Wednesday, November 20, 2024
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List of 51 Shakti Peetha: 51 शक्तिपीठ जो माँ सती के शरीर के भिन्न-भिन्न अंगों के हैं प्रतीक

51 Shakti Peetha – माता सती ने अपने पिता दक्ष के यज्ञ में आत्मदाह कर लिया था, क्योंकि राजा दक्ष ने अपने पिता भगवान शिव को यज्ञ में से मना लिया था और यज्ञ भूमि पर शिव का अपमान किया था। यह अपमान माता सती के लिए असहनीय था। उन्होंने अपना जन निर्णय लिया और यज्ञ अग्नि में कूद पड़े। जब भगवान शिव को इस घटना का पता चला, तो उन्होंने अपने गण वीरभद्र को आदेश दिया कि वह इस अपमान का प्रतिशोध लें।

वीरभद्र ने केवल यज्ञ भूमि को नष्ट नहीं किया, बल्कि राजा दक्ष के सिर ने इसे भगवान शिव के चरण में रख दिया। इसके बाद, भगवान शिव ने माता सती की अर्धजली देह को यज्ञ भूमि से उठाया और सभी दिशाओं में गहन शोक प्रकट किया। इस दौरान जहां-जहां माता सती के अंग की महिमा हुई, वहां-वहां शक्तिपीठ की स्थापना हुई। अंततः माता सती ने पार्वती के रूप में पुनर्जन्म लिया।

विभिन्न ग्रंथों में शक्ति पृष्णों का उल्लेख किया गया है। देवी भागवत पुराण में शक्ति पिरों की संख्या 108 है, जबकि कालिकापुराण में 26, शिवचरित्र में 51 और दुर्गा शप्तसती तथा तंत्रचूड़ामणि में यह संख्या 52 बताई गई है। लेकिन सामान्यतः 51 शक्ति पीठों की व्याख्या दी जाती है। तंत्रचूड़ामणि में 52 शक्ति पिरोनो का वर्णन। ये सभी शक्तिपीठ देवी सती की शारीरिक चिकित्सा से जुड़ी हैं और बहुत महत्वपूर्ण हैं।

प्रस्तुत है विभिन्न राज्यों में स्थित 51 शक्ति पीठों की सूची, जो भक्त पूजन के लिए स्थलों पर जाते हैं। प्रत्येक शक्ति पीठ का एक विशिष्ट महत्व है, और भक्तगण यहां देवी मां से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। शक्ति पीठों की यात्रा धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है, क्योंकि यह साधक के आध्यात्मिक विकास के लिए आवश्यक है। ये शक्ति पीठ विभिन्न पौराणिक कथाओं से जुड़ी हुई हैं, जो हमारे धर्म और संस्कृति के अमूल्य मसाले हैं। आप यहां से लक्ष्मी चालीसा और धन-समृद्धि की कुंजी: कनकधारा स्तोत्र पढ़ सकते हैं!

List of 51 Shakti Peetha: 51 शक्तिपीठ

1. हिंगलाज

हिंगलाज शक्तिपीठ, जिसे हिंगुला भी कहा जाता है, पाकिस्तान के कराची से लगभग 125 किमी उत्तर-पूर्व दिशा में स्थित है। यह पवित्र स्थान मां सती के एक अंग का मंदिर है, जहाँ उनकी ब्रह्मरंध (सिर) गिरा था। हिंगलाज शक्तिपीठ का विशेष महत्व है और यह हिन्दू धर्म में एक प्रमुख तीर्थ स्थल के रूप में जाना जाता है।

यहां की देवी की शक्ति कोटरी के रूप में जानी जाती है, जिसे भैरवी-कोट्टवीशा कहा जाता है। भक्तों का मानना है कि यहां आने से वे मानसिक और आध्यात्मिक शांति प्राप्त कर सकते हैं। इसके अलावा, यहां का भैरव, जिसे भीमलोचन के नाम से जाना जाता है, की पूजा भी की जाती है।

हिंगलाज शक्तिपीठ एक प्राकृतिक गुफा में स्थित है, जहां श्रद्धालु दूर-दूर से आते हैं। यह स्थान न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि इसकी अद्भुत प्राकृतिक सुंदरता भी भक्तों को आकर्षित करती है। हिंगलाज शक्तिपीठ में हर साल मेला आयोजित होता है, जिसमें बड़ी संख्या में भक्त भाग लेते हैं। यह स्थान श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक है।

2. शर्कररे (करवीर)

शर्कररे शक्तिपीठ पाकिस्तान के कराची के सुक्कर स्टेशन के निकट स्थित है। यह एक प्रमुख धार्मिक स्थल है जहाँ माता की आँख गिरने की मान्यता है। यहाँ की शक्ति महिषासुरमर्दिनी मानी जाती है, जो दुर्गा के रूप में जानी जाती हैं। इस शक्तिपीठ के साथ भैरव को क्रोधिश के नाम से पूजा जाता है। इस स्थान पर श्रद्धालु अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए आते हैं और यहाँ की शक्ति का आशीर्वाद लेते हैं।

यह शक्तिपीठ उन श्रद्धालुओं के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है जो देवी दुर्गा की उपासना करते हैं। यहाँ के भक्त अपनी समस्याओं के समाधान के लिए विशेष रूप से आते हैं और माता की कृपा प्राप्त करने की प्रार्थना करते हैं। इस जगह की धार्मिक महत्वता न केवल स्थानीय लोगों के लिए है बल्कि दूर-दूर से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए भी यह एक विशेष आस्था का केंद्र है। शर्कररे शक्तिपीठ की भक्ति और श्रद्धा में डूबी पवित्रता इस स्थान को और भी दिव्य बनाती है। यहाँ का माहौल भक्ति और आस्था से भरा हुआ है।

3. सुगंधा- सुनंदा

बांग्लादेश के शिकारपुर में बरिसल से लगभग 20 किमी दूर सोंध नदी के किनारे स्थित माँ सुगंधा शक्तिपीठ एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है। यहाँ पर माता की नासिका गिरने की मान्यता है, जिसे लेकर भक्तगण यहाँ आते हैं। इस शक्तिपीठ की देवी की शक्ति सुनंदा के रूप में मानी जाती है और भैरव को त्र्यंबक कहा जाता है। यह स्थान भक्तों के लिए अत्यधिक श्रद्धा का केंद्र है, जहाँ वे अपनी समस्याओं का समाधान माँ से प्राप्त करने के लिए प्रार्थना करते हैं।

माँ सुगंधा का स्थान स्थानीय लोगों के लिए विशेष महत्व रखता है। यहाँ के भक्त अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए नियमित रूप से पूजा करते हैं। यह स्थल सिर्फ धार्मिकता का ही प्रतीक नहीं है, बल्कि यहाँ की प्राकृतिक सुंदरता भी लोगों को आकर्षित करती है। भक्तगण यहाँ आने के बाद अपनी आत्मा की शांति के लिए ध्यान और साधना करते हैं। माँ सुगंधा की पूजा अर्चना में हर प्रकार की भक्ति और श्रद्धा का समावेश होता है, जो इस स्थान को और भी पवित्र बनाता है। यहाँ का माहौल शांत और मनमोहक है, जो भक्तों को एक अलग ही अनुभव प्रदान करता है।

4. कश्मीर- महामाया

भारत के कश्मीर में पहलगाँव के निकट स्थित महामाया शक्तिपीठ एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है। यहाँ पर माता का कंठ गिरने की मान्यता है, जो इस स्थान को और भी खास बनाती है। महामाया की शक्ति को भक्तगण अत्यंत श्रद्धा से मानते हैं और भैरव को त्रिसंध्येश्वर कहा जाता है। यह स्थल न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि प्राकृतिक सुंदरता के लिए भी प्रसिद्ध है, जहाँ श्रद्धालु अपने मन की शांति और सामर्थ्य की प्राप्ति के लिए आते हैं।

महामाया शक्तिपीठ का धार्मिक महत्व बहुत गहरा है। यहाँ की पूजा अर्चना में भक्त अपनी समस्याओं का समाधान माँ से मांगते हैं। माता की कृपा से भक्त अपने जीवन में आने वाली कठिनाइयों को पार कर पाते हैं। इस शक्तिपीठ के आस-पास की वादियाँ और पर्वत दृश्य श्रद्धालुओं को मंत्रमुग्ध कर देते हैं। यहाँ का शांत वातावरण और देवी की उपासना के लिए समर्पित भावनाएँ भक्तों को एक नई ऊर्जा देती हैं। महामाया का स्थान कश्मीर की सांस्कृतिक धरोहर का भी एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो यहाँ आने वाले श्रद्धालुओं के लिए प्रेरणा स्रोत बनता है।

