कनकधारा स्तोत्र (Kanakadhara Stotram PDF) आर्थिक तंगी और धन की कमी से जीवन में अक्सर परेशानियाँ आती हैं। धन प्राप्ति के लिए लोग हरसंभव श्रेष्ठ उपाय करने की कोशिश करते हैं। इस संदर्भ में, पुराणों में वर्णित कनकधारा यंत्र और स्तोत्र चमत्कारिक रूप से लाभ प्रदान करते हैं। यह यंत्र विशेष रूप से प्रभावशाली है क्योंकि इसे किसी भी प्रकार की विशेष माला, जाप, या पूजन विधि की आवश्यकता नहीं होती। आप श्री सूक्त पाठ इन हिंदी को भी यहाँ से पढ़ सकते हैं!
केवल दिन में एक बार इसका पाठ करना ही पर्याप्त होता है। इसके साथ ही, प्रतिदिन इसके सामने दीपक और अगरबत्ती लगाना आवश्यक है। यदि किसी दिन यह भी भूल जाएं, तो भी चिंता की बात नहीं है, क्योंकि यह सिद्ध मंत्र होने के कारण चैतन्य माना जाता है।
कनकधारा स्तोत्र का संस्कृत पाठ और हिन्दी अनुवाद यहाँ प्रस्तुत है। आपको केवल कनकधारा यंत्र को किसी भी तंत्र-मंत्र सामग्री की दुकान से लाकर अपने पूजा घर में स्थापित करना है। यह यंत्र आसानी से उपलब्ध हो जाता है। मां लक्ष्मी की प्रसन्नता के लिए जितने भी यंत्र हैं, उनमें कनकधारा यंत्र और स्तोत्र सबसे प्रभावशाली और अतिशीघ्र फलदायी हैं।
आर्थिक समृद्धि और धन संचय के लिए कनकधारा स्तोत्र का नियमित पाठ करने से चमत्कारिक लाभ प्राप्त होता है। इस दिव्य पाठ को अपनाकर आप भी अपने जीवन में धन और समृद्धि की ओर एक महत्वपूर्ण कदम बढ़ा सकते हैं।
अपार धन-संपदा के लिए पढ़ें कनकधारा स्तोत्र
कनकधारा स्तोत्र का संस्कृत पाठ, हिन्दी पाठ एवं English पाठ अनुवाद
- संस्कृत
- हिन्दी
- English
संस्कृत में कनकधारा स्तोत्रम्
।। श्री कनकधारा स्तोत्रम् ।।
अंगहरे पुलकभूषण माश्रयन्ती भृगांगनैव मुकुलाभरणं तमालम।
अंगीकृताखिल विभूतिरपांगलीला मांगल्यदास्तु मम मंगलदेवताया:।।1।।
मुग्ध्या मुहुर्विदधती वदनै मुरारै: प्रेमत्रपाप्रणिहितानि गतागतानि।
माला दृशोर्मधुकर विमहोत्पले या सा मै श्रियं दिशतु सागर सम्भवाया:।।2।।
विश्वामरेन्द्रपदविभ्रमदानदक्षमानन्द हेतु रधिकं मधुविद्विषोपि।
ईषन्निषीदतु मयि क्षणमीक्षणार्द्धमिन्दोवरोदर सहोदरमिन्दिराय:।।3।।
आमीलिताक्षमधिगम्य मुदा मुकुन्दमानन्दकन्दम निमेषमनंगतन्त्रम्।
आकेकर स्थित कनी निकपक्ष्म नेत्रं भूत्यै भवेन्मम भुजंगरायांगनाया:।।4।।
बाह्यन्तरे मधुजित: श्रितकौस्तुभै या हारावलीव हरिनीलमयी विभाति।
कामप्रदा भगवतो पि कटाक्षमाला कल्याण भावहतु मे कमलालयाया:।।5।।
कालाम्बुदालिललितोरसि कैटभारेर्धाराधरे स्फुरति या तडिदंगनेव्।
मातु: समस्त जगतां महनीय मूर्तिभद्राणि मे दिशतु भार्गवनन्दनाया:।।6।।
प्राप्तं पदं प्रथमत: किल यत्प्रभावान्मांगल्य भाजि: मधुमायनि मन्मथेन।
मध्यापतेत दिह मन्थर मीक्षणार्द्ध मन्दालसं च मकरालयकन्यकाया:।।7।।
दद्याद दयानुपवनो द्रविणाम्बुधाराम स्मिभकिंचन विहंग शिशौ विषण्ण।
दुष्कर्मधर्ममपनीय चिराय दूरं नारायण प्रणयिनी नयनाम्बुवाह:।।8।।
इष्टा विशिष्टमतयो पि यथा ययार्द्रदृष्टया त्रिविष्टपपदं सुलभं लभंते।
दृष्टि: प्रहूष्टकमलोदर दीप्ति रिष्टां पुष्टि कृषीष्ट मम पुष्कर विष्टराया:।।9।।
गीर्देवतैति गरुड़ध्वज भामिनीति शाकम्भरीति शशिशेखर वल्लभेति।
सृष्टि स्थिति प्रलय केलिषु संस्थितायै तस्यैनमस्त्रि भुवनैक गुरोस्तरूण्यै ।।10।।
श्रुत्यै नमोस्तु शुभकर्मफल प्रसूत्यै रत्यै नमोस्तु रमणीय गुणार्णवायै।
शक्तयै नमोस्तु शतपात्र निकेतानायै पुष्टयै नमोस्तु पुरूषोत्तम वल्लभायै।।11।।
नमोस्तु नालीक निभाननायै नमोस्तु दुग्धौदधि जन्म भूत्यै ।
नमोस्तु सोमामृत सोदरायै नमोस्तु नारायण वल्लभायै।।12।।
सम्पतकराणि सकलेन्द्रिय नन्दानि साम्राज्यदान विभवानि सरोरूहाक्षि।
त्व द्वंदनानि दुरिता हरणाद्यतानि मामेव मातर निशं कलयन्तु नान्यम्।।13।।
यत्कटाक्षसमुपासना विधि: सेवकस्य कलार्थ सम्पद:।
संतनोति वचनांगमानसंसत्वां मुरारिहृदयेश्वरीं भजे।।14।।
सरसिजनिलये सरोज हस्ते धवलमांशुकगन्धमाल्यशोभे।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम्।।15।।
दग्धिस्तिमि: कनकुंभमुखा व सृष्टिस्वर्वाहिनी विमलचारू जल प्लुतांगीम।
प्रातर्नमामि जगतां जननीमशेष लोकाधिनाथ गृहिणी ममृताब्धिपुत्रीम्।।16।।
कमले कमलाक्षवल्लभे त्वं करुणापूरतरां गतैरपाड़ंगै:।
अवलोकय माम किंचनानां प्रथमं पात्रमकृत्रिमं दयाया: ।।17।।
