Wednesday, November 20, 2024
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निर्वाण षटकम – Nirvana Shatakam PDF Hindi

निर्वाण षटकम (Nirvana Shatakam PDF) भारतीय संत परंपरा में आदिगुरु शंकराचार्य का नाम विशेष महत्व रखता है। वे अद्वैत वेदांत के महान आचार्य और भारतीय दर्शन के प्रमुख स्तंभ थे। उनके द्वारा रचित अनेक ग्रंथ और श्लोक संकलन आज भी साधकों के लिए प्रेरणास्रोत बने हुए हैं। इन्हीं महान कृतियों में से एक है निर्वाण षटकम्, जिसे आत्मज्ञान की दिशा में एक महत्वपूर्ण मार्गदर्शक के रूप में देखा जाता है। यह श्लोक संग्रह केवल छह श्लोकों का एक संकलन है, लेकिन इसके गहन अर्थ और प्रभाव को समझने के लिए एक साधक को समर्पण और अभ्यास की आवश्यकता होती है। यहां से आप बजरंग बाण भी पढ़ सकते हैं

निर्वाण षटकम् का अर्थ ही “निर्वाण के लिए छह श्लोक” है। यहां “निर्वाण” का तात्पर्य उस अंतिम स्थिति से है, जिसमें आत्मा को संपूर्ण मुक्ति मिलती है। यह श्लोक हमें यह समझने में मदद करता है कि वास्तविकता क्या है और हम कौन हैं। इसमें आत्मा की शाश्वतता, अद्वितीयता, और उसकी साक्षात अनुभूति को बड़े ही सरल और प्रभावशाली शब्दों में व्यक्त किया गया है। आप हमारी वेबसाइट में शिव चालीसा, शिव आरती और शिव अमृतवाणी भी पढ़ सकते हैं।

आदिगुरु शंकराचार्य का योगदान और निर्वाण षटकम् का महत्व

आदिगुरु शंकराचार्य ने भारतीय समाज में व्याप्त अज्ञानता, अंधविश्वास और भेदभाव को समाप्त करने के लिए अनेक प्रयास किए। उन्होंने अद्वैत वेदांत के सिद्धांतों का प्रचार-प्रसार किया और यह बताया कि आत्मा और परमात्मा में कोई भेद नहीं है। निर्वाण षटकम् उन्हीं के विचारों का साकार रूप है, जिसमें आत्मा के सत्य स्वरूप का बोध कराया गया है। यह श्लोक साधक को अपने असली अस्तित्व को पहचानने और सांसारिक बंधनों से मुक्त होने का मार्ग दिखाता है।

निर्वाण षटकम् के प्रत्येक श्लोक में आत्मा की विशिष्टता और उसकी अनंतता का वर्णन किया गया है। शंकराचार्य ने इन श्लोकों में अपने जीवन के अनुभवों और आत्मसाक्षात्कार को समाहित किया है। उन्होंने बताया है कि आत्मा न तो शरीर है, न इंद्रियाँ, और न ही मन। यह शुद्ध चेतना का रूप है, जो जन्म और मृत्यु से परे है। यह श्लोक हमें यह समझाता है कि हमारी वास्तविक पहचान शरीर या मन नहीं है, बल्कि हम उस शाश्वत चेतना के अंश हैं जो नष्ट नहीं हो सकती।

निर्वाण षटकम् की विशेषता

निर्वाण षटकम् की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसे साधक किसी भी समय, किसी भी अवस्था में पढ़ सकता है और इससे आत्मज्ञान की दिशा में प्रगति कर सकता है। इस श्लोक का नियमित पाठ करने से साधक के मन में शांति, स्थिरता और आत्मविश्वास का विकास होता है। यह श्लोक आत्मा की शाश्वतता और उसकी अजेयता को समझने में मदद करता है, जिससे साधक को सांसारिक दुखों से मुक्ति मिलती है।

निर्वाण षटकम् एक ऐसा श्लोक संग्रह है, जो केवल छह श्लोकों में आत्मा के ब्रह्म स्वरूप को प्रकट करता है। यह श्लोक हमें इस भौतिक संसार के पार जाकर आत्मा की वास्तविकता को समझने में मदद करता है। आदिगुरु शंकराचार्य ने इस श्लोक के माध्यम से यह बताया है कि आत्मा शुद्ध, अजर, अमर और अनंत है। इसका अध्ययन और जाप साधक को मानसिक और आत्मिक शांति प्रदान करता है और उसे मोक्ष की दिशा में अग्रसर करता है। निर्वाण षटकम् केवल एक श्लोक संग्रह नहीं, बल्कि एक साधना है, जो आत्मा को उसकी वास्तविकता से परिचित कराती है और उसे मुक्ति की ओर ले जाती है।

निर्वाण का अर्थ है “निराकार”।

निर्वाण षट्कम का संदर्भ इस बात से है कि – आप यह या वह नहीं बनना चाहते। यदि आप वास्तव में यह या वह नहीं बनना चाहते, तो फिर आप क्या बनना चाहते हैं? यह सवाल बहुत गहरा है और आपका मन इसे समझ नहीं सकता क्योंकि आपका मन हमेशा कुछ न कुछ बनना चाहता है, वह हमेशा किसी न किसी आकांक्षा या पहचान की ओर खिंचता है।