5. ज्वालामुखी- सिद्धिदा (अंबिका)

भारत के हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में स्थित ज्वालामुखी शक्तिपीठ एक प्रमुख धार्मिक स्थल है। यहाँ पर माता की जीभ गिरने की मान्यता है, जिससे यह स्थान अत्यधिक महत्वपूर्ण बन जाता है। इस शक्तिपीठ की देवी सिद्धिदा (अंबिका) के रूप में पूजी जाती है और भैरव को उन्मत्त कहा जाता है। ज्वालामुखी का यह स्थान अपनी धार्मिक और आध्यात्मिक विशेषताओं के लिए जाना जाता है, जहाँ भक्त माँ से आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए आते हैं।

ज्वालामुखी शक्तिपीठ का महत्व यहाँ आने वाले श्रद्धालुओं के लिए अद्वितीय है। यहाँ की पूजा और अर्चना से भक्त अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति की आशा करते हैं। यह स्थान भक्ति और आस्था का केंद्र है, जहाँ भक्तों की भीड़ हर समय रहती है। यहाँ का वातावरण धार्मिकता और साधना से भरा हुआ है, जो भक्तों को प्रेरित करता है। इस शक्तिपीठ की उपासना करने वाले श्रद्धालु अपने जीवन की कठिनाइयों को दूर करने के लिए यहाँ आते हैं और माँ का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। ज्वालामुखी शक्तिपीठ की ऊर्जा और शक्ति भक्तों को नई उम्मीद और साहस प्रदान करती है।

6. जालंधर- त्रिपुरमालिनी

पंजाब के जालंधर जिले में छावनी स्टेशन के निकट स्थित देवी तालाब एक प्रमुख शक्तिपीठ है। यहाँ पर माता का बायाँ वक्ष गिरने की मान्यता है, जिससे यह स्थान भक्तों के लिए विशेष महत्व रखता है। यहाँ की देवी त्रिपुरमालिनी के रूप में जानी जाती हैं और भैरव को भीषण कहा जाता है। यह शक्तिपीठ उन भक्तों के लिए एक पवित्र स्थल है जो देवी माँ की कृपा प्राप्त करने के लिए यहाँ आते हैं।

जालंधर का यह शक्तिपीठ धार्मिक आस्था का एक केंद्र है, जहाँ श्रद्धालु अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए पूजा अर्चना करते हैं। माता की कृपा से भक्त अपनी जीवन की कठिनाइयों का सामना करने में समर्थ होते हैं। यहाँ का शांत और दिव्य वातावरण भक्तों को ध्यान और साधना के लिए प्रेरित करता है। देवी तालाब के चारों ओर का दृश्य अद्भुत है, जो श्रद्धालुओं को एक नई ऊर्जा और शक्ति प्रदान करता है। त्रिपुरमालिनी शक्तिपीठ की उपासना में भक्तों का अटूट विश्वास और आस्था इस स्थान को और भी खास बनाती है। यहाँ के भक्त अपनी समस्याओं का समाधान माँ से प्राप्त करने की आशा रखते हैं और नियमित रूप से यहाँ आकर पूजा करते हैं।

7. वैद्यनाथ- जयदुर्गा

झारखंड के देवघर में स्थित वैद्यनाथधाम एक प्रमुख शक्तिपीठ है, जहाँ माता का हृदय गिरने की मान्यता है। यहाँ की देवी जय दुर्गा के रूप में जानी जाती हैं और भैरव को वैद्यनाथ कहा जाता है। यह स्थान धार्मिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है और यहाँ आने वाले भक्त माँ से आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए विशेष रूप से आते हैं। वैद्यनाथधाम का यह पवित्र स्थल अपने अद्वितीय आकर्षण और भक्ति के लिए प्रसिद्ध है।

वैद्यनाथधाम का धार्मिक महत्व भक्तों के लिए विशेष है। यहाँ पर भक्त अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए श्रद्धा और विश्वास के साथ पूजा करते हैं। यह स्थान भक्ति, साधना और आस्था का अद्भुत संगम है। भक्तों का मानना है कि यहाँ आकर माँ की कृपा से वे अपने जीवन में सुख-शांति और समृद्धि प्राप्त कर सकते हैं। वैद्यनाथधाम की आस्था और भक्ति भक्तों को एक नई ऊर्जा और साहस प्रदान करती है। यहाँ का शांत वातावरण और देवी की उपासना के लिए समर्पित भावनाएँ इस स्थान को और भी पवित्र बनाती हैं। इस शक्तिपीठ का महत्व न केवल स्थानीय लोगों के लिए, बल्कि दूर-दूर से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए भी अत्यधिक है।

8. नेपाल- महामाया

नेपाल में स्थित गुजरेश्वरी मंदिर, पशुपतिनाथ के निकट एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है। यहाँ पर माता के दोनों घुटने गिरने की मान्यता है, जिससे यह शक्तिपीठ विशेष महत्व रखता है। यहाँ की देवी महशिरा (महामाया) के रूप में पूजी जाती हैं और भैरव को कपाली कहा जाता है। इस स्थान पर भक्तगण अपनी समस्याओं का समाधान माँ से प्राप्त करने के लिए आते हैं।

महामाया का यह स्थान न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यहाँ की प्राकृतिक सुंदरता भी लोगों को आकर्षित करती है। यहाँ के भक्त अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए विशेष रूप से यहाँ आते हैं। यह शक्तिपीठ उन लोगों के लिए एक आस्था का केंद्र है जो देवी माँ की उपासना करते हैं। गुजरेश्वरी मंदिर का वातावरण भक्ति और आस्था से भरा हुआ है, जो भक्तों को एक अलग अनुभव प्रदान करता है। इस स्थान की पवित्रता और माँ की शक्ति के प्रति श्रद्धा भक्तों के लिए एक प्रेरणा स्रोत बनती है। यहाँ की पूजा और अर्चना में हर प्रकार की भक्ति और श्रद्धा का समावेश होता है, जो इस स्थान को और भी दिव्य बनाता है।

9. मानस- दाक्षायणी

दक्षिण भारत के कर्नाटक राज्य में स्थित मानस शक्तिपीठ एक प्रमुख धार्मिक स्थल है। यहाँ पर माता का मस्तक गिरने की मान्यता है, जिससे यह स्थान अत्यधिक महत्वपूर्ण बन जाता है। इस शक्तिपीठ की देवी दाक्षायणी के रूप में जानी जाती हैं और भैरव को अघोरेश्वर कहा जाता है। यहाँ भक्त अपनी समस्याओं का समाधान माँ से मांगते हैं और आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

मानस शक्तिपीठ का धार्मिक महत्व भक्तों के लिए अद्वितीय है। यहाँ की पूजा और अर्चना से भक्त अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति की आशा करते हैं। यह स्थान भक्ति और आस्था का केंद्र है, जहाँ भक्तों की भीड़ हर समय रहती है। यहाँ का वातावरण धार्मिकता और साधना से भरा हुआ है, जो भक्तों को प्रेरित करता है। दाक्षायणी की उपासना करने वाले श्रद्धालु अपने जीवन की कठिनाइयों को दूर करने के लिए यहाँ आते हैं और माँ का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। मानस शक्तिपीठ की ऊर्जा और शक्ति भक्तों को नई उम्मीद और साहस प्रदान करती है।

10. विरजा- विरजाक्षेत्र

भारतीय प्रदेश उड़ीसा के उत्कल क्षेत्र में विरज का स्थान एक महत्वपूर्ण शक्तिपीठ है। यहाँ पर मान्यता है कि माता की नाभि यहाँ गिरी थी। इस क्षेत्र की शक्ति को विमला के रूप में जाना जाता है और यहाँ के भैरव को जगन्नाथ कहा जाता है। यह स्थान धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है और यहाँ हर साल हजारों श्रद्धालु माता के दर्शन करने आते हैं। विरज क्षेत्र की महिमा और महत्व को देखते हुए, यहाँ विभिन्न उत्सव और अनुष्ठान भी आयोजित किए जाते हैं।