स्तुवन्ति ये स्तुतिभिर भूमिरन्वहं त्रयीमयीं त्रिभुवनमातरं रमाम्।
गुणाधिका गुरुतरभाग्यभागिनो भवन्ति ते बुधभाविताया:।।18।।
।। इति श्री कनकधारा स्तोत्रं सम्पूर्णम् ।।
Kanakadhara Stotram in Hindi
|| कनकधारा स्तोत्रम् (हिन्दी पाठ) ||
जैसे भ्रमरी अधखिले कुसुमों से अलंकृत तमाल-तरु का आश्रय लेती है, उसी प्रकार जो प्रकाश श्रीहरि के रोमांच से सुशोभित श्रीअंगों पर निरंतर पड़ता रहता है तथा जिसमें संपूर्ण ऐश्वर्य का निवास है, संपूर्ण मंगलों की अधिष्ठात्री देवी भगवती महालक्ष्मी का वह कटाक्ष मेरे लिए मंगलदायी हो।।1।।
जैसे भ्रमरी महान कमल दल पर मंडराती रहती है, उसी प्रकार जो श्रीहरि के मुखारविंद की ओर बराबर प्रेमपूर्वक जाती है और लज्जा के कारण लौट आती है। समुद्र कन्या लक्ष्मी की वह मनोहर मुग्ध दृष्टिमाला मुझे धन संपत्ति प्रदान करें ।।2।।
जो संपूर्ण देवताओं के अधिपति इंद्र के पद का वैभव-विलास देने में समर्थ है, मधुहन्ता श्रीहरि को भी अधिकाधिक आनंद प्रदान करने वाली है तथा जो नीलकमल के भीतरी भाग के समान मनोहर जान पड़ती है, उन लक्ष्मीजी के अधखुले नेत्रों की दृष्टि क्षण भर के लिए मुझ पर थोड़ी सी अवश्य पड़े।।3।।
शेषशायी भगवान विष्णु की धर्मपत्नी श्री लक्ष्मीजी के नेत्र हमें ऐश्वर्य प्रदान करने वाले हों, जिनकी पुतली तथा बरौनियां अनंग के वशीभूत हो अधखुले, किंतु साथ ही निर्निमेष (अपलक) नयनों से देखने वाले आनंदकंद श्री मुकुन्द को अपने निकट पाकर कुछ तिरछी हो जाती हैं।।4।।
जो भगवान मधुसूदन के कौस्तुभमणि-मंडित वक्षस्थल में इंद्रनीलमयी हारावली-सी सुशोभित होती है तथा उनके भी मन में प्रेम का संचार करने वाली है, वह कमल-कुंजवासिनी कमला की कटाक्षमाला मेरा कल्याण करे।।5।।
जैसे मेघों की घटा में बिजली चमकती है, उसी प्रकार जो कैटभशत्रु श्रीविष्णु के काली मेघमाला के श्यामसुंदर वक्षस्थल पर प्रकाशित होती है, जिन्होंने अपने आविर्भाव से भृगुवंश को आनंदित किया है तथा जो समस्त लोकों की जननी है, उन भगवती लक्ष्मी की पूजनीय मूर्ति मुझे कल्याण प्रदान करे।।6।
समुद्र कन्या कमला की वह मंद, अलस, मंथर और अर्धोन्मीलित दृष्टि, जिसके प्रभाव से कामदेव ने मंगलमय भगवान मधुसूदन के हृदय में प्रथम बार स्थान प्राप्त किया था, यहां मुझ पर पड़े।।7।।
भगवान नारायण की प्रेयसी लक्ष्मी का नेत्र रूपी मेघ दयारूपी अनुकूल पवन से प्रेरित हो दुष्कर्म (धनागम विरोधी अशुभ प्रारब्ध) रूपी धाम को चिरकाल के लिए दूर हटाकर विषाद रूपी धर्मजन्य ताप से पीड़ित मुझ दीन रूपी चातक पर धनरूपी जलधारा की वृष्टि करें।।
विशिष्ट बुद्धि वाले मनुष्य जिनके प्रीति पात्र होकर जिस दया दृष्टि के प्रभाव से स्वर्ग पद को सहज ही प्राप्त कर लेते हैं, पद्मासना पद्मा की वह विकसित कमल-गर्भ के समान कांतिमयी दृष्टि मुझे मनोवांछित पुष्टि प्रदान करें।।9।।
जो सृष्टि लीला के समय वाग्देवता (ब्रह्मशक्ति) के रूप में विराजमान होती है तथा प्रलय लीला के काल में शाकम्भरी (भगवती दुर्गा) अथवा चन्द्रशेखर वल्लभा पार्वती (रुद्रशक्ति) के रूप में अवस्थित होती है, त्रिभुवन के एकमात्र पिता भगवान नारायण की उन नित्य यौवना प्रेयसी श्रीलक्ष्मीजी को नमस्कार है।।10।।
मात:। शुभ कर्मों का फल देने वाली श्रुति के रूप में आपको प्रणाम है। रमणीय गुणों की सिंधु रूपा रति के रूप में आपको नमस्कार है। कमल वन में निवास करने वाली शक्ति स्वरूपा लक्ष्मी को नमस्कार है तथा पुष्टि रूपा पुरुषोत्तम प्रिया को नमस्कार है।।11।।
कमल वदना कमला को नमस्कार है। क्षीरसिंधु सभ्यता श्रीदेवी को नमस्कार है। चंद्रमा और सुधा की सगी बहन को नमस्कार है। भगवान नारायण की वल्लभा को नमस्कार है। ।।12।।
कमल सदृश नेत्रों वाली माननीय मां ! आपके चरणों में किए गए प्रणाम संपत्ति प्रदान करने वाले, संपूर्ण इंद्रियों को आनंद देने वाले, साम्राज्य देने में समर्थ और सारे पापों को हर लेने के लिए सर्वथा उद्यत हैं, वे सदा मुझे ही अवलम्बन दें। (मुझे ही आपकी चरण वंदना का शुभ अवसर सदा प्राप्त होता रहे)।।13।।
जिनके कृपा कटाक्ष के लिए की गई उपासना उपासक के लिए संपूर्ण मनोरथों और संपत्तियों का विस्तार करती है, श्रीहरि की हृदयेश्वरी उन्हीं आप लक्ष्मी देवी का मैं मन, वाणी और शरीर से भजन करता हूं।।14।।
