaga Deta Duniya Ke,
Danava Ko Kshana Bhara Ke॥
Sneha Sudha Ki Dhara Barasane,
Lagati Hai Isa Duniya Mein।
Gale Paraspara Milane Lagate,
Hain Jana Jana Apasa Mein॥
Aise Avatari Sai,
Mrityuloka Mein Akara।
Samata Ka Yaha Patha Padhaya,
Sabako Apana Apa Mitakara ॥90॥
Nama Dwaraka Masjida Ka,
Rakha Shirdi Mein Sai Ne।
Dapa, Tapa, Santapa Mitaya,
Jo Kuchha Aya Sai Ne॥
Sada Yada Mein Masta Rama Ki,
Baithe Rahate The Sai।
Pahara Atha Hi Rama Nama Ko,
Bhajate Rahate The Sai॥
Sukhi Rukhi Taji Basi,
Chahe Ya Hove Pakavana।
Sauda Pyara Ke Bhukhe Sai Ki,
Khatira The Sabhi Samana॥
Sneha Aura Shraddha Se Apani,
Jana Jo Kuchha De Jate The।
Bade Chava Se Usa Bhojana Ko,
Baba Pavana Karate The॥
Kabhi-Kabhi Mana Bahalane Ko,
Baba Baga Mein Jate The।
Pramudita Mana Mein Nirakha Prakriti,
Chhata Ko Ve Hote The॥
Ranga-Birange Pushpa Baga Ke,
Manda-Manda Hila-Dula Karake।
Bihada Virane Mana Mein Bhi,
Sneha Salila Bhara Jate The॥
Aisi Samudhura Bela Mein Bhi,
Dukha Apata, Vipada Ke Mare।
Apane Mana Ki Vyatha Sunane,
Jana Rahate Baba Ko Ghere॥
Sunakara Jinaki Karunakatha Ko,
Nayana Kamala Bhara Ate The।
De Vibhuti Hara Vyatha, Shanti,
Unake Ura Mein Bhara Dete The॥
Jane Kya Adbhuta Shikta,
Usa Vibhuti Mein Hoti Thi।
Jo Dharana Karate Mastaka Para,
Duhkha Sara Hara Leti Thi॥
Dhanya Manuja Ve Sakshat Darshana,
Jo Baba Sai Ke Paye।
Dhanya Kamala Kara Unake Jinase,
Charana-Kamala Ve Parasaye ॥100॥
Kasha Nirbhaya Tumako Bhi,
Sakshat Sai Mila Jata।
Varshon Se Ujada Chamana Apana,
Phira Se Aja Khila Jata॥
Gara Pakadata Mein Charana Shri Ke,
Nahin Chhodata Umrabhara।
Mana Leta Mein Jarura Unako,
Gara Ruthate Sai Mujha Para॥
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FAQs – साई चालीसा PDF | Sai Chalisa PDF |
साईं बाबा कौन से देवता हैं?
साईं बाबा का संबंध विशेष रूप से हिंदू और मुस्लिम धर्म दोनों से है। उन्हें एक संत और गुरु के रूप में पूजा जाता है। साईं बाबा को एक दिव्य शक्ति और आदर्श साधक के रूप में माना जाता है, जो लोगों को धार्मिक एकता और मानवता का संदेश देते हैं। उनकी शिक्षाएं मानवता, प्रेम और सेवा पर केंद्रित हैं। उनके भक्त उन्हें भगवान के रूप में मानते हैं, जबकि उनकी शिक्षाएं किसी एक धर्म की सीमाओं को पार करती हैं। इस प्रकार, साईं बाबा को विशेष रूप से एक ऐसे संत के रूप में देखा जाता है, जो विभिन्न धार्मिक परंपराओं को एकीकृत करता है और समाज में एकता और भाईचारे का प्रतीक है।
स्वामी साईं बाबा कौन हैं?
स्वामी साईं बाबा, जिनके नाम से भी जाना जाता है, एक प्रमुख भारतीय संत और गुरु हैं जिनका जीवन और शिक्षाएं हिन्दू और मुस्लिम धर्मों में समान रूप से सम्मानित हैं। वे शिर्डी के एक छोटे से गाँव में निवास करते थे और उनकी शिक्षाएं प्रेम, सेवा, और धार्मिक सहिष्णुता पर आधारित थीं। साईं बाबा का जीवन विशेष रूप से दिव्यता, अचंभे और चमत्कारों से भरा हुआ था, जो उनके अनुयायियों के लिए प्रेरणा का स्रोत है। उन्होंने अपने अनुयायियों को सिखाया कि सच्चा धर्म केवल पूजा तक सीमित नहीं है, बल्कि उसे अपने कर्मों और जीवनशैली में भी दिखाया जाना चाहिए।
साईं बाबा का असली नाम कौन है?