माता के प्रति श्रद्धा और भक्ति को दर्शाने के लिए लोग यहाँ विशेष रूप से आते हैं। इसे अंचल की शक्ति का प्रतीक माना जाता है और यहां माता के भक्तों का समर्पण देखने को मिलता है।

विरजा क्षेत्र का धार्मिक महत्व और इसकी दिव्यता इसे एक अद्वितीय स्थान बनाते हैं। श्रद्धालु यहाँ विभिन्न प्रकार के अनुष्ठान करते हैं और माता की कृपा प्राप्त करने के लिए प्रार्थना करते हैं। यहाँ के भक्तजन अपने परिवार और समुदाय की खुशहाली के लिए माता से आशीर्वाद लेते हैं। यह स्थान न केवल एक शक्तिपीठ है, बल्कि यह एक सांस्कृतिक केंद्र भी है जहाँ परंपराएं और धार्मिक रिवाज आज भी जीवित हैं।

11. गंडक- गंडकी

नेपाल की गंडकी नदी के किनारे स्थित मुक्तिनाथ मंदिर एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है। यहाँ पर मान्यता है कि माता का मस्तक, जिसे गंडस्थल भी कहा जाता है, यहाँ गिरा था। इस मंदिर की शक्ति गंडकी चण्डी के रूप में जानी जाती है, जबकि यहाँ के भैरव को भैरव चक्रपाणि कहा जाता है।

यह स्थल अपनी प्राकृतिक सुंदरता और धार्मिक महत्व के कारण श्रद्धालुओं के बीच प्रसिद्ध है। मुक्तिनाथ में भक्तों की भीड़ लगी रहती है, जो यहाँ आकर माता की कृपा प्राप्त करने की इच्छा व्यक्त करते हैं।

मुक्तिनाथ मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं के लिए यह स्थान एक अद्वितीय अनुभव प्रदान करता है। यहाँ आने पर लोग न केवल धार्मिक अनुष्ठान करते हैं, बल्कि यहाँ की प्राकृतिक सुंदरता का भी आनंद लेते हैं। गंडकी नदी की तट पर स्थित इस मंदिर में एक शांत वातावरण है, जो भक्तों को आध्यात्मिक शांति का अनुभव कराता है। माता की पूजा के साथ-साथ यहाँ पर पर्यटकों को अद्भुत दृश्यावलियों का भी आनंद मिलता है, जिससे यह स्थान और भी आकर्षक बन जाता है।

12. बहुला- बहुला (चंडिका)

भारतीय प्रदेश पश्चिम बंगाल के वर्धमान जिले में स्थित बहुला शक्तिपीठ माता चंडिका के प्रति समर्पित है। यहाँ पर मान्यता है कि माता का बायाँ हाथ इस क्षेत्र में गिरा था। इस स्थल की शक्ति देवी बाहुला के रूप में जानी जाती है, जबकि यहाँ के भैरव को भीरुक कहा जाता है। यह स्थल भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है, जहाँ श्रद्धालु माता की कृपा प्राप्त करने के लिए आते हैं।

बहुला शक्तिपीठ का धार्मिक महत्व इसके आसपास के क्षेत्र में बहुत अधिक है। यहाँ पर नियमित रूप से पूजा-अर्चना और भक्ति अनुष्ठान होते हैं, जो श्रद्धालुओं के बीच गहरी आस्था और विश्वास को दर्शाते हैं। भक्तजन यहाँ अपने परिवार की भलाई और सुख-समृद्धि के लिए माता से आशीर्वाद लेते हैं।

इस शक्तिपीठ का वातावरण भक्तिमय है, जो लोगों को आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करता है। देवी बाहुला के प्रति श्रद्धा और भक्ति यहाँ की परंपरा का हिस्सा हैं, जिससे यह स्थान और भी महत्वपूर्ण बन जाता है।

13. उज्जयिनी- मांगल्य चंडिका

उज्जयिनी का स्थान भारतीय प्रदेश पश्चिम बंगाल में स्थित है, जहाँ माता की दायीं कलाई गिरने की मान्यता है। इस शक्तिपीठ की शक्ति मांगल्य चंडिका के रूप में जानी जाती है, जबकि यहाँ के भैरव को कपिलांबर कहा जाता है। उज्जयिनी का यह स्थल धार्मिक दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण है और यहाँ श्रद्धालुओं का ताता लगा रहता है। माता की कृपा पाने के लिए लोग यहाँ नियमित रूप से आते हैं और विभिन्न अनुष्ठान करते हैं।

उज्जयिनी में माता की पूजा और अनुष्ठान केवल धार्मिक कार्य नहीं होते, बल्कि यह श्रद्धा और विश्वास का प्रतीक भी हैं। यहाँ की सुंदरता और शांत वातावरण भक्तों को आकर्षित करते हैं। भक्तजन यहाँ आने पर अपने जीवन में सुख-समृद्धि की कामना करते हैं।

मांगल्य चंडिका का यह स्थान एक विशेष श्रद्धा का केंद्र है, जहाँ भक्तजन अपनी आस्था के साथ माता से जुड़ने का अनुभव करते हैं। यह शक्तिपीठ केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक मेलजोल का भी प्रतीक है।

14. त्रिपुरा- त्रिपुर सुंदरी

भारतीय राज्य त्रिपुरा के उदरपुर के निकट राधाकिशोरपुर गाँव में स्थित माताबाढ़ी पर्वत शिखर पर त्रिपुर सुंदरी का मंदिर है। यहाँ पर मान्यता है कि माता का दायाँ पैर इस क्षेत्र में गिरा था। इस शक्तिपीठ की शक्ति त्रिपुर सुंदरी के रूप में जानी जाती है, और यहाँ के भैरव को त्रिपुरेश कहा जाता है। यह स्थल अपनी अद्भुत प्राकृतिक सुंदरता और आध्यात्मिक माहौल के लिए प्रसिद्ध है, जहाँ भक्तजन अपने मन की इच्छाओं के लिए माता से प्रार्थना करने आते हैं।

त्रिपुर सुंदरी का मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि यह त्रिपुरा राज्य की सांस्कृतिक धरोहर का भी हिस्सा है। यहाँ पर भक्तजन विभिन्न धार्मिक अनुष्ठान करते हैं, और यहाँ का वातावरण भक्ति से भरा रहता है। माता की कृपा प्राप्त करने के लिए लोग दूर-दूर से यहाँ आते हैं। इस स्थान पर आने वाले श्रद्धालु केवल पूजा-अर्चना नहीं करते, बल्कि यहाँ की प्राकृतिक सुंदरता का भी आनंद लेते हैं। त्रिपुरा का यह शक्तिपीठ भक्तों के लिए एक आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करता है, जो उन्हें अपनी आस्था से जोड़ता है।

15. चट्टल- भवानी

बांग्लादेश के चिट्टागौंग जिले के सीताकुंड स्टेशन के निकट चंद्रनाथ पर्वत शिखर पर चट्टल स्थान स्थित है। यहाँ पर मान्यता है कि माता की दायीं भुजा गिर गई थी। इस शक्तिपीठ की शक्ति भवानी के रूप में जानी जाती है, और भैरव को चंद्रशेखर कहा जाता है। चट्टल का यह स्थान एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है, जहाँ भक्तजन माता की कृपा प्राप्त करने के लिए आते हैं।

चट्टल शक्तिपीठ का धार्मिक महत्व इसके आसपास के क्षेत्र में बहुत अधिक है। यहाँ नियमित रूप से पूजा-अर्चना और भक्ति अनुष्ठान होते हैं, जो भक्तों की गहरी आस्था को दर्शाते हैं। लोग यहाँ अपनी मनोकामनाएँ लेकर आते हैं और माता से आशीर्वाद प्राप्त करने की कामना करते हैं।

चट्टल का शांत वातावरण भक्तों को आध्यात्मिक शांति का अनुभव कराता है, जिससे यह स्थान और भी महत्वपूर्ण बन जाता है। यहाँ पर श्रद्धालुओं का आस्था के साथ आना और माता की कृपा के लिए प्रार्थना करना इसे एक अद्वितीय स्थान बनाता है।