भगवती हरिप्रिया! तुम कमल वन में निवास करने वाली हो, तुम्हारे हाथों में नीला कमल सुशोभित है। तुम अत्यंत उज्ज्वल वस्त्र, गंध और माला आदि से सुशोभित हो। तुम्हारी झांकी बड़ी मनोरम है। त्रिभुवन का ऐश्वर्य प्रदान करने वाली देवी, मुझ पर प्रसन्न हो जाओ।।15।।
दिग्गजों द्वारा सुवर्ण-कलश के मुख से गिराए गए आकाश गंगा के निर्मल एवं मनोहर जल से जिनके श्री अंगों का अभिषेक (स्नान) संपादित होता है, संपूर्ण लोकों के अधीश्वर भगवान विष्णु की गृहिणी और क्षीरसागर की पुत्री उन जगज्जननी लक्ष्मी को मैं प्रात:काल प्रणाम करता हूं।।16।।
कमल नयन केशव की कमनीय कामिनी कमले! मैं अकिंचन (दीन-हीन) मनुष्यों में अग्रगण्य हूं, अतएव तुम्हारी कृपा का स्वाभाविक पात्र हूं। तुम उमड़ती हुई करुणा की बाढ़ की तरह तरंगों के समान कटाक्षों द्वारा मेरी ओर देखो।।17।।
जो मनुष्य इन स्तुतियों द्वारा प्रतिदिन वेदत्रयी स्वरूपा त्रिभुवन-जननी भगवती लक्ष्मी की स्तुति करते हैं, वे इस भूतल पर महान गुणवान और अत्यंत सौभाग्यशाली होते हैं तथा विद्वान पुरुष भी उनके मनोभावों को जानने के लिए उत्सुक रहते हैं।।18।।
(समाप्त)
Kanakadhara Stotram Lyrics English
|| Kanakadhara Stotram (English) ||
Jaise bhramari adhkhile kusumon se alankrit tamal-taru ka ashray leti hai, usi prakar jo prakash Shrihari ke romanch se sushobhit Shriangon par nirantar padta rehta hai tatha jismein sampoorn aishwarya ka niwas hai, sampoorn mangalon ki adhishtatri devi Bhagwati Mahalakshmi ka wah kataksh mere liye mangaldaayi ho.।।1।।
Jaise bhramari mahaan kamal dal par mandraati rehti hai, usi prakar jo Shrihari ke mukharavind ki or barabar prempoorvak jaati hai aur laajja ke karan laut aati hai. Samudra kanya Lakshmi ki wah manohar mughda drishti mala mujhe dhan sampatti pradaan karein.।।2।।
Jo sampoorn devtaon ke adhipati Indra ke pad ka vaibhav-vilas dene mein samarth hai, Madhuhanta Shrihari ko bhi adhikadhik anand pradaan karne wali hai tatha jo neelkamal ke bheetari bhag ke saman manohar jaan padti hai, un Lakshmiji ke adhkhule netron ki drishti kshan bhar ke liye mujhe thodi si avashya pade.।।3।।
Sheshashayi Bhagwan Vishnu ki dharmapatni Shri Lakshmiji ke netra humein aishwarya pradaan karne wale hon, jinki putli tatha barouniya Anang ke vasheebhoot ho adhkhule, kintu saath hi nirnimish (apalak) nayanon se dekhne wale Anandkand Shri Mukund ko apne nikat paakar kuch tirchi ho jaati hain.।।4।।
Jo Bhagwan Madhusudan ke Kaustubhamani-mandit vakshasthal mein Indraneelmayi haaravali-si sushobhit hoti hai tatha unke bhi man mein prem ka sanchar karne wali hai, wah kamal-kunjavasini Kamala ki katakshmala mera kalyan kare.।।5।।
Jaise meghon ki ghata mein bijli chamakti hai, usi prakar jo Kaitabhshatru Shri Vishnu ke kaali meghmala ke shyamsundar vakshasthal par prakaashit hoti hai, jinhone apne avirbhav se Bhruvansh ko anandit kiya hai tatha jo samast lokon ki janani hai, un Bhagwati Lakshmi ki poojaniya murti mujhe kalyan pradaan kare.।।6।।
Samudra kanya Kamala ki wah mand, alas, manthar aur ardhanmeelit drishti, jiske prabhav se Kamadev ne mangalmay Bhagwan Madhusudan ke hriday mein pratham baar sthan prapt kiya tha, yahaan mujhe par pade.।।7।।
Bhagwan Narayan ki preyas Lakshmi ka netra roopi megh dayarupi anukool pavan se prerit ho dushkarm (dhanagam virodhi ashubh prarabdh) roopi dham ko chirkaal ke liye door hatakar vishad roopi dharmjanaya taap se peedit mujhe deen roopi chaatak par dhanroopi jaladhaara ki vrishti karein.।
Vishisht buddhi wale manushya jinke preeti patra hokar jis daya drishti ke prabhav se swarg pad ko sahaj hi prapt kar lete hain, padmasana Padma ki wah viksit kamal-garbha ke saman kantimayi drishti mujhe manovanchhit pushti pradaan karein.।।9।।