अगर मैं कहूं, “मैं यह नहीं बनना चाहता, मैं वह नहीं बनना चाहता,” तो आप सोच सकते हैं, “अरे, यह व्यक्ति तो किसी महान चीज़ के बारे में बात कर रहा है!” लेकिन ऐसा नहीं है, यह किसी महान चीज़ के बारे में नहीं है। फिर आप सोच सकते हैं, “अरे, तो क्या यह रिक्तता की बात हो रही है?” नहीं, यह रिक्तता की बात भी नहीं है। “क्या यह शून्यता की बात है?” नहीं, यह शून्यता की बात भी नहीं है।



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Nirvana Shatakam Lyrics in Hindi

|| निर्वाण षटकम ||

मनोबुद्ध्यहंकार चित्तानि नाहं
न च श्रोत्रजिह्वे न च घ्राणनेत्रे ।
न च व्योम भूमिर्न तेजो न वायुः
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ।। 1 ।।

न च प्राणसंज्ञो न वै पंचवायुः,
न वा सप्तधातुः न वा पञ्चकोशः ।
न वाक्पाणिपादौ न चोपस्थपायु,
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ।। 2 ।।

न मे द्वेषरागौ न मे लोभमोहौ,
मदो नैव मे नैव मात्सर्यभावः ।
न धर्मो न चार्थो न कामो न मोक्षः,
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ।। 3 ।।

न पुण्यं न पापं न सौख्यं न दुःखं,
न मन्त्रो न तीर्थो न वेदा न यज्ञ ।
अहं भोजनं नैव भोज्यं न भोक्ता,
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ।। 4 ।।

न मे मृत्युशंका न मे जातिभेदः,
पिता नैव मे नैव माता न जन्मः ।
न बन्धुर्न मित्रं गुरूर्नैव शिष्यः,
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ।। 5 ।।

अहं निर्विकल्पो निराकार रूपो,
विभुत्वाच सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणाम् ।
न चासङ्गतं नैव मुक्तिर्न मेयः,
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ।। 6 ।।

|| Nirvana Shatakam Lyrics ||

Mano buddhi ahankara chittani naaham
Na cha shrotravjihve na cha ghraana netre
Na cha vyoma bhumir na tejo na vaayuhu
Chidananda rupah shivo’ham shivo’ham

Na cha prana sangyo na vai pancha vayuhu
Na va sapta dhatur na va pancha koshah
Na vak pani-padam na chopastha payu
Chidananda rupah shivo’ham shivo’ham

Na me dvesha ragau na me lobha mohau
Na me vai mado naiva matsarya bhavaha
Na dharmo na chartho na kamo na mokshaha
Chidananda rupah shivo’ham shivo’ham

Na punyam na papam na saukhyam na duhkham
Na mantro na tirtham na veda na yajnah
Aham bhojanam naiva bhojyam na bhokta
Chidananda rupah shivo’ham shivo’ham

Na me mrtyu shanka na mejati bhedaha
Pita naiva me naiva mataa na janmaha
Na bandhur na mitram gurur naiva shishyaha
Chidananda rupah shivo’ham shivo’ham

Aham nirvikalpo nirakara rupo
Vibhut vatcha sarvatra sarvendriyanam
Na cha sangatham naiva muktir na meyaha
Chidananda rupah shivo’ham shivo’ham


Nirvana Shatakam Lyrics and Meaning

मनोबुद्ध्यहंकार चित्तानि नाहं
न च श्रोत्रजिह्वे न च घ्राणनेत्रे ।
न च व्योम भूमिर्न तेजो न वायुः
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ।। 1 ।।


मैं मन का कोई भी अंग नहीं हूँ, जैसे बुद्धि, अहंकार या स्मृति,
मैं सुनने, चखने, सूंघने या देखने की इन्द्रियाँ नहीं हूँ, मैं न तो आकाश हूँ,
न पृथ्वी, न अग्नि, न वायु, मैं तो चेतना और आनन्द का स्वरूप हूँ, शिव हूँ 

Mano buddhi ahankara chittani naaham
Na cha shrotravjihve na cha ghraana netre
Na cha vyoma bhumir na tejo na vaayuhu
Chidananda rupah shivo’ham shivo’ham


I am not any aspect of the mind like the intellect,
the ego or the memory,
I am not the organs of hearing, tasting, smelling or seeing,
I am not the space, nor the earth, nor fire, nor air,
I am the form of consciousness and bliss, am Shiva (that which is not)

न च प्राणसंज्ञो न वै पंचवायुः,
न वा सप्तधातुः न वा पञ्चकोशः ।
न वाक्पाणिपादौ न चोपस्थपायु,
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ।। 2 ।।


मैं प्राण नहीं हूँ, न ही पाँच प्राण वायु (प्राण की अभिव्यक्तियाँ) हूँ,
मैं सात आवश्यक तत्व नहीं हूँ, न ही शरीर के पाँच कोष हूँ,
मैं मुख, हाथ, पैर आदि शरीर के अंग भी नहीं हूँ,
मैं चेतना और आनन्द का स्वरूप हूँ, मैं शिव हूँ।

Na cha prana sangyo na vai pancha vayuhu
Na va sapta dhatur na va pancha koshah
Na vak pani-padam na chopastha payu
Chidananda rupah shivo’ham shivo’ham


I am not the Vital Life Energy (Prana),
nor the Five Vital Airs (manifestations of Prana),
I am not the seven essential ingredients nor the 5 sheaths of the body,
I am not any of the body parts, like the mouth, the hands, the feet, etc.,
I am the form of consciousness and bliss, I am Shiva.