साईं बाबा का असली नाम विवादित है और इसके बारे में कई मत हैं। अधिकांश लोग मानते हैं कि उनका जन्म नाम ‘साईनाथ’ था, लेकिन उनका पूरा जन्म विवरण और नाम अस्पष्ट है। उन्होंने अपने जीवन के अधिकांश समय को शिर्डी में बिताया और वहाँ के लोग उन्हें ‘साईं बाबा’ के नाम से जानते हैं। उनके बारे में मौजूद विभिन्न खातों के अनुसार, कुछ लोग मानते हैं कि वे एक मुस्लिम परिवार से थे, जबकि अन्य मानते हैं कि उनका संबंध हिन्दू धर्म से था। इस प्रकार, साईं बाबा का असली नाम और उनका जन्म स्थान भी एक रहस्य बना हुआ है।
साईं बाबा को भगवान क्यों मानते हैं?
साईं बाबा को भगवान मानने का मुख्य कारण उनकी दिव्यता और उनकी शिक्षाओं की व्यापकता है। उन्होंने जीवन के हर पहलू में आदर्शता और समर्पण का उदाहरण प्रस्तुत किया। उनकी शिक्षाएं मानवता, प्रेम, और धार्मिक सहिष्णुता के सिद्धांतों पर आधारित थीं। भक्त उन्हें एक चमत्कारी शक्ति के रूप में मानते हैं जिन्होंने अनेक चमत्कार किए और लोगों की कठिनाइयों को दूर किया। साईं बाबा की भक्ति और उनके अनुयायियों का अटूट विश्वास उन्हें एक दिव्य शक्ति और भगवान के रूप में मानता है, जिन्होंने अपने जीवन के माध्यम से लोगों को सच्चे धर्म और प्रेम का संदेश दिया।
इस्लाम में साईं क्या है?
इस्लाम में ‘साईं’ शब्द का उपयोग आमतौर पर एक धार्मिक या आध्यात्मिक नेता के लिए किया जाता है। ‘साईं’ अरबी भाषा के शब्द ‘सईद’ से उत्पन्न हुआ है, जिसका अर्थ ‘खुशहाल’ या ‘धन्य’ होता है। इस्लाम में साईं बाबा का स्थान अलग है क्योंकि वे एक हिन्दू-मुस्लिम संत के रूप में प्रसिद्ध हैं। मुस्लिम समुदाय में साईं बाबा को एक सम्मानित धार्मिक व्यक्तित्व के रूप में माना जाता है, जिनकी शिक्षाएं और जीवन अन्य धर्मों के साथ समानता और सहिष्णुता का संदेश देती हैं। उनके अनुयायी उन्हें धार्मिक और आध्यात्मिक मार्गदर्शक के रूप में मानते हैं।
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Sai Chalisa | साई चालीसा | Shirdi Sai Baba
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साईं बाबा कौन से देवता हैं?
साईं बाबा का संबंध विशेष रूप से हिंदू और मुस्लिम धर्म दोनों से है। उन्हें एक संत और गुरु के रूप में पूजा जाता है। साईं बाबा को एक दिव्य शक्ति और आदर्श साधक के रूप में माना जाता है, जो लोगों को धार्मिक एकता और मानवता का संदेश देते हैं। उनकी शिक्षाएं मानवता, प्रेम और सेवा पर केंद्रित हैं। उनके भक्त उन्हें भगवान के रूप में मानते हैं, जबकि उनकी शिक्षाएं किसी एक धर्म की सीमाओं को पार करती हैं। इस प्रकार, साईं बाबा को विशेष रूप से एक ऐसे संत के रूप में देखा जाता है, जो विभिन्न धार्मिक परंपराओं को एकीकृत करता है और समाज में एकता और भाईचारे का प्रतीक है।
स्वामी साईं बाबा कौन हैं?