Jo srishti leela ke samay Vagdevata (Brahmashakti) ke roop mein virajmaan hoti hai tatha pralaya leela ke kaal mein Shakambhari (Bhagwati Durga) athwa Chandrashekhar Vallabha Parvati (Rudrashakti) ke roop mein avasthit hoti hai, tribhuvan ke ekmatra pita Bhagwan Narayan ki un nitya yauvana preyas Shri Lakshmiji ko namaskaar hai.।।10।।
Maata: Shubh karmon ka phal dene wali shruti ke roop mein aapko pranam hai. Ramaniya gunon ki sindhu roopa rati ke roop mein aapko namaskar hai. Kamal van mein nivasi shakti swaroopa Lakshmi ko namaskar hai tatha pushti roopa Purushottam priya ko namaskar hai.।।11।।
Kamal vadana Kamala ko namaskar hai. Kshirasindhu sabhyata Shri Devi ko namaskar hai. Chandrama aur sudha ki sagi behan ko namaskar hai. Bhagwan Narayan ki Vallabha ko namaskar hai.।।12।।
Kamal sadri netron wali maananiya maa! Aapke charanon mein kiye gaye pranam sampatti pradaan karne wale, sampoorn indriyon ko anand dene wale, samraajy dene mein samarth aur saare paapon ko har lene ke liye sarvatha udyat hain, ve sada mujhe hi avalamban dein. (Mujhe hi aapki charan vandana ka shubh avasar sada prapt hota rahe).।।13।।
Jinke kripa kataksh ke liye kiye gaye upasana upasak ke liye sampoorn manorathon aur sampattiyon ka visthaar karti hai, Shrihari ki hridayeshwari unhi aap Lakshmi Devi ka main man, vaani aur sharir se bhajan karta hoon.।।14।।
Bhagwati Haripriya! Tum kamal van mein nivasi ho, tumhare haathon mein neela kamal sushobhit hai. Tum atyant ujwal vastra, gandh aur maala adi se sushobhit ho. Tumhari jhanki badi manohar hai. Tribhuvan ka aishwarya pradaan karne wali devi, mujhe par prasanna ho jao.।।15।।
Diggajon dwara suvarna-kalash ke mukh se giraaye gaye aakash ganga ke nirmal evam manohar jal se jinke Shri angon ka abhishhek (snaan) sampadit hota hai, sampoorn lokon ke adhiswar Bhagwan Vishnu ki grihini aur Kshirasagar ki putri un jagatjanani Lakshmi ko main praatkala pranam karta hoon.।।16।।
Kamal nayan Keshav ki kamaniya kaamini Kamle! Main akinchana (deen-heen) manushyon mein agraganya hoon, ataeva tumhari kripa ka swabhavik patra hoon. Tum umadti hui karuna ki baadh ki tarah tarangon ke saman katakshon dwara meri or dekho.।।17।।
Jo manushya in stutiyon dwara pratidin Vedatrayi swaroopa tribhuvan-janani Bhagwati Lakshmi ki stuti karte hain, ve is bhootal par mahaan gunvaan aur atyant saubhagyashali hote hain tatha vidwan purush bhi unke manobhavaon ko jaanne ke liye utsuk rehte hain.।।18।।
(End)
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आदि शंकराचार्य द्वारा रचित कनकधारा स्तोत्र – अर्थ सहित (हिंदी)
ॐ अङ्गं हरै (हरेः) पुलकभूषण-माश्रयन्ती भृङ्गाऽगनेव मुकुला-भरणं तमालं |
अंगीकृता-ऽखिलविभूतिर-पॉँगलीला-माँगल्य-दाऽस्तु मम् मङ्गलदेवतायाः || १ ||
अर्थ – जैसे भ्रमरी अधखिले कुसुमों से अलंकृत तमाल-तरु का आश्रय लेती है, उसी प्रकार जो प्रकाश श्रीहरि के रोमांच से सुशोभित श्रीअंगों पर निरंतर पड़ता रहता है तथा जिसमें संपूर्ण ऐश्वर्य का निवास है, संपूर्ण मंगलों की अधिष्ठात्री देवी भगवती महालक्ष्मी की वह दृष्टि मेरे लिए मंगलदायी हो।
मुग्धा मुहुर्विदधी वदने मुरारेः प्रेमत्रपा प्रणि-हितानि गताऽगतानि ।
मला-र्दशोर्म-धुकरीव महोत्पले या सा में श्रियं दिशतु सागर सम्भवायाः || २ ||
अर्थ – जैसे भ्रमरी महान कमल दल पर मंडराती रहती है, उसी प्रकार जो श्रीहरि के मुखारविंद की ओर बराबर प्रेमपूर्वक जाती है और लज्जा के कारण लौट आती है। समुद्र कन्या लक्ष्मी की वह मनोहर मुग्ध दृष्टिमाला मुझे धन संपत्ति प्रदान करें।
विश्वामरेन्द्र पद-विभ्रम-दानदक्षमा-नन्दहेतु-रधिकं मुरविद्विषोपि |
ईषन्निषीदतु मयि क्षण मीक्षणार्धं-मिन्दीवरोदर सहोदर-मिन्दीरायाः || ३ ||