न मे द्वेषरागौ न मे लोभमोहौ,
मदो नैव मे नैव मात्सर्यभावः ।
न धर्मो न चार्थो न कामो न मोक्षः,
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ।। 3 ।।


मुझमें न द्वेष है, न राग है, न लोभ है, न मोह है,
मुझमें न अभिमान है, न ईर्ष्या है, मैं अपने कर्तव्य,
धन, वासना या मोक्ष से तादात्म्य नहीं रखता,
मैं चैतन्य और आनंद का स्वरूप हूँ, मैं शिव हूँ।

Na me dvesha ragau na me lobha mohau
Na me vai mado naiva matsarya bhavaha
Na dharmo na chartho na kamo na mokshaha
Chidananda rupah shivo’ham shivo’ham


There is no hatred nor passion in me, no greed nor delusion,
There is no pride, nor jealousy in me,
I am not identified with my duty, wealth, lust or liberation,
I am the form of consciousness and bliss, I am Shiva.

न पुण्यं न पापं न सौख्यं न दुःखं,
न मन्त्रो न तीर्थो न वेदा न यज्ञ ।
अहं भोजनं नैव भोज्यं न भोक्ता,
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ।। 4 ।।


मैं न पुण्य हूँ, न पाप, न सुख हूँ, न दुःख, मुझे न मंत्रों की आवश्यकता है,
न तीर्थ, न शास्त्रों की, न अनुष्ठानों की, मैं अनुभव नहीं हूँ, अनुभव की वस्तु नहीं हूँ,
यहाँ तक कि अनुभव करने वाला भी नहीं हूँ, मैं चेतना और आनंद का स्वरूप हूँ, मैं शिव हूँ।

Na punyam na papam na saukhyam na duhkham
Na mantro na tirtham na veda na yajnah
Aham bhojanam naiva bhojyam na bhokta
Chidananda rupah shivo’ham shivo’ham


I am not virtue nor vice, not pleasure or pain,
I need no mantras, no pilgrimage, no scriptures or rituals,
I am not the experience, not the object of experience,
not even the one who experiences,
I am the form of consciousness and bliss, I am Shiva.

न मे मृत्युशंका न मे जातिभेदः,
पिता नैव मे नैव माता न जन्मः ।
न बन्धुर्न मित्रं गुरूर्नैव शिष्यः,
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ।। 5 ।।


मैं मृत्यु और उसके भय से बंधा नहीं हूँ, न जाति या पंथ से,
मेरा न कोई पिता है, न माता है, न जन्म है,
न मैं कोई सगा हूँ, न मित्र, न गुरु हूँ, न शिष्य,
मैं चैतन्य और आनंद का स्वरूप हूँ, शिव हूँ।

Na me mrtyu shanka na mejati bhedaha
Pita naiva me naiva mataa na janmaha
Na bandhur na mitram gurur naiva shishyaha
Chidananda rupah shivo’ham shivo’ham


I am not bound by death and its fear, not by caste or creed,
I have no father, nor mother, or even birth,
I am not a relative, nor a friend, nor a teacher nor a student,
I am the form of consciousness and bliss, am Shiva.

अहं निर्विकल्पो निराकार रूपो,
विभुत्वाच सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणाम् ।
न चासङ्गतं नैव मुक्तिर्न मेयः,
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ।। 6 ।।


मैं द्वैत से रहित हूँ, मेरा स्वरूप निराकार है, मैं सर्वव्यापी हूँ,
मैं सर्वत्र विद्यमान हूँ, सभी इन्द्रियों में व्याप्त हूँ, मैं न आसक्त हूँ,
न मुक्त हूँ, न सीमित हूँ, मैं चेतना और आनंद का स्वरूप हूँ, मैं शिव हूँ।

Aham nirvikalpo nirakara rupo
Vibhut vatcha sarvatra sarvendriyanam
Na cha sangatham naiva muktir na meyaha
Chidananda rupah shivo’ham shivo’ham


I am devoid of duality, my form is formlessness,
I am omnipresent, I exist everywhere, pervading all senses,
I am neither attached, neither free nor limited,
I am the form of consciousness and bliss, I am Shiva.


निर्वाण षटकम् आदिगुरु शंकराचार्य द्वारा रचित एक दिव्य श्लोक संग्रह है, जो आत्मज्ञान और मोक्ष की प्राप्ति की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह छह श्लोकों का संकलन है, जिसमें आत्मा की शाश्वतता और अद्वितीयता का गूढ़ बोध कराया गया है। इसका नियमित पाठ और अभ्यास साधक को कई महत्वपूर्ण लाभ प्रदान कर सकता है। यहां हम निर्वाण षटकम् के प्रमुख लाभों पर चर्चा करेंगे, जो आपके आत्मिक और मानसिक जीवन को परिवर्तित कर सकते हैं।