16. त्रिस्रोता- भ्रामरी

भारतीय राज्य पश्चिम बंगाल के जलपाइगुड़ी जिले में बोडा मंडल के सालबाढ़ी ग्राम स्थित त्रिस्रोत शक्तिपीठ है। यहाँ पर माता का बायाँ पैर गिरने की मान्यता है। इस स्थल की शक्ति भ्रामरी के रूप में जानी जाती है, जबकि यहाँ के भैरव को अंबर और भैरवेश्वर कहा जाता है। त्रिस्रोता का यह स्थान भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है, जहाँ माता की कृपा प्राप्त करने के लिए लोग आते हैं।

भ्रामरी माता के प्रति भक्तों की भक्ति इस स्थान को एक अद्वितीय महत्व देती है। यहाँ पर नियमित रूप से पूजा और अनुष्ठान होते हैं, जो श्रद्धालुओं की आस्था को प्रदर्शित करते हैं। भक्तजन यहाँ अपने परिवार की भलाई के लिए माता से प्रार्थना करते हैं।

त्रिस्रोता का शांत वातावरण और आध्यात्मिकता इस स्थान को और भी आकर्षक बनाती है। यहाँ आने वाले श्रद्धालु माता की कृपा के लिए अपनी इच्छाओं को व्यक्त करते हैं और भक्ति का अनुभव करते हैं।

17. कामगिरि- कामाख्‍या

कामगिरि भारतीय राज्य असम के गुवाहाटी जिले में स्थित नीलांचल पर्वत पर कामाख्या का मंदिर है। यहाँ पर मान्यता है कि माता का योनि भाग गिरा था। इस शक्तिपीठ की शक्ति कामाख्या के रूप में जानी जाती है, जबकि यहाँ के भैरव को उमानंद कहा जाता है। कामगिरि का यह स्थान एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है, जहाँ भक्तजन माता की कृपा प्राप्त करने के लिए आते हैं।

कामगिरि शक्तिपीठ का धार्मिक महत्व इसके आसपास के क्षेत्र में बहुत अधिक है। यहाँ पर विभिन्न धार्मिक अनुष्ठान और पूजा-पाठ होते हैं, जो भक्तों की गहरी आस्था को दर्शाते हैं। लोग यहाँ अपनी मनोकामनाएँ लेकर आते हैं और माता से आशीर्वाद प्राप्त करने की इच्छा करते हैं।

कामगिरि का यह स्थान न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यहाँ की प्राकृतिक सुंदरता भी इसे एक आकर्षक स्थान बनाती है। भक्तजन यहाँ आने पर आध्यात्मिक अनुभव प्राप्त करते हैं और अपनी श्रद्धा के साथ माता से जुड़े रहते हैं।

18. प्रयाग – ललिता

भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद शहर, जिसे अब प्रयागराज कहा जाता है, के संगम तट पर माता के हाथ की ऊँगली गिरी थी। यह स्थान धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है और यहाँ हर वर्ष लाखों श्रद्धालु स्नान करने आते हैं। यहाँ पर स्थित ललिता देवी का मंदिर भक्तों के लिए आकर्षण का केंद्र है। इसे ललिता और भैरव की शक्ति के रूप में पूजा जाता है। ललिता देवी को शakti और भैरव को भव कहा जाता है।

संगम तट पर होने वाली कुम्भ मेले में भी इस स्थान का महत्वपूर्ण स्थान है। भक्त यहाँ आकर माँ ललिता से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं और अपने मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए प्रार्थना करते हैं। यहाँ का वातावरण भक्ति और श्रद्धा से ओतप्रोत रहता है, जिससे श्रद्धालुओं को मानसिक शांति मिलती है। प्रयाग में देवी ललिता की उपासना करने से जीवन के हर क्षेत्र में सफलता और समृद्धि की प्राप्ति होती है।

19. जयंती – जयंती

बांग्लादेश के सिलहट जिले के जयंतिया परगना के भोरभोग गाँव, कालाजोर के खासी पर्वत पर जयंती मंदिर है, जहाँ माता की बायीं जंघा गिरी थी। जयंती देवी को शक्ति का प्रतीक माना जाता है और यहाँ भैरव को क्रमदीश्वर कहा जाता है। यह स्थान धार्मिक पर्यटन के लिए प्रसिद्ध है और यहाँ भक्तजन माता की कृपा प्राप्त करने के लिए दूर-दूर से आते हैं।

जयंती देवी की पूजा विशेष रूप से नवरात्रि में धूमधाम से की जाती है, जब भक्तजन भव्य उत्सव आयोजित करते हैं। मंदिर के आस-पास का वातावरण भक्ति भाव से भरा होता है, और यहाँ आने वाले श्रद्धालुओं को देवी की कृपा से मनचाहे फल की प्राप्ति होती है। जयंती देवी की उपासना से जीवन में सकारात्मकता और ऊर्जा का संचार होता है, जो भक्तों को कठिनाइयों का सामना करने में मदद करता है।

20. युगाद्या – भूतधात्री

पश्चिम बंगाल के वर्धमान जिले के खीरग्राम स्थित जुगाड्‍या (युगाद्या) स्थान पर माता के दाएँ पैर का अंगूठा गिरा था। यहाँ भूतधात्री देवी की पूजा की जाती है, जिन्हें शक्तिशाली और संरक्षण प्रदान करने वाली मानी जाती हैं। इस स्थान पर आने वाले भक्त जन भूतधात्री देवी से अपने जीवन में सुख-समृद्धि और सुरक्षा की कामना करते हैं। भैरव को यहाँ क्षीर खंडक कहा जाता है, जो देवी की शक्ति का प्रतीक है।

युगाद्या का क्षेत्र अपनी धार्मिकता और सांस्कृतिक धरोहर के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ के मंदिर का महत्व न केवल धार्मिक है, बल्कि यह पर्यटन स्थल के रूप में भी आकर्षक है। भक्तों का मानना है कि माता भूतधात्री की कृपा से नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और जीवन में खुशियों का संचार होता है।

21. कालीपीठ – कालिका

कोलकाता के कालीघाट में माता के बाएँ पैर का अंगूठा गिरा था, जो कालीपीठ के रूप में प्रसिद्ध है। यहाँ माता कालिका की उपासना की जाती है, जिन्हें शक्ति और विनाश की देवी माना जाता है। इस स्थान की महत्ता धार्मिक स्थलों में सर्वोच्च मानी जाती है, विशेष रूप से नवरात्रि के दौरान यहाँ भारी भीड़ लगती है। भक्तजन माता कालिका से सुरक्षा और आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए यहाँ आते हैं।

भैरव को नकुशील कहा जाता है, जो इस स्थान की शक्ति को और बढ़ाता है। कालीघाट के मंदिर का इतिहास भी बहुत पुराना है और इसे माता के अद्वितीय स्वरूप के लिए जाना जाता है। यहाँ की भक्ति भावना और आध्यात्मिकता भक्तों के मन में गहरी छाप छोड़ती है, जिससे उन्हें मानसिक शांति और संतोष की प्राप्ति होती है।

22. किरीट – विमला (भुवनेशी)

पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले के लालबाग कोर्ट रोड स्टेशन के पास किरीटकोण ग्राम के निकट माता का मुकुट गिरा था। यहाँ विमला देवी की पूजा की जाती है, जिन्हें भुवनेशी भी कहा जाता है। यह स्थान धार्मिक मान्यता के अनुसार विशेष महत्व रखता है और भक्त यहाँ आकर देवी से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। विमला देवी की शक्ति को समर्पित इस स्थान पर श्रद्धालु विशेष अवसरों पर बड़ी श्रद्धा से पूजा करते हैं।

भैरव को संवर्त्त कहा जाता है, जो देवी की उपासना में सहयोगी बनता है। यहाँ के वातावरण में भक्ति और श्रद्धा का एक अद्भुत संचार होता है। भक्तगण यहाँ आकर अपने मन की इच्छाओं की पूर्ति के लिए प्रार्थना करते हैं और विमला देवी की कृपा प्राप्त करने का प्रयास करते हैं।

23. वाराणसी – विशालाक्षी

उत्तर प्रदेश के काशी में मणिकर्णिका घाट पर माता के कान के मणिजड़ीत कुंडल गिरे थे। यहाँ विशालाक्षी माता की पूजा की जाती है, जो शक्ति और समृद्धि की देवी मानी जाती हैं। काशी, जिसे भगवान शिव की नगरी माना जाता है, यहाँ के धार्मिक महत्व को और बढ़ाता है। भक्त जन विशालाक्षी देवी से मोक्ष और सुख की प्राप्ति के लिए यहाँ आते हैं। इस स्थान पर भैरव को काल भैरव कहा जाता है, जो यहाँ की विशेष पूजा का हिस्सा है।