स्वामी साईं बाबा, जिनके नाम से भी जाना जाता है, एक प्रमुख भारतीय संत और गुरु हैं जिनका जीवन और शिक्षाएं हिन्दू और मुस्लिम धर्मों में समान रूप से सम्मानित हैं। वे शिर्डी के एक छोटे से गाँव में निवास करते थे और उनकी शिक्षाएं प्रेम, सेवा, और धार्मिक सहिष्णुता पर आधारित थीं। साईं बाबा का जीवन विशेष रूप से दिव्यता, अचंभे और चमत्कारों से भरा हुआ था, जो उनके अनुयायियों के लिए प्रेरणा का स्रोत है। उन्होंने अपने अनुयायियों को सिखाया कि सच्चा धर्म केवल पूजा तक सीमित नहीं है, बल्कि उसे अपने कर्मों और जीवनशैली में भी दिखाया जाना चाहिए।
साईं बाबा का असली नाम कौन है?
साईं बाबा का असली नाम विवादित है और इसके बारे में कई मत हैं। अधिकांश लोग मानते हैं कि उनका जन्म नाम ‘साईनाथ’ था, लेकिन उनका पूरा जन्म विवरण और नाम अस्पष्ट है। उन्होंने अपने जीवन के अधिकांश समय को शिर्डी में बिताया और वहाँ के लोग उन्हें ‘साईं बाबा’ के नाम से जानते हैं। उनके बारे में मौजूद विभिन्न खातों के अनुसार, कुछ लोग मानते हैं कि वे एक मुस्लिम परिवार से थे, जबकि अन्य मानते हैं कि उनका संबंध हिन्दू धर्म से था। इस प्रकार, साईं बाबा का असली नाम और उनका जन्म स्थान भी एक रहस्य बना हुआ है।
साईं बाबा को भगवान क्यों मानते हैं?
साईं बाबा को भगवान मानने का मुख्य कारण उनकी दिव्यता और उनकी शिक्षाओं की व्यापकता है। उन्होंने जीवन के हर पहलू में आदर्शता और समर्पण का उदाहरण प्रस्तुत किया। उनकी शिक्षाएं मानवता, प्रेम, और धार्मिक सहिष्णुता के सिद्धांतों पर आधारित थीं। भक्त उन्हें एक चमत्कारी शक्ति के रूप में मानते हैं जिन्होंने अनेक चमत्कार किए और लोगों की कठिनाइयों को दूर किया। साईं बाबा की भक्ति और उनके अनुयायियों का अटूट विश्वास उन्हें एक दिव्य शक्ति और भगवान के रूप में मानता है, जिन्होंने अपने जीवन के माध्यम से लोगों को सच्चे धर्म और प्रेम का संदेश दिया।
इस्लाम में साईं क्या है?
इस्लाम में ‘साईं’ शब्द का उपयोग आमतौर पर एक धार्मिक या आध्यात्मिक नेता के लिए किया जाता है। ‘साईं’ अरबी भाषा के शब्द ‘सईद’ से उत्पन्न हुआ है, जिसका अर्थ ‘खुशहाल’ या ‘धन्य’ होता है। इस्लाम में साईं बाबा का स्थान अलग है क्योंकि वे एक हिन्दू-मुस्लिम संत के रूप में प्रसिद्ध हैं। मुस्लिम समुदाय में साईं बाबा को एक सम्मानित धार्मिक व्यक्तित्व के रूप में माना जाता है, जिनकी शिक्षाएं और जीवन अन्य धर्मों के साथ समानता और सहिष्णुता का संदेश देती हैं। उनके अनुयायी उन्हें धार्मिक और आध्यात्मिक मार्गदर्शक के रूप में मानते हैं।
साईं बाबा की पूजा कौन करता है?
साईं बाबा की पूजा विभिन्न धर्मों और समुदायों के लोग करते हैं। उनकी शिक्षाएं हिन्दू और मुस्लिम दोनों धर्मों में समान रूप से स्वीकार की जाती हैं, इसलिए उनके भक्तों की विविधता भी बहुत बड़ी है। साईं बाबा के अनुयायी उन्हें एक दिव्य शक्ति और मार्गदर्शक मानते हैं और उनकी पूजा विभिन्न तरीकों से की जाती है, जैसे कि आरती, भजन, और पूजा अर्चना। उनकी पूजा न केवल भारत में बल्कि विश्व भर में की जाती है, जहां लोग उनकी शिक्षाओं और चमत्कारों से प्रेरित होकर उन्हें श्रद्धा और भक्ति से पूजते हैं।