आत्मबोध की प्राप्ति

निर्वाण षटकम् का सबसे महत्वपूर्ण लाभ आत्मबोध की प्राप्ति है। यह श्लोक संग्रह साधक को उसके असली स्वरूप की पहचान कराता है। शंकराचार्य के शब्दों में, आत्मा न तो शरीर है, न मन, और न ही इंद्रियाँ। यह शुद्ध चेतना का रूप है जो अजर और अमर है। नियमित रूप से इस श्लोक का पाठ करने से साधक अपने वास्तविक स्वरूप को समझता है और इस पृथ्वी पर भौतिक अस्तित्व से परे जाता है। यह आत्मबोध उसे संसार के तात्कालिक सुख-दुख से परे ले जाता है।

मानसिक शांति और स्थिरता

निर्वाण षटकम् का जाप मानसिक शांति और स्थिरता प्राप्त करने में अत्यंत सहायक है। आज के समय में तनाव और चिंताओं का सामना करने के लिए मन को शांत और स्थिर रखना आवश्यक है। यह श्लोक मानसिक अशांति को दूर करता है और एक स्थिर, शांत मन की स्थिति प्रदान करता है। जब व्यक्ति अपने असली स्वरूप की पहचान कर लेता है, तो बाहरी परिस्थितियों का उसके मन पर प्रभाव कम हो जाता है। इससे वह मानसिक शांति और संतुलन को प्राप्त करता है।

आध्यात्मिक प्रगति और मोक्ष की प्राप्ति

निर्वाण षटकम् का नियमित अभ्यास साधक को आध्यात्मिक प्रगति की दिशा में अग्रसर करता है। यह श्लोक आत्मा की शाश्वतता और अद्वितीयता की सच्चाई को उजागर करता है, जिससे साधक के जीवन में आध्यात्मिक जागरूकता का विकास होता है। जब व्यक्ति अपने आत्मा के वास्तविक स्वरूप को जान लेता है, तो वह मोक्ष की प्राप्ति की ओर कदम बढ़ाता है। मोक्ष वह स्थिति है जिसमें आत्मा जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाती है और शाश्वत शांति प्राप्त करती है।

आत्मविश्वास और आंतरिक शक्ति

निर्वाण षटकम् का अध्ययन और जाप साधक में आत्मविश्वास और आंतरिक शक्ति का विकास करता है। जब व्यक्ति अपने वास्तविक स्वरूप और शक्ति को पहचानता है, तो वह बाहरी चुनौतियों का सामना अधिक साहस और आत्मविश्वास के साथ कर सकता है। यह श्लोक आत्मा की असीम शक्ति और ऊर्जा को उजागर करता है, जिससे व्यक्ति अपने जीवन में अधिक सशक्त और प्रेरित महसूस करता है।

सांसारिक बंधनों से मुक्ति

निर्वाण षटकम् साधक को सांसारिक बंधनों से मुक्त करने में सहायक है। जब व्यक्ति अपने आत्मा की शाश्वतता को समझता है, तो वह सांसारिक संपत्ति, सुख, और दुखों से परे देखना शुरू कर देता है। यह श्लोक साधक को यह सिखाता है कि वह इन भौतिक बंधनों से मुक्त होकर एक अधिक वास्तविक और आध्यात्मिक जीवन जी सकता है।

निर्वाण षटकम् एक अद्वितीय और शक्तिशाली श्लोक संग्रह है, जो आत्मज्ञान, मानसिक शांति, आध्यात्मिक प्रगति, आत्मविश्वास, और सांसारिक बंधनों से मुक्ति के लिए एक अमूल्य साधन है। इसके नियमित जाप और अध्ययन से साधक को जीवन के गहरे रहस्यों को समझने और मोक्ष की दिशा में अग्रसर होने में सहायता मिलती है। यह श्लोक संग्रह जीवन की जटिलताओं को सरलता और स्पष्टता के साथ समझाने में सक्षम है, और इसे अपनाने से जीवन में सच्चे सुख और शांति की प्राप्ति होती है।


Why is Nirvana Shatkam So Important?

निर्वाण षटकम का महत्व क्यों है?

निर्वाण षटकम, जिसे आत्म षटकम् भी कहा जाता है, महान संत आदि शंकराचार्य द्वारा रचित एक अत्यंत महत्वपूर्ण ग्रंथ है। यह छः श्लोकों का संग्रह आत्मा (आत्मन) की वास्तविकता और ब्रह्मा (परमात्मा) के साथ उसकी एकता को स्पष्ट करता है। यह ग्रंथ अद्वैत वेदांत के दार्शनिक सिद्धांतों को संक्षेप में प्रस्तुत करता है और आत्मा के शाश्वत स्वरूप की पहचान में सहायक होता है। इसके महत्व को समझने के लिए, हमें इसके दार्शनिक, आध्यात्मिक, और व्यावहारिक पहलुओं पर ध्यान देना होगा।

दार्शनिक महत्व

निर्वाण षटकम दार्शनिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह अद्वैत वेदांत के सिद्धांतों को संक्षेप में प्रस्तुत करता है। अद्वैत वेदांत एक ऐसा दर्शन है जो आत्मा और ब्रह्मा के बीच किसी भी भेद को नकारता है और दोनों को एक ही वास्तविकता मानता है। निर्वाण षटकम में आदि शंकराचार्य आत्मा के शाश्वत और अपरिवर्तनशील स्वरूप की पुष्टि करते हैं। श्लोकों में मन, बुद्धि, अहंकार, और इन्द्रियों के परे आत्मा की स्थिति को स्पष्ट किया गया है, जिससे यह सिद्ध होता है कि आत्मा भौतिक तत्वों और मानसिक अवस्थाओं से परे है। यह दार्शनिकता जीवन के तात्त्विक प्रश्नों के उत्तर देने में सहायक होती है और आत्मा की वास्तविकता को समझने में गहराई प्रदान करती है।