अर्थ – जो देवताओ के स्वामी इंद्र को के पद का वैभव-विलास देने में समर्थ है, मधुहंता नाम के दैत्य के शत्रु भगवान विष्णु को भी आप आधिकाधिक आनंद प्रदान करने वाली है, नीलकमल जिसका सहोदर है अर्थात भाई है, उन लक्ष्मीजी के अर्ध खुले हुए नेत्रों की दृश्टि किंचित क्षण के लिए मुझ पर पड़े।
आमीलिताक्ष-मधिगम्य मुदा-मुकुन्दमा-नन्द कंद-मनिमेष-मनंगतन्त्रं |
आकेकर स्थित कनीतिक-पद्मनेत्रं भूत्यै भवेन्मम भुजङ्ग शयाङ्गनायाः || ४ ||
अर्थ – जिसकी पुतली एवं भौहे काम के वशीभूत हो अर्धविकसित एकटक आँखों से देखनेवाले आनंद सत्चिदानन्द मुकुंद भगवान को अपने निकट पाकर किंचित तिरछी हो जाती हो, ऐसे शेष पर शयन करने वाले भगवान नारायण की अर्द्धांगिनी श्रीमहालक्ष्मीजी के नेत्र हमें धन-संपत्ति प्रदान करे।
बाह्यन्तरे मुरजितः (मधुजितः) श्रुत-कौस्तुभे या हारावलीव हरिनीलमयी विभाति ।
कामप्रदा भगवतोऽपि कटाक्षमाला कल्याण-मावहतु में कमला-लयायाः ॥ ५ ॥
अर्थ – जो भगवान मधुसूदन के कौस्तुभमणि-मंडित वक्षस्थल में इंद्रनीलमयी हारावली-सी सुशोभित होती है तथा उनके भी मन में प्रेम का संचार करने वाली है, वह कमल-कुंजवासिनी कमला की कटाक्षमाला मेरा कल्याण करे।
कालाम्बुदालि ललितो-रसि कैटभारे-र्धाराधरे स्फुरति या तडिदंगनेव |
मातुः समस्त-जगतां महनीय-मूर्तिर्भद्राणि में दिशतु भार्गव-नंदनायाः || ६ ||
अर्थ – जिस तरह से मेघो की घटा में बिजली चमकती है, उसी प्रकार मधु-कैटभ के शत्रु भगवान विष्णु के काली मेघपंक्ति की तरह सुमनोहर वक्षस्थल पर आप एक विद्युत के समान देदीप्यमान होती हो, जिन्होंने अपने अविर्भाव से भृगुवंश को आनंदित किया है तथा जो समस्त लोकों की जननी है वो भगवती लक्ष्मी मुझे कल्याण प्रदान करे।
प्राप्तं पदं प्रथमतः किल यत प्रभावा-न्मांगल्य-भाजि मधुमाथिनी मन्मथेन |
मय्यापतेत्त-दिह मन्थर-मीक्षणार्धं मन्दालसं च मकरालय-कन्यकायाः || ७ ||
अर्थ – समुद्रकन्या कमला की वह मन्द, अलस, मन्थर और अर्धोन्मीलित दृष्टि, जिसके प्रभाव से कामदेव ने मंगलमय भगवान मधुसूदन के हृदय में प्रथम बार स्थान प्राप्त किया था, यहाँ मुझ पर पड़े।
दद्याद दयानु-पवनो द्रविणाम्बु-धारामस्मिन्न-किञ्चन विहङ्ग-शिशो विषण्णे |
दुष्कर्म-धर्म-मपनीय चिराय दूरं नारायण-प्रणयिनी-नयनाम्बु-वाहः ॥ ८ ॥
अर्थ – भगवान नारायण की प्रेयसी लक्ष्मी का नेत्र रूपी मेघ दयारूपी अनुकूल पवन से प्रेरित हो दुष्कर्म (धनागम विरोधी अशुभ प्रारब्ध) रूपी धाम को चिरकाल के लिए दूर हटाकर विषाद रूपी धर्मजन्य ताप से पीड़ित मुझ दीन रूपी चातक पर धनरूपी जलधारा की वृष्टि करें।
इष्टा-विषिश्टम-तयोऽपि यया दयार्द्र-दृष्टया त्रिविष्ट-पपदं सुलभं लभन्ते ।
दृष्टिः प्रहष्ट-कमलोदर-दीप्ति-रिष्टां पुष्टिं कृषीष्ट मम पुष्कर-विष्टरायाः || ९ ||
अर्थ – विशिष्ट बुद्धिवाले मनुष्य जिनके प्रीतिपात्र होकर उनकी दयादृष्टि के प्रभाव से स्वर्गपद को सहज ही प्राप्त कर लेते हैं, उन्हीं पद्मासना पद्मा की वह विकसित कमल गर्भ के समान कान्तिमती दृष्टि मुझे मनोवांछित पुष्टि प्रदान करे।
गीर्देव-तेति गरुड़-ध्वज-सुन्दरीति शाकम्भ-रीति शशि-शेखर-वल्लभेति |
सृष्टि-स्थिति-प्रलय-केलिषु संस्थि-तायै तस्यै नमस्त्रिभुवनै-कगुरोस्तरुण्यै || १० ||
अर्थ – जो माँ भगवती श्री सृष्टिक्रीड़ा में अवसर अनुसार वाग्देवता (ब्रह्मशक्ति) के रूप में विराजमान होती है, पालनक्रीड़ा के समय लक्ष्मी के रूप में विष्णु की पत्नी के विराजमान होती है, प्रलयक्रीड़ा के समय शाकम्भरी (भगवती दुर्गा) अथवा चन्द्रशेखर वल्लभा पार्वती (रूद्रशक्ति) भगवान शंकर की पत्नी के रूप में विद्यमान होती है, उन त्रिलोक के एकमात्र गुरु पालनहार विष्णु की नित्य यौवना प्रेमिका भगवती लक्ष्मी को मेरा सम्पूर्ण नमस्कार है।
श्रुत्यै नमोऽस्तु शुभ-कर्मफल-प्रसूत्यै रत्यै नमोऽस्तु रमणीय गुणार्ण-वायै |
शक्त्यै नमोऽस्तु शतपत्र-निकेतनायै पुष्ट्यै नमोऽस्तु पुरुषोत्तम-वल्लभायै || ११ ||
अर्थ – हे माता ! शुभ कर्मों का फल देनेवाली श्रुति के रूप में आपको प्रणाम है। रमणीय गुणों की सिन्धुरूप रति के रूप में आपको नमस्कार है। कमलवन में निवास करनेवाली शक्तिस्वरूपा लक्ष्मी को नमस्कार है तथा पुरुषोत्तमप्रिया पुष्टि को नमस्कार है।
नमोऽस्तु नालीकनि-भाननायै नमोऽस्तु दुग्धो-दधि-जन्म-भूत्यै |
नमोऽस्तु सोमा-मृत-सोदरायै नमोऽस्तु नारायण-वल्लभायै || १२ ||