मणिकर्णिका घाट का धार्मिक महत्त्व भी अद्वितीय है, जहाँ लोग अपने पितरों के लिए तर्पण करते हैं। यहाँ की भक्ति और आस्था का अद्भुत संगम देखने को मिलता है, जिससे भक्तों को मानसिक शांति और आनंद की अनुभूति होती है।

24. कन्याश्रम – सर्वाणी

कन्याश्रम में माता का पृष्ठ भाग गिरा था, जहाँ सर्वाणी देवी की उपासना की जाती है। यह स्थान भक्तों के लिए एक प्रमुख तीर्थ स्थल है। यहाँ आने वाले श्रद्धालु देवी से आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए विशेष उत्साह के साथ आते हैं। सर्वाणी देवी को अन्न और सुख की देवी माना जाता है, और भक्तजन यहाँ अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए प्रार्थना करते हैं।

भैरव को निमिष कहा जाता है, जो यहाँ की शक्ति और सुरक्षा का प्रतीक है। इस स्थान का वातावरण भक्ति और श्रद्धा से भरा हुआ रहता है, जहाँ लोग अपने मन के विचारों को देवी के सामने व्यक्त करते हैं। कन्याश्रम की भक्ति परंपरा और आस्था भक्तों को मानसिक शांति और ऊर्जा प्रदान करती है।

25. कुरुक्षेत्र – सावित्री

हरियाणा के कुरुक्षेत्र में माता की एड़ी (गुल्फ) गिरी थी, जहाँ सावित्री देवी की पूजा की जाती है। कुरुक्षेत्र को धर्म भूमि माना जाता है और यहाँ का महत्व धार्मिक स्थलों में प्रमुख है। सावित्री देवी को जीवन और सुरक्षा की देवी माना जाता है। यहाँ आने वाले भक्तजन माता से अपने जीवन में सुख और समृद्धि की कामना करते हैं।

भैरव को स्थाणु कहा जाता है, जो देवी की उपासना का एक महत्वपूर्ण भाग है। कुरुक्षेत्र में होने वाले मेलों और धार्मिक समारोहों में इस स्थान की महत्ता और बढ़ जाती है। भक्तजन यहाँ आकर देवी की कृपा से अपने कष्टों का निवारण करने का प्रयास करते हैं, जिससे उन्हें मानसिक शांति मिलती है।

26. मणिदेविक – गायत्री

अजमेर के निकट पुष्कर के मणिबन्ध स्थान के गायत्री पर्वत पर दो मणिबंध गिरे थे। यहाँ गायत्री देवी की पूजा की जाती है, जो ज्ञान और प्रकाश की देवी मानी जाती हैं। मणिदेविक का यह स्थान विशेष रूप से धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। भक्तजन यहाँ आकर गायत्री देवी से अपने ज्ञान में वृद्धि और आत्मिक शांति की कामना करते हैं।

यहाँ का वातावरण भक्ति और साधना से भरा होता है, जिससे श्रद्धालुओं को सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है। भैरव को सर्वानंद कहा जाता है, जो इस स्थान की दिव्यता को बढ़ाता है। मणिदेविक की उपासना से भक्तों के मन में संतोष और शांति का अनुभव होता है, जिससे उनका जीवन सुखमय बनता है।

27. श्रीशैल – महालक्ष्मी

बांग्लादेश के सिलहट जिले के उत्तर-पूर्व में जैनपुर गाँव के पास शैल नामक स्थान पर माता का गला (ग्रीवा) गिरा था। यहाँ महालक्ष्मी की पूजा की जाती है, जिन्हें धन, सुख और समृद्धि की देवी माना जाता है। श्रीशैल का यह स्थान भक्तों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। महालक्ष्मी की उपासना से भक्त जन धन और ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिए यहाँ आते हैं।

भैरव को शम्बरानंद कहा जाता है, जो देवी की शक्ति का प्रतीक है। यहाँ का वातावरण भक्ति और श्रद्धा से भरा रहता है, जहाँ लोग अपनी समस्याओं का समाधान पाने के लिए प्रार्थना करते हैं। इस स्थान पर महालक्ष्मी की कृपा से भक्तों के जीवन में खुशियाँ और समृद्धि आती हैं।

28. कांची – देवगर्भा

पश्चिम बंगाल के बीरभूमी जिला के बोलारपुर स्टेशन के उत्तर-पूर्व स्थित कोपई नदी तट पर कांची नामक स्थान पर माता की अस्थि गिरी थी। यहाँ देवी देवगर्भा की पूजा की जाती है, जिन्हें मातृत्व और संतान सुख की देवी माना जाता है। भक्तजन यहाँ आकर देवी से संतान सुख की प्राप्ति और अपने परिवार के लिए सुख-समृद्धि की कामना करते हैं।

देवी की उपासना विशेष रूप से नवरात्रि के दौरान धूमधाम से की जाती है। भैरव को रुरु कहा जाता है, जो इस स्थान की शक्ति का प्रतीक है। कांची के इस तीर्थ स्थल का धार्मिक महत्त्व भक्तों के लिए अत्यधिक है और यहाँ आने वाले श्रद्धालुओं को मानसिक शांति की प्राप्ति होती है।

29. कालमाधव – देवी काली

मध्यप्रदेश के अमरकंटक के कालमाधव स्थित शोन नदी तट के पास माता का बायाँ नितंब गिरा था, जहाँ देवी काली की पूजा की जाती है। काली को शक्ति और विनाश की देवी माना जाता है और यहाँ भक्तजन विशेष रूप से काली माता से अपने जीवन में सुख और सुरक्षा की कामना करते हैं।

इस स्थान की आध्यात्मिकता और भक्ति का माहौल भक्तों को आकर्षित करता है। भैरव को असितांग कहा जाता है, जो इस क्षेत्र की शक्ति को बढ़ाता है। कालमाधव का स्थान धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है और यहाँ आने वाले भक्तजन देवी काली की कृपा से अपने जीवन में सकारात्मकता लाने का प्रयास करते हैं।

30. शोणदेश- नर्मदा (शोणाक्षी)

मध्यप्रदेश के अमरकंटक में नर्मदा नदी के उद्गम स्थल पर शोणदेश नामक स्थान है। यहाँ माता के दाएँ नितंब का गिरना एक महत्वपूर्ण धार्मिक मान्यता है। इसे लेकर कहा जाता है कि यहाँ माता की शक्ति नर्मदा है और भैरव का नाम भद्रसेन है। यह स्थान न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसकी प्राकृतिक सुंदरता भी आकर्षण का केंद्र है। नर्मदा नदी का उद्गम स्थल होने के नाते, यह क्षेत्र यात्रियों और भक्तों के लिए विशेष महत्व रखता है।

यहाँ आकर लोग न केवल माता की पूजा करते हैं, बल्कि नर्मदा नदी की पवित्रता को भी अनुभव करते हैं। श्रद्धालु यहाँ आकर मानसिक शांति प्राप्त करते हैं और जीवन में सुख-समृद्धि के लिए प्रार्थना करते हैं। यह स्थान आस्था और प्रकृति का अनूठा संगम है, जहाँ भक्तों का आना-जाना लगा रहता है। यहाँ की शांति और सौंदर्य भक्तों को अपनी ओर खींचते हैं और इस क्षेत्र को एक दिव्य अनुभव प्रदान करते हैं।

31. रामगिरि- शिवानी

उत्तरप्रदेश के झाँसी-मणिकपुर रेलवे स्टेशन के पास चित्रकूट में स्थित रामगिरि नामक स्थान पर माता का दायाँ वक्ष गिरा था। यहाँ की शक्ति शिवानी है और भैरव का नाम चंड है। इस क्षेत्र की पवित्रता और आस्था भक्तों के लिए विशेष अनुभव प्रदान करती है। रामगिरि का नाम स्थानीय लोगों के बीच एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल के रूप में प्रसिद्ध है। यह स्थल माता के प्रति श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक है।