आध्यात्मिक महत्व

आध्यात्मिक दृष्टिकोण से, निर्वाण षटकम आत्मा की वास्तविकता की पहचान की ओर एक महत्वपूर्ण मार्गदर्शक है। यह श्लोक साधक को अपने अंदर के वास्तविक स्वभाव की पहचान करने के लिए प्रेरित करते हैं। ये श्लोक मन, बुद्धि, और इन्द्रियों से परे आत्मा की शाश्वतता को व्यक्त करते हैं और ध्यान केंद्रित करने के लिए एक माध्यम प्रदान करते हैं। आत्मा की पहचान करने से साधक भौतिक संसार की माया और भ्रम से मुक्त हो सकता है। निर्वाण षटकम साधक को आत्मा की शाश्वतता, पवित्रता, और पूर्णता की अनुभूति कराने में सहायक होता है, जो आध्यात्मिक उत्थान और आत्मज्ञान की ओर एक कदम बढ़ने में मदद करता है।

व्यावहारिक महत्व

निर्वाण षटकम के व्यावहारिक महत्व को भी अनदेखा नहीं किया जा सकता। इस ग्रंथ की शिक्षाएँ जीवन के विभिन्न पहलुओं पर प्रभाव डालती हैं और व्यक्ति को अपने जीवन में शांति और संतोष प्राप्त करने में सहायता करती हैं। यह ग्रंथ आत्मा की शाश्वतता और भौतिक संसार की अस्थिरता को समझने में मदद करता है, जिससे व्यक्ति अपने जीवन में वास्तविक सुख और शांति की खोज में सक्षम हो सकता है। निरvana षटकम् का अध्ययन करने से व्यक्ति को आत्मा की गहराई को समझने और उसकी वास्तविकता को पहचानने में सहायता मिलती है, जिससे वह अपनी जीवन की दिशा और उद्देश्य को स्पष्ट रूप से समझ सकता है।


When to Chant Nirvana Shatkam

निर्वाण षटकम (Nirvana Shatkam) का जाप कब करें?

निर्वाण षटकम, जिसे आत्म षटकम् भी कहा जाता है, महान संत आदि शंकराचार्य द्वारा रचित एक दिव्य ग्रंथ है जो आत्मा की शाश्वतता और ब्रह्मा के साथ उसकी अद्वितीयता को स्पष्ट करता है। इस ग्रंथ के छः श्लोक आत्मा के वास्तविक स्वरूप को प्रकट करते हैं और आध्यात्मिक साधना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हालांकि, निर्वाण षटकम का जाप करने का सही समय और स्थिति जानना भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। आइए जानते हैं कि निर्वाण षटकम का जाप कब और कैसे किया जाना चाहिए।

प्रातः काल (सुबह) के समय

साधना की शुरुआत प्रातः काल से करना सबसे शुभ माना जाता है। सुबह का समय शांति और ताजगी का होता है, जो ध्यान और जाप के लिए आदर्श है। निर्वाण षटकम का जाप प्रातः काल में करने से मन की स्थिति शांत रहती है और आत्मा के वास्तविक स्वरूप की पहचान में सहायता मिलती है। इस समय वातावरण भी स्वच्छ और शांत होता है, जिससे साधना की प्रभावशीलता बढ़ जाती है।

ध्यान और साधना के समय

यदि आप ध्यान और साधना की नियमित दिनचर्या में हैं, तो निर्वाण षटकम का जाप आपके ध्यान सत्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हो सकता है। ध्यान करने से पहले निर्वाण षटकम का जाप करने से मन को स्थिरता मिलती है और ध्यान में गहराई आती है। यह जाप आपकी साधना को एक नई दिशा और ऊर्जा प्रदान करता है, जिससे आत्मा की शाश्वतता की अनुभूति में सहायक होता है।

संकट या मानसिक तनाव के समय

जब आप मानसिक तनाव, चिंता, या जीवन में किसी संकट का सामना कर रहे हों, तब निर्वाण षटकम का जाप विशेष रूप से लाभकारी होता है। यह ग्रंथ आत्मा के शाश्वत स्वरूप की पहचान कराता है और भौतिक समस्याओं से परे देखने की दृष्टि प्रदान करता है। जाप के दौरान आत्मा की शाश्वतता की याद दिलाने से मानसिक शांति और स्थिरता प्राप्त होती है, जो संकट या तनाव को कम करने में मदद कर सकती है।

विशेष धार्मिक अवसरों और त्योहारों पर

धार्मिक अवसरों और त्योहारों पर निर्वाण षटकम का जाप करना भी शुभ माना जाता है। विशेष धार्मिक अवसरों पर जाप करने से आत्मा की शाश्वतता की भावना को और भी मजबूत किया जा सकता है। यह अवसर आपके आत्मिक विकास और आध्यात्मिक उन्नति के लिए एक विशेष अवसर प्रदान करता है।