अर्थ – कमल वदना कमला को नमस्कार है। क्षीरसिंधु सभ्यता श्रीदेवी को नमस्कार है। चंद्रमा और सुधा की सगी बहन को नमस्कार है। भगवान नारायण की वल्लभा को नमस्कार है।
नमोऽस्तु हेमाम्बुज पीठिकायै नमोऽस्तु भूमण्डल नयिकायै ।
नमोऽस्तु देवादि दया-परायै नमोऽस्तु शारङ्ग-युध वल्लभायै || १३ ||
अर्थ – सोने के कमलासन पर बैठनेवाली, भूमण्डल नायिका, देवताओ पर दयाकरनेवाली, शाङ्घायुध विष्णु की वल्लभा शक्ति को नमस्कार है।
नमोऽस्तु देव्यै भृगुनन्दनायै नमोऽस्तु विष्णोरुरसि संस्थितायै ।
नमोऽस्तु लक्ष्म्यै कमलालयायै नमोऽस्तु दामोदरवल्लभायै || १४ ||
अर्थ – भगवान् विष्णु के वक्षःस्थल में निवास करनेवाली देवी, कमल के आसनवाली, दामोदर प्रिय लक्ष्मी, आपको मेरा नमस्कार है।
नमोऽस्तु कान्त्यै कमलेक्षणायै नमोऽस्तु भूत्यै भुवनप्रसूत्यै |
नमोऽस्तु देवादिभिरर्चितायै नमोऽस्तु नन्दात्मजवल्लभायै ॥ १५ ॥
अर्थ – भगवान् विष्णु की कान्ता, कमल के जैसे नेत्रोंवाली, त्रैलोक्य को उत्पन्न करने वाली, देवताओ के द्वारा पूजित, नन्दात्मज की वल्लभा ऐसी श्रीलक्ष्मीजी को मेरा नमस्कार है।
सम्पत्कराणि सकलेन्द्रिय-नंदनानि साम्राज्य-दान-विभवानि सरो-रुहाक्षि ।
त्वद्वन्द-नानि दुरिता-हरणो-द्यतानी मामेव मातरनिशं कलयन्तु मान्ये || १६ ||
अर्थ – कमल सदृश नेत्रों वाली माननीय मां! आपके चरणों में किए गए प्रणाम संपत्ति प्रदान करने वाले, संपूर्ण इंद्रियों को आनंद देने वाले, साम्राज्य देने में समर्थ और सारे पापों को हर लेने के लिए सर्वथा उद्यत हैं, वे सदा मुझे ही अवलम्बन दें। मुझे ही आपकी चरण वंदना का शुभ अवसर सदा प्राप्त होता रहे।
यत्कटाक्ष-समुपासना-विधिः सेव-कस्य सकलार्थ-सम्पदः ।
सन्त-नोति वचनाङ्ग-मानसै-स्त्वां मुरारि-हृदयेश्वरीं भजे ॥ १७ ॥
अर्थ – जिनके कृपा कटाक्ष के लिए की गई उपासना उपासक के लिए संपूर्ण मनोरथों और संपत्तियों का विस्तार करती है, श्रीहरि की हृदयेश्वरी उन्हीं आप लक्ष्मी देवी का मैं मन, वाणी और शरीर से भजन करता हूं।
सरसिज-निलये सरोज-हस्ते धवल-तमांशुक-गन्धमाल्य-शोभे ।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवन-भूतिकरि प्रसीद मह्यं ॥ १८ ॥
अर्थ – हे भगवती नारायण की पत्नी आप कमल में निवास करने वाली है, आप के हाथो में नीलकमल शोभायमान है आप श्वेत वस्त्र, गंध और माला आदि से सुशोभित है, आपकी झांकी बड़ी मनोहर है, अद्वितीय है, हे त्रिभुवन के ऐश्वर्य प्रदान करनेवाली आप मुझ पर भी प्रसन्न हो जाईये।
दिग्ध-स्तिभिः कनककुम्भ-मुखावसृष्ट-स्वर्वाहिनी-विमलचारु-जलप्लु तांगीं ।
प्रात-र्नमामि जगतां जननी-मशेष-लोकाधिनाथ-गृहिणी-ममृताब्धि-पुत्रीं || १९ ॥
अर्थ – दिग्गजों द्वारा स्वर्ण कलश के मुख से गिराए गए, आकाशगंगा के स्वच्छ और मनोहर जल से जिन भगवान के श्रीअंगो का अभिषेक (स्नान) होता है, उस समस्त लोको के अधीश्वर भगवान विष्णु की गृहिणी, समुद्र तनया (क्षीरसागर पुत्री), जगतजननी भगवती लक्ष्मी को मै प्रातःकाल नमस्कार करता हू ।
कमले कमलाक्ष-वल्लभे त्वां करुणा-पूरतरङ्गी-तैर-पारङ्गैः ।
अवलोक-यमां-किञ्चनानां प्रथमं पात्रम-कृत्रिमं दयायाः || २० ||
अर्थ – कमल नयन केशव की कमनीय कामिनी कमले! मैं अकिंचन (दीन-हीन) मनुष्यों में अग्रगण्य हूं, अतएव तुम्हारी कृपा का स्वाभाविक पात्र हूं। तुम उमड़ती हुई करुणा की बाढ़ की तरह तरंगों के समान कटाक्षों द्वारा मेरी ओर देखो।
स्तुवन्ति ये स्तुति-भिरमू-भिरन्वहं त्रयीमयीं त्रिभुवन-मातरं रमां ।
गुणाधिका गुरु-तरभाग्य-भाजिनो (भागिनो) भवन्ति ते भुवि बुध-भाविता-शयाः || २१ ||
अर्थ – जो मनुष्य इन स्तुतियों द्वारा प्रतिदिन वेदत्रयी स्वरूपा त्रिभुवन-जननी भगवती लक्ष्मी की स्तुति करते हैं, वे इस भूतल पर महान गुणवान और अत्यंत सौभाग्यशाली होते हैं तथा विद्वान पुरुष भी उनके मनोभावों को जानने के लिए उत्सुक रहते हैं।
ॐ सुवर्ण-धारास्तोत्रं यच्छंकराचार्य निर्मितं |
त्रिसन्ध्यं यः पठेन्नित्यं स कुबेरसमो भवेत || २२ ||
अर्थ – यह उत्तम स्तोत्र जो आद्यगुरु शंकराचार्य विरचित स्तोत्र का (कनकधारा) का पाठ तीनो कालो में (प्रातःकाल मध्याह्नकाल-सायंकाल) करता है वो मनुष्य या साधक कुबेर के समान धनवान हो जाता है।
॥ इति श्रीमद्द शंकराचार्य विरचित कनकधारा स्तोत्र सम्पूर्णं॥