श्रद्धालु यहाँ आकर अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए प्रार्थना करते हैं और माता के प्रति अपनी आस्था व्यक्त करते हैं। यह क्षेत्र प्राकृतिक सौंदर्य से भरा हुआ है, जहाँ हरियाली और पहाड़ों का संगम भक्तों को एक अद्वितीय अनुभव प्रदान करता है। यहाँ की धार्मिक अनुष्ठान और उत्सव भी भक्तों को आकर्षित करते हैं, जिससे यह स्थल सदा जीवंत रहता है। रामगिरि की इस विशेषता के कारण यहाँ आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या में वृद्धि हो रही है।

32. वृंदावन- उमा

उत्तरप्रदेश के मथुरा के निकट वृंदावन के भूतेश्वर स्थान पर माता के गुच्छ और चूड़ामणि गिरे थे। इस क्षेत्र की शक्ति उमा है और भैरव का नाम भूतेश है। वृंदावन का स्थान भगवान कृष्ण के लीलाओं का स्थल है, जो श्रद्धालुओं के लिए एक विशेष धार्मिक महत्व रखता है। यहाँ आकर भक्त न केवल माता की पूजा करते हैं, बल्कि भगवान कृष्ण की लीलाओं का भी अनुभव करते हैं। इस स्थान की आस्था और भक्ति हर भक्त को एक अद्वितीय अनुभव प्रदान करती है।

वृंदावन की हरियाली, बाग-बगिचे और मंदिरों की भव्यता इसे एक अद्भुत स्थल बनाती है। भक्त यहाँ आकर अपने मन की इच्छाएँ पूरी करने के लिए प्रार्थना करते हैं। यहाँ की पवित्रता और आध्यात्मिकता भक्तों को मानसिक शांति प्रदान करती है। वृंदावन में उपस्थित मठ और मंदिर श्रद्धालुओं के लिए ध्यान और साधना का स्थल भी है, जहाँ भक्त अपने मन की शांति के लिए आते हैं।

33. शुचि- नारायणी

तमिलनाडु के कन्याकुमारी-तिरुवनंतपुरम मार्ग पर स्थित शुचितिर्थम शिव मंदिर एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है। यहाँ माता की ऊपरी दंत (ऊर्ध्वदंत) गिरे थे। इस क्षेत्र की शक्ति नारायणी है और भैरव का नाम संहार है। शुचि स्थल की पवित्रता और धार्मिक महत्व भक्तों के लिए आकर्षण का केंद्र बनाती है। यहाँ आकर लोग अपनी इच्छाओं के लिए प्रार्थना करते हैं और माता की कृपा प्राप्त करने का प्रयास करते हैं।

यह स्थल प्राकृतिक सौंदर्य से भी भरा हुआ है, जहाँ भक्त शांति और सुकून का अनुभव करते हैं। शुचि का यह मंदिर साधकों और भक्तों के लिए ध्यान और साधना का स्थल भी है। यहाँ की शांतिपूर्ण वातावरण और पवित्रता श्रद्धालुओं को आत्मिक शांति प्रदान करती है। हर साल हजारों की संख्या में भक्त यहाँ आते हैं, जो अपनी आस्था और विश्वास के साथ माता की पूजा करते हैं और संतोष का अनुभव करते हैं।

34. पंचसागर- वाराही

पंचसागर, एक अज्ञात स्थान है, जहाँ माता की निचले दंत (अधोदंत) गिरे थे। इस क्षेत्र की शक्ति वराही है और भैरव का नाम महारुद्र है। पंचसागर का यह स्थल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, जहाँ भक्त अपनी आस्था के साथ माता की पूजा करते हैं। यहाँ की पवित्रता और आध्यात्मिकता श्रद्धालुओं को एक अद्भुत अनुभव प्रदान करती है। पंचसागर की प्राकृतिक सुंदरता और शांति भक्तों को यहाँ आने के लिए प्रेरित करती है।

इस क्षेत्र में धार्मिक अनुष्ठान और त्योहारों का आयोजन होता है, जो भक्तों को एकत्रित करने का कार्य करते हैं। यहाँ का वातावरण और प्राकृतिक सौंदर्य भक्तों को ध्यान और साधना के लिए उपयुक्त स्थान प्रदान करता है। पंचसागर की यह विशेषता इसे एक अनूठा धार्मिक स्थल बनाती है, जहाँ लोग अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए प्रार्थना करते हैं।

35. करतोयातट- अपर्णा

बांग्लादेश के शेरपुर बागुरा स्टेशन से 28 किमी दूर भवानीपुर गाँव के पार करतोया तट पर माता की पायल (तल्प) गिरी थी। यहाँ की शक्ति अर्पण है और भैरव का नाम वामन है। करतोयातट एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है, जहाँ भक्त माता की कृपा प्राप्त करने के लिए आते हैं। इस क्षेत्र की पवित्रता और भक्ति श्रद्धालुओं को एक अद्भुत अनुभव प्रदान करती है। करतोयातट का यह स्थान न केवल धार्मिक, बल्कि प्राकृतिक सुंदरता से भी भरा हुआ है।

यहाँ की हरियाली और शांतिपूर्ण वातावरण भक्तों को मानसिक शांति प्रदान करती है। यहाँ आकर लोग अपनी इच्छाओं के लिए प्रार्थना करते हैं और माता की आशीर्वाद प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। करतोयातट में होने वाले धार्मिक अनुष्ठान और त्योहार भी भक्तों के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र होते हैं, जिससे यहाँ की महत्ता और बढ़ जाती है।

36. श्री पर्वत- श्री सुंदरी

कश्मीर के लद्दाख क्षेत्र के पर्वत पर माता के दाएं पैर की पायल गिरी थी। दूसरी मान्यता अनुसार आंध्रप्रदेश के कुर्नूल जिले के श्रीशैलम स्थान पर दक्षिण गुल्फ अर्थात दाएँ पैर की एड़ी गिरी थी। इस क्षेत्र की शक्ति श्रीसुंदरी है और भैरव का नाम सुंदरानंद है। श्री पर्वत का यह स्थल प्राकृतिक सौंदर्य और धार्मिक महत्व का अद्भुत संयोजन है। यहाँ की ऊँचाइयाँ और शांत वातावरण भक्तों को एक अद्वितीय अनुभव प्रदान करते हैं।

श्रद्धालु यहाँ आकर माता की पूजा करते हैं और मानसिक शांति प्राप्त करते हैं। इस क्षेत्र की पवित्रता और धार्मिक अनुष्ठान श्रद्धालुओं को आकर्षित करते हैं। श्री पर्वत का यह स्थल ध्यान और साधना के लिए भी उपयुक्त है, जहाँ लोग अपनी आत्मा की शांति के लिए आते हैं। इस क्षेत्र की प्राकृतिक सुंदरता भक्तों को मंत्रमुग्ध कर देती है, और यह स्थल सदा जीवंत रहता है।

37. विभाष- कपालिनी

पश्चिम बंगाल के जिला पूर्वी मेदिनीपुर के पास तामलुक स्थित विभाष नामक स्थान पर माता की बायीं एड़ी गिरी थी। इस क्षेत्र की शक्ति कपालिनी (भीमरूप) है और भैरव का नाम शर्वानंद है। विभाष एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है, जहाँ भक्त अपनी आस्था के साथ माता की पूजा करते हैं। यहाँ की पवित्रता और आध्यात्मिकता भक्तों को मानसिक शांति प्रदान करती है।

विभाष का यह स्थल प्राकृतिक सौंदर्य से भरा हुआ है, जहाँ हरियाली और शांत वातावरण भक्तों को आकर्षित करते हैं। यहाँ आकर लोग अपनी इच्छाओं के लिए प्रार्थना करते हैं और माता की कृपा प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। विभाष में होने वाले धार्मिक अनुष्ठान और त्योहार भी भक्तों के लिए विशेष महत्व रखते हैं। इस क्षेत्र की धार्मिकता और प्राकृतिक सुंदरता भक्तों को यहाँ आने के लिए प्रेरित करती है।

38. प्रभास- चंद्रभागा

गुजरात के जूनागढ़ जिले में स्थित सोमनाथ मंदिर के निकट वेरावल स्टेशन से 4 किमी प्रभास क्षेत्र में माता का उदर गिरा था। इस क्षेत्र की शक्ति चंद्रभागा है और भैरव का नाम वक्रतुंड है। प्रभास का यह स्थल धार्मिक दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण है, जहाँ भक्त माता की पूजा करते हैं। यहाँ की पवित्रता और धार्मिक अनुष्ठान भक्तों को एक अद्भुत अनुभव प्रदान करते हैं।