उपासना और साधना के अंत में

यदि आप कोई विशेष उपासना या साधना कर रहे हैं, तो उसके अंत में निर्वाण षटकम का जाप करना अत्यंत लाभकारी होता है। साधना के अंत में यह जाप आपके प्रयासों की पूर्ति और आत्मा की शाश्वतता की साक्षात्कार में सहायता करता है। यह अंत में एक दिव्य संपूर्णता और संतोष प्रदान करता है।

संध्या काल (शाम) के समय

संध्या काल भी जाप के लिए एक आदर्श समय होता है, जब दिन की हलचल समाप्त हो चुकी होती है और रात की शांति शुरू होती है। इस समय निर्वाण षटकम का जाप करने से मन की स्थिति शांत रहती है और आत्मा की शाश्वतता की अनुभूति होती है। यह समय आपके दिन भर की ऊर्जा को शांत करने और आध्यात्मिक उन्नति के लिए उपयुक्त होता है।


What is the Nirvana Shatakam Mantra?

निर्वाण षटकम मंत्र क्या है?

निर्वाण षटकम (Nirvana Shatakam), जिसे अथर्वशीर्ष और शिव नंदन के नाम से भी जाना जाता है, एक अत्यंत महत्वपूर्ण संस्कृत ग्रंथ है जो अद्वैत वेदांत के सिद्धांतों को प्रकट करता है। यह श्लोकों का संग्रह शंकराचार्य द्वारा लिखा गया माना जाता है और इसमें छः प्रमुख श्लोक होते हैं। ये श्लोक आत्मा की वास्तविकता और उसके ब्रह्मा के साथ एकत्व की बात करते हैं।

निर्वाण षटकम में, शंकराचार्य ने आत्मा (आत्मन) की शाश्वतता, निराकारता, और अज्ञेयता को उजागर किया है। इन श्लोकों में आत्मा के तत्व को दर्शाते हुए कहा गया है कि आत्मा न तो जन्म लेती है, न ही मरती है, बल्कि यह सदा के लिए शाश्वत और अपरिवर्तनीय है। इसके अलावा, आत्मा को सभी भौतिक वस्तुओं, भावनाओं और मन की गतिविधियों से परे दिखाया गया है। यह स्पष्ट करता है कि आत्मा और ब्रह्मा (सर्वव्यापक शक्ति) एक ही हैं और इसलिए किसी भी भौतिक परिवर्तन का आत्मा पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।

मंत्र में आत्मा की पहचान की जाती है कि वह न तो किसी वस्त्र के रूप में है, न किसी ध्वनि के रूप में, न किसी इंद्रिय के रूप में, और न ही किसी मन के रूप में। इसके माध्यम से, साधकों को यह सिखाया जाता है कि आत्मा की असली पहचान स्वयं के भीतर है, और उसे बाहरी वस्त्रों या व्यक्तित्व से नहीं जोड़ा जा सकता। यह आत्मा के वास्तविक स्वरूप को समझने के लिए ध्यान और साधना की आवश्यकता पर बल देता है।

यह मंत्र आत्मज्ञान की खोज में एक महत्वपूर्ण साधन है और इसे अक्सर ध्यान और साधना के दौरान पढ़ा जाता है। यह आत्मा के अद्वितीयता और उसकी निराकारता को समझने के लिए एक गहरा दार्शनिक दृष्टिकोण प्रदान करता है, जो साधकों को आत्मा के वास्तविक स्वरूप को पहचानने में मदद करता है।


What is the Story Behind Nirvana Shatakam?

निर्वाण षटकम के पीछे की कहानी क्या है?

निर्वाण षटकम का निर्माण और इसके पीछे की कहानी एक दिलचस्प और प्रेरणादायक है। यह ग्रंथ भारतीय दर्शन और अद्वैत वेदांत के एक प्रमुख आचार्य शंकराचार्य द्वारा लिखा गया माना जाता है। शंकराचार्य का जीवन और उनके दर्शन ने भारतीय धार्मिक और दार्शनिक विचारधारा पर गहरा प्रभाव डाला।

कहानी के अनुसार, शंकराचार्य ने ध्यान और साधना के माध्यम से अद्वितीयता के अनुभव को प्राप्त किया। उन्होंने देखा कि आत्मा का वास्तविक स्वरूप सदा के लिए अपरिवर्तनीय और शाश्वत है, और यह सभी भौतिक और मानसिक अंशों से परे है। इस अद्वितीय अनुभव को साझा करने और अन्य साधकों को आत्मज्ञान की ओर मार्गदर्शन देने के लिए, शंकराचार्य ने निर्वाण षटकम लिखा।

इन श्लोकों में शंकराचार्य ने आत्मा के तत्व की गहराई से विश्लेषण किया और दर्शाया कि आत्मा न तो किसी वस्त्र के रूप में है, न किसी ध्वनि के रूप में, और न ही किसी इंद्रिय के रूप में। यह स्पष्ट करता है कि आत्मा का वास्तविक स्वरूप उन सभी भौतिक और मानसिक वस्तुओं से परे है, जो अक्सर हमारी पहचान का हिस्सा होती हैं।

शंकराचार्य का यह ग्रंथ साधकों को आत्मा की शाश्वतता और उसकी अद्वितीयता को समझने में मदद करता है। उन्होंने यह भी दिखाया कि मोक्ष प्राप्ति के लिए आत्मा के वास्तविक स्वरूप को जानना आवश्यक है, और यह केवल ध्यान और साधना के माध्यम से ही संभव है।