कनकधारा स्तोत्रम् की उत्पत्ति
कनकधारा स्तोत्रम् का जन्म एक प्रसिद्ध धार्मिक घटना से जुड़ा हुआ है। इसे आदिशंकराचार्य ने रचा था। कथा के अनुसार, यह स्तोत्र तब उत्पन्न हुआ जब एक निर्धन ब्राह्मण के घर एक दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति उत्पन्न हुई थी। ब्राह्मण के घर एक दिन भगवान विष्णु के प्रति उनकी भक्ति और विश्वास के बावजूद, उनकी स्थिति अत्यंत दीन-हीन हो गई।
आर्थिक संकट ने उनकी ज़िंदगी को बहुत कठिन बना दिया था। उनकी पत्नी की भी स्थिति बहुत ही दयनीय थी और उसे खाने के लिए भी कुछ नहीं मिलता था। इस कठिन स्थिति में, ब्राह्मण ने भगवान विष्णु से सहायता की प्रार्थना की। उन्होंने आदिशंकराचार्य से इस कठिनाई से मुक्ति पाने के लिए मार्गदर्शन मांगा। आदिशंकराचार्य ने इस स्थिति को जानकर ब्राह्मण को आश्वस्त किया और भगवान लक्ष्मी की आराधना करने का उपाय बताया।
आदिशंकराचार्य ने ब्राह्मण को कनकधारा स्तोत्रम् का पाठ करने के लिए प्रेरित किया। यह स्तोत्र भगवान लक्ष्मी की महिमा का वर्णन करता है और उनकी कृपा को प्राप्त करने के लिए भक्ति और समर्पण का माध्यम है। आदिशंकराचार्य ने इस स्तोत्र के माध्यम से भगवान लक्ष्मी की विशेष महिमा और दया का वर्णन किया। कनकधारा स्तोत्रम् का पाठ करने के बाद ब्राह्मण की किस्मत बदल गई और उनके घर में धन-धान्य की कोई कमी नहीं रही। उनकी आर्थिक स्थिति सुधर गई और उन्होंने भगवान लक्ष्मी की अनुकंपा को अनुभव किया। यह स्तोत्र आज भी भगवान लक्ष्मी की पूजा और आराधना में महत्वपूर्ण माना जाता है और इसे विशेष रूप से धन, समृद्धि और सुख-समृद्धि के लिए पढ़ा जाता है।
कनकधारा स्तोत्र के चमत्कार
कनकधारा स्तोत्र के कई चमत्कारी प्रभाव और लाभ बताए गए हैं, जो इसके पाठकों और भक्तों के जीवन को सकारात्मक रूप से प्रभावित करते हैं। यहाँ कुछ प्रमुख चमत्कारों का वर्णन किया गया है:
आर्थिक समृद्धि: कनकधारा स्तोत्र का नियमित पाठ आर्थिक संकट में राहत प्रदान कर सकता है। इसे पढ़ने से धन की कमी दूर हो सकती है और समृद्धि का आगमन हो सकता है। ब्राह्मण के परिवार की कथा, जिसमें उनकी दीन-हीन स्थिति के बाद आर्थिक सुधार हुआ, इसका एक उदाहरण है।
सौभाग्य और समृद्धि: इस स्तोत्र का पाठ करने से जीवन में सौभाग्य और समृद्धि प्राप्त होती है। यह स्तोत्र माता लक्ष्मी की कृपा को आकर्षित करता है, जो धन, ऐश्वर्य और सुख-शांति का प्रतीक हैं।
मन की शांति: कनकधारा स्तोत्र का जाप मानसिक तनाव और चिंता को दूर करने में सहायक होता है। यह मन को शांति और संतुलन प्रदान करता है, जिससे जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
स्वास्थ्य और लंबी उम्र: नियमित रूप से कनकधारा स्तोत्र का पाठ करने से स्वास्थ्य लाभ प्राप्त हो सकते हैं। यह शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में मदद करता है और जीवन की लंबी उम्र को प्रोत्साहित करता है।
पारिवारिक सुख: परिवार में सुख-शांति और harmony बनाए रखने के लिए भी यह स्तोत्र अत्यंत लाभकारी माना जाता है। परिवारिक समस्याओं को दूर करने और रिश्तों को सुधारने के लिए इसे पढ़ा जा सकता है।
शिक्षा और सफलता: कनकधारा स्तोत्र का पाठ विद्यार्थियों और पेशेवरों के लिए भी लाभकारी है। यह शिक्षा में सफलता प्राप्त करने, एकाग्रता बढ़ाने और करियर में उन्नति के लिए सहायक हो सकता है।
कष्टों और संकटों से मुक्ति: यह स्तोत्र जीवन के विभिन्न कष्टों और संकटों से मुक्ति प्रदान करने में सहायक हो सकता है। इसमें भगवान लक्ष्मी की विशेष कृपा की याचना की जाती है, जो हर प्रकार के संकटों से बचाव कर सकती है।
कनकधारा स्तोत्र के ये चमत्कार श्रद्धा और विश्वास के साथ किए गए पाठ के अनुसार प्रभावी होते हैं। इसे नियमित रूप से पाठ करने से भक्तों को सुख-समृद्धि और आशीर्वाद प्राप्त होते हैं।
कनकधारा स्तोत्र के फायदे
कनकधारा स्तोत्र का नियमित पाठ व्यक्ति के जीवन में अनेक लाभकारी प्रभाव ला सकता है। सबसे प्रमुख लाभ यह है कि यह आर्थिक समृद्धि को आकर्षित करता है। इस स्तोत्र का जाप विशेष रूप से आर्थिक संकटों से उबरने और धन-धान्य की कमी को दूर करने में सहायक होता है। भक्त इसे पढ़कर अपने वित्तीय मामलों में सुधार देख सकते हैं और आर्थिक समृद्धि का अनुभव कर सकते हैं।