प्रभास का यह स्थान प्राकृतिक सुंदरता से भी भरा हुआ है, जहाँ समुद्र की लहरें और शांत वातावरण भक्तों को मंत्रमुग्ध कर देते हैं।श्रद्धालु यहाँ आकर अपने मन की इच्छाएँ पूरी करने के लिए प्रार्थना करते हैं और माता की कृपा प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। इस क्षेत्र में होने वाले धार्मिक उत्सव और अनुष्ठान भी भक्तों के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र बनते हैं, जिससे यहाँ की महत्ता और बढ़ जाती है।

39. भैरवपर्वत- अवंती

मध्यप्रदेश के उज्जैन नगर में शिप्रा नदी के तट के पास भैरव पर्वत पर माता के ओष्ठ गिरे थे। इस क्षेत्र की शक्ति अवंति है और भैरव का नाम लम्बकर्ण है। भैरवपर्वत का यह स्थल धार्मिक दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण है। यहाँ पर श्रद्धालु माता की पूजा करते हैं और अपने जीवन में सुख-समृद्धि की कामना करते हैं। इस क्षेत्र की पवित्रता और धार्मिक अनुष्ठान भक्तों को एक अद्भुत अनुभव प्रदान करते हैं।

भैरवपर्वत का यह स्थान प्राकृतिक सुंदरता से भरा हुआ है, जहाँ भक्तों का आना-जाना लगा रहता है। यहाँ के वातावरण में भक्ति और आस्था की गूंज सुनाई देती है। यहाँ की हरियाली और पर्वतीय क्षेत्र भक्तों को शांति और सुकून प्रदान करते हैं। भैरवपर्वत में होने वाले धार्मिक उत्सव और अनुष्ठान भी भक्तों के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र बनते हैं।

40. जनस्थान- भ्रामरी

महाराष्ट्र के नासिक नगर स्थित गोदावरी नदी घाटी में जनस्थान नामक स्थान पर माता की ठोड़ी गिरी थी। इस क्षेत्र की शक्ति भ्रामरी है और भैरव का नाम विकृताक्ष है। जनस्थान का यह स्थल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, जहाँ भक्त माता की पूजा करते हैं। यहाँ की पवित्रता और आस्था भक्तों को एक अद्वितीय अनुभव प्रदान करती है। जनस्थान की प्राकृतिक सुंदरता और हरियाली भक्तों को यहाँ आने के लिए प्रेरित करती है।

यहाँ आकर लोग अपने मन की इच्छाएँ पूरी करने के लिए प्रार्थना करते हैं और माता की कृपा प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। जनस्थान में होने वाले धार्मिक अनुष्ठान और त्योहार भी भक्तों के लिए विशेष महत्व रखते हैं। यहाँ का वातावरण और धार्मिकता भक्तों को ध्यान और साधना के लिए उपयुक्त स्थान प्रदान करता है।

41. सर्वशैल स्थान

आंध्रप्रदेश के राजामुंद्री क्षेत्र में गोदावरी नदी के तट पर कोटिलिंगेश्वर मंदिर के पास सर्वशैल स्थान है, जहाँ माता के वाम गंड (गाल) गिरे थे। यहाँ की शक्ति राकिनी है और भैरव का नाम वत्सनाभम है। सर्वशैल स्थान का यह स्थल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, जहाँ भक्त अपनी आस्था के साथ माता की पूजा करते हैं। यहाँ की पवित्रता और आध्यात्मिकता भक्तों को मानसिक शांति प्रदान करती है।

सर्वशैल का यह स्थल प्राकृतिक सुंदरता से भी भरा हुआ है, जहाँ हरियाली और शांत वातावरण भक्तों को आकर्षित करते हैं। यहाँ आकर लोग अपनी इच्छाओं के लिए प्रार्थना करते हैं और माता की कृपा प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। सर्वशैल में होने वाले धार्मिक अनुष्ठान और त्योहार भी भक्तों के लिए विशेष महत्व रखते हैं। यहाँ की धार्मिकता और प्राकृतिक सौंदर्य भक्तों को यहाँ आने के लिए प्रेरित करती है।

42. गोदावरीतीर

यहाँ माता के दक्षिण गंड गिरे थे। इसकी शक्ति विश्वेश्वरी है और भैरव का नाम दंडपाणि है। गोदावरीतीर का यह स्थल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, जहाँ भक्त माता की पूजा करते हैं। यहाँ की पवित्रता और आस्था भक्तों को एक अद्भुत अनुभव प्रदान करती है। गोदावरीतीर की प्राकृतिक सुंदरता और शांत वातावरण भक्तों को यहाँ आने के लिए प्रेरित करते हैं।

यहाँ आकर लोग अपनी इच्छाओं के लिए प्रार्थना करते हैं और माता की कृपा प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। गोदावरीतीर में होने वाले धार्मिक अनुष्ठान और त्योहार भी भक्तों के लिए विशेष महत्व रखते हैं। इस क्षेत्र की धार्मिकता और प्राकृतिक सौंदर्य भक्तों को यहाँ आने के लिए प्रेरित करती है।

43. रत्नावली- कुमारी

बंगाल के हुगली जिले के खानाकुल-कृष्णानगर मार्ग पर रत्नावली स्थित रत्नाकर नदी के तट पर माता का दायाँ स्कंध गिरा था। इसकी शक्ति कुमारी है और भैरव का नाम शिव है। रत्नावली का यह स्थल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, जहाँ भक्त माता की पूजा करते हैं। यहाँ की पवित्रता और आस्था भक्तों को एक अद्वितीय अनुभव प्रदान करती है। रत्नावली की प्राकृतिक सुंदरता और हरियाली भक्तों को यहाँ आने के लिए प्रेरित करती है।

यहाँ आकर लोग अपनी इच्छाओं के लिए प्रार्थना करते हैं और माता की कृपा प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। रत्नावली में होने वाले धार्मिक अनुष्ठान और त्योहार भी भक्तों के लिए विशेष महत्व रखते हैं। यहाँ की धार्मिकता और प्राकृतिक सौंदर्य भक्तों को यहाँ आने के लिए प्रेरित करती है।

44. मिथिला- उमा (महादेवी)

भारत-नेपाल सीमा पर जनकपुर रेलवे स्टेशन के निकट मिथिला में माता का बायां स्कंध गिरा था। इसकी शक्ति उमा है और भैरव का नाम महोदर है। मिथिला का यह स्थल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, जहाँ भक्त माता की पूजा करते हैं। यहाँ की पवित्रता और आस्था भक्तों को एक अद्वितीय अनुभव प्रदान करती है। मिथिला की प्राकृतिक सुंदरता और हरियाली भक्तों को यहाँ आने के लिए प्रेरित करती है।

यहाँ आकर लोग अपनी इच्छाओं के लिए प्रार्थना करते हैं और माता की कृपा प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। मिथिला में होने वाले धार्मिक अनुष्ठान और त्योहार भी भक्तों के लिए विशेष महत्व रखते हैं। यहाँ की धार्मिकता और प्राकृतिक सौंदर्य भक्तों को यहाँ आने के लिए प्रेरित करती है।

45. नलहाटी- कालिका तारापीठ

पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले के नलहाटि स्टेशन के निकट नलहाटी में माता के पैर की हड्डी गिरी थी। इसकी शक्ति कालिका देवी है और भैरव का नाम योगेश है। नलहाटी का यह स्थल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, जहाँ भक्त माता की पूजा करते हैं। यहाँ की पवित्रता और आस्था भक्तों को एक अद्वितीय अनुभव प्रदान करती है। नलहाटी की प्राकृतिक सुंदरता और हरियाली भक्तों को यहाँ आने के लिए प्रेरित करती है।

यहाँ आकर लोग अपनी इच्छाओं के लिए प्रार्थना करते हैं और माता की कृपा प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। नलहाटी में होने वाले धार्मिक अनुष्ठान और त्योहार भी भक्तों के लिए विशेष महत्व रखते हैं। यहाँ की धार्मिकता और प्राकृतिक सौंदर्य भक्तों को यहाँ आने के लिए प्रेरित करती है।