निर्वाण षटकम का अध्ययन और पाठ साधकों को आत्मा के गहन अनुभव की ओर प्रेरित करता है और यह आत्मा के अद्वितीयता और शाश्वतता को स्पष्ट करता है। इस प्रकार, यह ग्रंथ न केवल धार्मिक या दार्शनिक महत्व रखता है, बल्कि यह साधना और ध्यान के माध्यम से आत्मज्ञान प्राप्त करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण मार्गदर्शक भी है।


  • हिन्दी अर्थ
  • English Meaning

मनोबुद्ध्यहंकार चित्तानि नाहं
न च श्रोत्रजिह्वे न च घ्राणनेत्रे ।
न च व्योम भूमिर्न तेजो न वायुः
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ।। 1 ।।

अर्थ (Meaning):
मैं न तो मन हूं, न बुद्धि, न अहंकार, न ही चित्त हूं |
मैं न तो कान हूं, न जीभ, न नासिका, न ही नेत्र हूं |
मैं न तो आकाश हूं, न धरती, न अग्नि, न ही वायु हूं |
मैं तो शुद्ध चेतना हूं, अनादि, अनंत शिव हूं।

न च प्राणसंज्ञो न वै पंचवायुः,
न वा सप्तधातुः न वा पञ्चकोशः ।
न वाक्पाणिपादौ न चोपस्थपायु,
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ।। 2 ।।

अर्थ (Meaning):
मैं न प्राण हूं, न ही पंच वायु हूं |
मैं न सात धातु हूं, और न ही पांच कोश हूं |
मैं न वाणी हूं, न हाथ हूं, न पैर, न ही उत्‍सर्जन की इन्द्रियां हूं |
मैं तो शुद्ध चेतना हूं, अनादि, अनंत शिव हूं।

न मे द्वेषरागौ न मे लोभमोहौ,
मदो नैव मे नैव मात्सर्यभावः ।
न धर्मो न चार्थो न कामो न मोक्षः,
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ।। 3 ।।

अर्थ (Meaning):
न मुझे घृणा है, न लगाव है, न मुझे लोभ है, और न मोह |
न मुझे अभिमान है, न ईर्ष्या |
मैं धर्म, धन, काम एवं मोक्ष से परे हूं |
मैं तो शुद्ध चेतना हूं, अनादि, अनंत शिव हूं।

न पुण्यं न पापं न सौख्यं न दुःखं,
न मन्त्रो न तीर्थो न वेदा न यज्ञ ।
अहं भोजनं नैव भोज्यं न भोक्ता,
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ।। 4 ।।

अर्थ (Meaning):
मैं पुण्य, पाप, सुख और दुख से विलग हूं |
मैं न मंत्र हूं, न तीर्थ, न ज्ञान, न ही यज्ञ |
न मैं भोजन(भोगने की वस्‍तु) हूं, न ही भोग का अनुभव, और न ही भोक्ता हूं |
मैं तो शुद्ध चेतना हूं, अनादि, अनंत शिव हूं।

न मे मृत्युशंका न मे जातिभेदः,
पिता नैव मे नैव माता न जन्मः ।
न बन्धुर्न मित्रं गुरूर्नैव शिष्यः,
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ।। 5 ।।

अर्थ (Meaning):
न मुझे मृत्यु का डर है, न जाति का भेदभाव |
मेरा न कोई पिता है, न माता, न ही मैं कभी जन्मा था मेरा न कोई भाई है, न मित्र, न गुरू, न शिष्य, |
मैं तो शुद्ध चेतना हूं, अनादि, अनंत शिव हूं।

अहं निर्विकल्पो निराकार रूपो,
विभुत्वाच सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणाम् ।
न चासङ्गतं नैव मुक्तिर्न मेयः,
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ।। 6 ।।

अर्थ (Meaning):
मैं निर्विकल्प हूं, निराकार हूं |
मैं चैतन्‍य के रूप में सब जगह व्‍याप्‍त हूं, सभी इन्द्रियों में हूं |
न मुझे किसी चीज में आसक्ति है, न ही मैं उससे मुक्त हूं |
मैं तो शुद्ध चेतना हूं, अनादि‍, अनंत शिव हूं |

Mano buddhi ahankara chittani naaham
Na cha shrotravjihve na cha ghraana netre
Na cha vyoma bhumir na tejo na vaayuhu
Chidananda rupah shivo’ham shivo’ham

I am not any aspect of the mind like the intellect, the ego or the memory,
I am not the organs of hearing, tasting, smelling or seeing,
I am not the space, nor the earth, nor fire, nor air,
I am the form of consciousness and bliss, am Shiva (that which is not)…

Na cha prana sangyo na vai pancha vayuhu
Na va sapta dhatur na va pancha koshah
Na vak pani-padam na chopastha payu
Chidananda rupah shivo’ham shivo’ham

I am not the Vital Life Energy (Prana), nor the Five Vital Airs (manifestations of Prana),
I am not the seven essential ingredients nor the 5 sheaths of the body,
I am not any of the body parts, like the mouth, the hands, the feet, etc.,
I am the form of consciousness and bliss, I am Shiva (that which is not)…

Na me dvesha ragau na me lobha mohau
Na me vai mado naiva matsarya bhavaha
Na dharmo na chartho na kamo na mokshaha
Chidananda rupah shivo’ham shivo’ham

There is no hatred nor passion in me, no greed nor delusion,
There is no pride, nor jealousy in me,
I am not identified with my duty, wealth, lust or liberation,
I am the form of consciousness and bliss, I am Shiva (that which is not)…

Na punyam na papam na saukhyam na duhkham
Na mantro na tirtham na veda na yajnah
Aham bhojanam naiva bhojyam na bhokta
Chidananda rupah shivo’ham shivo’ham

I am not virtue nor vice, not pleasure or pain,
I need no mantras, no pilgrimage, no scriptures or rituals,
I am not the experience, not the object of experience, not even the one who experiences,
I am the form of consciousness and bliss, I am Shiva (that which is not)….