दूसरा लाभ मानसिक शांति और संतुलन प्राप्त करना है। कनकधारा स्तोत्र का जाप व्यक्ति को आंतरिक शांति और मानसिक स्थिरता प्रदान करता है, जिससे जीवन में तनाव और चिंता कम होती है। यह मानसिक तनाव को दूर करके सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है, जिससे व्यक्ति अपने जीवन को अधिक संतुलित और सुखमय अनुभव करता है।
तीसरा लाभ पारिवारिक सुख और समृद्धि का है। इस स्तोत्र का पाठ परिवार में खुशहाली और सौहार्द बनाए रखने में मदद करता है। यह परिवारिक संबंधों को मजबूत करता है और पारिवारिक समस्याओं को सुलझाने में सहायक होता है। परिवार के सदस्यों के बीच सामंजस्य और प्रेम बढ़ाने के लिए इसे नियमित रूप से पढ़ा जा सकता है।
अंततः, कनकधारा स्तोत्र का पाठ स्वास्थ्य और लंबी उम्र में भी योगदान कर सकता है। यह व्यक्ति को शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार प्रदान करता है और जीवन की लंबी उम्र को प्रोत्साहित करता है। इस प्रकार, कनकधारा स्तोत्र के फायदे व्यापक और बहुपरकारी हैं, जो जीवन के विभिन्न पहलुओं में सकारात्मक परिवर्तन ला सकते हैं।
कनकधारा स्तोत्र वीडियो
FAQs – Kanakdhara Strot Hindi Mein
कनकधारा स्तोत्रम के क्या लाभ हैं?
कनकधारा स्तोत्रम के अनेक लाभ हैं, जो भक्तों के जीवन को बेहतर बनाने में सहायक होते हैं। सबसे प्रमुख लाभ यह है कि यह आर्थिक समृद्धि को आकर्षित करता है। इसके नियमित पाठ से धन की कमी दूर हो सकती है और वित्तीय संकट में राहत मिल सकती है। मानसिक शांति और संतुलन प्राप्त करना भी इसके लाभों में शामिल है; यह व्यक्ति को तनाव और चिंता से मुक्ति दिलाता है। पारिवारिक सुख और सौहार्द भी बढ़ता है, जिससे परिवारिक समस्याओं को सुलझाने में मदद मिलती है। इसके अतिरिक्त, यह स्वास्थ्य और लंबी उम्र में सुधार भी कर सकता है, शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में सहायक होता है। कुल मिलाकर, कनकधारा स्तोत्रम जीवन के विभिन्न पहलुओं में सकारात्मक प्रभाव डालता है और भक्तों को सुख-समृद्धि का अनुभव कराता है।
क्या हम प्रतिदिन कनकधारा स्तोत्र का जाप कर सकते हैं?
हां, आप प्रतिदिन कनकधारा स्तोत्र का जाप कर सकते हैं। इस स्तोत्र का नियमित पाठ या जाप न केवल आत्मिक शांति और संतुलन प्रदान करता है, बल्कि यह आर्थिक समृद्धि, पारिवारिक सुख और स्वास्थ्य लाभ भी दे सकता है। प्रतिदिन पाठ करने से भगवती लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है, जिससे जीवन की कठिनाइयाँ और संकट कम होते हैं। हालांकि, यह महत्वपूर्ण है कि जाप के दौरान पूर्ण श्रद्धा और समर्पण के साथ किया जाए। किसी भी धार्मिक अनुष्ठान की तरह, कनकधारा स्तोत्र का नियमित पाठ भी आपकी दैनिक दिनचर्या का हिस्सा बन सकता है और इसके लाभपूर्ण परिणाम प्राप्त करने में सहायक हो सकता है।
कनकधारा स्तोत्रम किसने गाया था?
कनकधारा स्तोत्रम की रचना और गायन आदिशंकराचार्य ने किया था। यह स्तोत्र उनके द्वारा उस समय की आर्थिक कठिनाई और संकट से उबारने के लिए लिखा गया था, जब एक निर्धन ब्राह्मण के घर में संकट आया था। आदिशंकराचार्य ने इस स्तोत्र के माध्यम से भगवान लक्ष्मी की कृपा की याचना की और ब्राह्मण के घर में धन-धान्य की कोई कमी नहीं रही। यह स्तोत्र आज भी भक्तों के लिए समृद्धि और सौभाग्य प्राप्त करने का महत्वपूर्ण साधन माना जाता है। आदिशंकराचार्य की भक्ति और स्नेह से प्रेरित होकर लिखा गया यह स्तोत्र भक्ति और श्रद्धा का प्रतीक है।
कनकधारा पूजा कैसे करें?
कनकधारा पूजा करने के लिए सबसे पहले एक स्वच्छ स्थान पर पूजा की तैयारी करें। पूजा स्थान को साफ करके वहां लक्ष्मी माता की एक सुंदर तस्वीर या मूर्ति स्थापित करें। फिर, एक दीपक जलाएं और फूल, चंदन, और प्रसाद तैयार रखें। कनकधारा स्तोत्र का पाठ शुरू करने से पहले, भगवान लक्ष्मी की आरती करें और उन्हें प्रणाम करें। तत्पश्चात, कनकधारा स्तोत्र का पाठ करें, जिसमें प्रत्येक श्लोक को सही उच्चारण और श्रद्धा के साथ पढ़ें। पूजा के अंत में, भगवान लक्ष्मी को प्रसाद अर्पित करें और उन्हें धन्यवाद दें। अंत में, घर के सभी सदस्यों को प्रसाद वितरित करें और पूजा के प्रभावी लाभ के लिए अपनी श्रद्धा और समर्पण को बनाए रखें।