46. कर्णाट- जयदुर्गा

कर्नाट (अज्ञात स्थान) में माता के दोनों कान गिरे थे। इसकी शक्ति जयदुर्गा है और भैरव का नाम अभिरु है। कर्णाट का यह स्थल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, जहाँ भक्त माता की पूजा करते हैं। यहाँ की पवित्रता और आस्था भक्तों को एक अद्वितीय अनुभव प्रदान करती है। कर्णाट की प्राकृतिक सुंदरता और हरियाली भक्तों को यहाँ आने के लिए प्रेरित करती है।

यहाँ आकर लोग अपनी इच्छाओं के लिए प्रार्थना करते हैं और माता की कृपा प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। कर्णाट में होने वाले धार्मिक अनुष्ठान और त्योहार भी भक्तों के लिए विशेष महत्व रखते हैं। यहाँ की धार्मिकता और प्राकृतिक सौंदर्य भक्तों को यहाँ आने के लिए प्रेरित करती है।

47. वक्रेश्वर- महिषमर्दिनी

पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले के दुबराजपुर स्टेशन से सात किमी दूर वक्रेश्वर में पापहर नदी के तट पर माता का भ्रूमध्य (मन:) गिरा था। इसकी शक्ति महिषमर्दिनी है और भैरव का नाम वक्रनाथ है। वक्रेश्वर का यह स्थल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, जहाँ भक्त माता की पूजा करते हैं। यहाँ की पवित्रता और आस्था भक्तों को एक अद्वितीय अनुभव प्रदान करती है।

वक्रेश्वर की प्राकृतिक सुंदरता और हरियाली भक्तों को यहाँ आने के लिए प्रेरित करती है। यहाँ आकर लोग अपनी इच्छाओं के लिए प्रार्थना करते हैं और माता की कृपा प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। वक्रेश्वर में होने वाले धार्मिक अनुष्ठान और त्योहार भी भक्तों के लिए विशेष महत्व रखते हैं। यहाँ की धार्मिकता और प्राकृतिक सौंदर्य भक्तों को यहाँ आने के लिए प्रेरित करती है।

48. यशोर- यशोरेश्वरी

बांग्लादेश के खुलना जिला के ईश्वरीपुर के यशोर स्थान पर माता के हाथ और पैर गिरे (पाणिपद्म) थे। इसकी शक्ति यशोरेश्वरी है और भैरव का नाम चण्ड है। यशोर का यह स्थल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, जहाँ भक्त माता की पूजा करते हैं। यहाँ की पवित्रता और आस्था भक्तों को एक अद्वितीय अनुभव प्रदान करती है। यशोर की प्राकृतिक सुंदरता और हरियाली भक्तों को यहाँ आने के लिए प्रेरित करती है।

यहाँ आकर लोग अपनी इच्छाओं के लिए प्रार्थना करते हैं और माता की कृपा प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। यशोर में होने वाले धार्मिक अनुष्ठान और त्योहार भी भक्तों के लिए विशेष महत्व रखते हैं। यहाँ की धार्मिकता और प्राकृतिक सौंदर्य भक्तों को यहाँ आने के लिए प्रेरित करती है।

49. अट्टाहास- फुल्लरा

पश्चिम बंगाल के लाभपुर स्टेशन से दो किमी दूर अट्टहास स्थान पर माता के ओष्ठ गिरे थे। इसकी शक्ति फुल्लरा है और भैरव का नाम विश्वेश है। अट्टाहास का यह स्थल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, जहाँ भक्त माता की पूजा करते हैं। यहाँ की पवित्रता और आस्था भक्तों को एक अद्वितीय अनुभव प्रदान करती है। अट्टाहास की प्राकृतिक सुंदरता और हरियाली भक्तों को यहाँ आने के लिए प्रेरित करती है।

यहाँ आकर लोग अपनी इच्छाओं के लिए प्रार्थना करते हैं और माता की कृपा प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। अट्टाहास में होने वाले धार्मिक अनुष्ठान और त्योहार भी भक्तों के लिए विशेष महत्व रखते हैं। यहाँ की धार्मिकता और प्राकृतिक सौंदर्य भक्तों को यहाँ आने के लिए प्रेरित करती है।

50. नंदीपूर- नंदिनी

पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले के सैंथिया रेलवे स्टेशन नंदीपुर स्थित चारदीवारी में बरगद के वृक्ष के समीप माता का गले का हार गिरा था। इसकी शक्ति नंदिनी है और भैरव का नाम नंदिकेश्वर है। नंदीपूर का यह स्थल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, जहाँ भक्त माता की पूजा करते हैं। यहाँ की पवित्रता और आस्था भक्तों को एक अद्वितीय अनुभव प्रदान करती है। नंदीपूर की प्राकृतिक सुंदरता और हरियाली भक्तों को यहाँ आने के लिए प्रेरित करती है।

यहाँ आकर लोग अपनी इच्छाओं के लिए प्रार्थना करते हैं और माता की कृपा प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। नंदीपूर में होने वाले धार्मिक अनुष्ठान और त्योहार भी भक्तों के लिए विशेष महत्व रखते हैं। यहाँ की धार्मिकता और प्राकृतिक सौंदर्य भक्तों को यहाँ आने के लिए प्रेरित करती है।

51. लंका- इंद्राक्षी

श्रीलंका में संभवत: त्रिंकोमाली में माता की पायल गिरी थी (त्रिंकोमाली में प्रसिद्ध त्रिकोणेश्वर मंदिर के निकट)। इसकी शक्ति इंद्राक्षी है और भैरव का नाम राक्षसेश्वर है। लंका का यह स्थल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, जहाँ भक्त माता की पूजा करते हैं। यहाँ की पवित्रता और आस्था भक्तों को एक अद्वितीय अनुभव प्रदान करती है।

लंका की प्राकृतिक सुंदरता और हरियाली भक्तों को यहाँ आने के लिए प्रेरित करती है। यहाँ आकर लोग अपनी इच्छाओं के लिए प्रार्थना करते हैं और माता की कृपा प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। लंका में होने वाले धार्मिक अनुष्ठान और त्योहार भी भक्तों के लिए विशेष महत्व रखते हैं। यहाँ की धार्मिकता और प्राकृतिक सौंदर्य भक्तों को यहाँ आने के लिए प्रेरित करती है।

52. विराट- अंबिका

विराट (अज्ञात स्थान) में पैर की अँगुली गिरी थी। इसकी शक्ति अंबिका है और भैरव का नाम अमृत है। विराट का यह स्थल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, जहाँ भक्त माता की पूजा करते हैं। यहाँ की पवित्रता और आस्था भक्तों को एक अद्वितीय अनुभव प्रदान करती है। विराट की प्राकृतिक सुंदरता और हरियाली भक्तों को यहाँ आने के लिए प्रेरित करती है।

यहाँ आकर लोग अपनी इच्छाओं के लिए प्रार्थना करते हैं और माता की कृपा प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। विराट में होने वाले धार्मिक अनुष्ठान और त्योहार भी भक्तों के लिए विशेष महत्व रखते हैं। यहाँ की धार्मिकता और प्राकृतिक सौंदर्य भक्तों को यहाँ आने के लिए प्रेरित करती है।

नोट : इसके अलावा पटना-गया के इलाके में कहीं मगध शक्तिपीठ माना जाता है।

53. मगध- सर्वानन्दकरी

मगध में दाएँ पैर की जंघा गिरी थी। इसकी शक्ति सर्वानंदकरी है और भैरव का नाम व्योम केश है। मगध का यह स्थल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, जहाँ भक्त माता की पूजा करते हैं। यहाँ की पवित्रता और आस्था भक्तों को एक अद्वितीय अनुभव प्रदान करती है।

मगध की प्राकृतिक सुंदरता और हरियाली भक्तों को यहाँ आने के लिए प्रेरित करती है। यहाँ आकर लोग अपनी इच्छाओं के लिए प्रार्थना करते हैं और माता की कृपा प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। मगध में होने वाले धार्मिक अनुष्ठान और त्योहार भी भक्तों के लिए विशेष महत्व रखते हैं। यहाँ की धार्मिकता और प्राकृतिक सौंदर्य भक्तों को यहाँ आने के लिए प्रेरित करती है।

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Hemlata
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Ms. Hemlata is a prominent Indian author and spiritual writer known for her contributions to the realm of devotional literature. She is best recognized for her work on the "Chalisa", a series of devotional hymns dedicated to various Hindu deities. Her book, available on Chalisa PDF, has garnered widespread acclaim for its accessible presentation of these spiritual texts.
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