Na me mrtyu shanka na mejati bhedaha
Pita naiva me naiva mataa na janmaha
Na bandhur na mitram gurur naiva shishyaha
Chidananda rupah shivo’ham shivo’ham

I am not bound by death and its fear, not by caste or creed,
I have no father, nor mother, or even birth,
I am not a relative, nor a friend, nor a teacher nor a student,
I am the form of consciousness and bliss, am Shiva (that which is not)…

Aham nirvikalpo nirakara rupo
Vibhut vatcha sarvatra sarvendriyanam
Na cha sangatham naiva muktir na meyaha
Chidananda rupah shivo’ham shivo’ham

I am devoid of duality, my form is formlessness,
I am omnipresent, I exist everywhere, pervading all senses,
I am neither attached, neither free nor limited,
I am the form of consciousness and bliss, I am Shiva (that which is not)


1. निर्वाण षटकम का जप करने से क्या होता है?

निर्वाण षटकम का जप करने से साधक को कई लाभ मिलते हैं। यह श्लोक आत्मा की शाश्वतता और अद्वितीयता का बोध कराता है, जिससे व्यक्ति अपने असली स्वरूप को पहचानता है। इसके नियमित जाप से मानसिक शांति, स्थिरता, और आंतरिक शक्ति का विकास होता है। यह साधक को सांसारिक बंधनों से मुक्त करता है और आध्यात्मिक प्रगति की दिशा में अग्रसर करता है। इसके अलावा, यह आत्मज्ञान प्राप्त करने और मोक्ष की प्राप्ति में सहायक होता है।

2. क्या मैं निर्वाण षटकम का ध्यान कर सकता हूं?

हाँ, आप निर्वाण षटकम का ध्यान कर सकते हैं। ध्यान करते समय, श्लोक के अर्थ और भावनाओं को ध्यान में रखते हुए मन को शांत और एकाग्र करना महत्वपूर्ण है। निर्वाण षटकम का ध्यान करने से आत्मा की शाश्वतता और अद्वितीयता की समझ में वृद्धि होती है और यह मानसिक शांति और आध्यात्मिक जागरूकता को बढ़ावा देता है। ध्यान के दौरान, आप श्लोक के शब्दों और उनके अर्थ को अपने मन में गहराई से अनुभव कर सकते हैं।

3. निर्वाण षटकम किसने दिया था?

निर्वाण षटकम को आदिगुरु शंकराचार्य ने रचा था। आदिगुरु शंकराचार्य अद्वैत वेदांत के महान आचार्य थे और भारतीय दर्शन में उनका महत्वपूर्ण स्थान है। उन्होंने इस श्लोक संग्रह के माध्यम से आत्मा की शाश्वतता और अद्वितीयता को उजागर किया। उनके द्वारा रचित यह श्लोक संग्रह साधकों को आत्मज्ञान प्राप्त करने और मोक्ष की दिशा में अग्रसर होने में मदद करता है।

4. शक्तिशाली स्तोत्रम कौन सा है?

शक्तिशाली स्तोत्रम का चयन व्यक्ति की आध्यात्मिक आवश्यकताओं और रुचियों पर निर्भर करता है। हालांकि, शिव स्तोत्रम और हनुमान चालीसा को शक्तिशाली स्तोत्रों में माना जाता है। ये स्तोत्र साधक को मानसिक और आध्यात्मिक शक्ति प्रदान करते हैं और जीवन में कठिनाइयों का सामना करने में मदद करते हैं। इन स्तोत्रों के पाठ से आत्मशक्ति, सुरक्षा, और प्रेरणा प्राप्त होती है।

5. मंत्र में सबसे पवित्र ध्वनि कौन सी है?

मंत्रों में सबसे पवित्र ध्वनि “ॐ” (ओं) मानी जाती है। यह ध्वनि ब्रह्मा, विष्णु, और महेश्वर (शिव) के अद्वितीय रूप की प्रतीक है और इसे सृष्टि के सबसे मूल और पवित्र ध्वनि के रूप में देखा जाता है। “ॐ” की ध्वनि सभी ध्वनियों की उत्पत्ति और समापन का संकेत है और यह आध्यात्मिक जागरूकता और शांति प्राप्त करने के लिए महत्वपूर्ण है।

Hemlata
Hemlatahttps://www.chalisa-pdf.com
Ms. Hemlata is a prominent Indian author and spiritual writer known for her contributions to the realm of devotional literature. She is best recognized for her work on the "Chalisa", a series of devotional hymns dedicated to various Hindu deities. Her book, available on Chalisa PDF, has garnered widespread acclaim for its accessible presentation of these spiritual texts.
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