Thursday, September 19, 2024
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गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र – Gajendra Moksham Stotram 2024-25

गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र (Gajendra Moksham Stotram), श्रीमद्भागवत महापुराण के आठवें स्कंध में वर्णित एक महत्त्वपूर्ण अध्याय है। यह स्तोत्र एक अलौकिक कथा का वर्णन करता है जिसमें एक हाथी, गजेंद्र, भगवान विष्णु की करुणा और कृपा से मोक्ष प्राप्त करता है। गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र का प्रमुख उद्देश्य मानव जीवन में भक्ति, शरणागति और ईश्वर की महिमा का प्रचार करना है।

गजेंद्र, एक महान हाथी, एक विशाल जंगल में निवास करता था। वह अपने परिवार और अन्य हाथियों के साथ सुखमय जीवन व्यतीत कर रहा था। एक दिन, अत्यंत गर्मी के कारण गजेंद्र और उसकी टोली पानी की खोज में एक तालाब पर पहुंचे। गजेंद्र जब पानी में प्रवेश कर जल पीने लगा, तभी एक मगरमच्छ ने उसके पैर को पकड़ लिया। गजेंद्र ने अपनी पूरी शक्ति का प्रयोग किया, परंतु वह मगरमच्छ के पकड़ से स्वयं को मुक्त नहीं कर सका। यह संघर्ष वर्षों तक चला और गजेंद्र की शक्ति क्षीण होती गई।

अंत में, गजेंद्र ने अपनी शक्ति की सीमाओं को स्वीकार कर लिया और भगवान विष्णु की शरण में जाने का निश्चय किया। उसने एक कमल का फूल उठाया और भगवान विष्णु की स्तुति करने लगा। गजेंद्र ने अपने पिछले जन्म की भक्ति और ज्ञान को स्मरण करते हुए अत्यंत भक्ति भाव से गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र का उच्चारण किया। यह स्तोत्र भगवान विष्णु की महिमा, करुणा और सर्वशक्तिमानता का वर्णन करता है।

गजेंद्र की इस प्रबल भक्ति और शरणागति से प्रभावित होकर भगवान विष्णु ने गरुड़ पर सवार होकर तुरंत वहां पहुंचे। उन्होंने अपने सुदर्शन चक्र से मगरमच्छ का वध किया और गजेंद्र को मोक्ष प्रदान किया। यह कथा भक्ति और शरणागति की महत्ता को दर्शाती है और यह सिखाती है कि जब सभी साधन विफल हो जाएं, तब ईश्वर की शरण ही अंतिम उपाय होता है।

गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र की व्याख्या और उसका पाठ भक्तों को यह संदेश देता है कि ईश्वर अपने भक्तों की प्रार्थनाओं को अवश्य सुनते हैं और उन्हें संकट से उबारते हैं। यह स्तोत्र न केवल भक्ति और विश्वास की गहराई को प्रकट करता है, बल्कि यह भी सिखाता है कि हमें अपने अहंकार और आत्मशक्ति की सीमाओं को पहचानकर ईश्वर की शरण में जाना चाहिए। भगवान विष्णु की करुणा और उनकी सहायता प्राप्त करने के लिए यह आवश्यक है कि हम सच्चे हृदय से उनकी स्तुति और प्रार्थना करें।

गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र एक प्रेरणादायक कथा है जो भक्ति मार्ग पर चलने वाले प्रत्येक साधक को यह विश्वास दिलाती है कि ईश्वर की कृपा से सभी बाधाओं का निवारण संभव है और मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है।



  • हिंदी / संस्कृत
  • English

|| गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र ||

श्री शुक उवाच –

एवं व्यवसितो बुद्ध्या समाधाय मनो हृदि ।
जजाप परमं जाप्यं प्राग्जन्मन्यनुशिक्षितम ॥१॥

गजेन्द्र उवाच –
ऊं नमो भगवते तस्मै यत एतच्चिदात्मकम ।
पुरुषायादिबीजाय परेशायाभिधीमहि ॥२॥

यस्मिन्निदं यतश्चेदं येनेदं य इदं स्वयं ।
योस्मात्परस्माच्च परस्तं प्रपद्ये स्वयम्भुवम ॥३॥

यः स्वात्मनीदं निजमाययार्पितं
क्वचिद्विभातं क्व च तत्तिरोहितम ।
अविद्धदृक साक्ष्युभयं तदीक्षते
स आत्म मूलोsवत् मां परात्परः ॥४॥

कालेन पंचत्वमितेषु कृत्स्नशो
लोकेषु पालेषु च सर्व हेतुषु ।
तमस्तदाऽऽऽसीद गहनं गभीरं
यस्तस्य पारेsभिविराजते विभुः ॥५॥

न यस्य देवा ऋषयः पदं विदु-
र्जन्तुः पुनः कोsर्हति गन्तुमीरितुम ।
यथा नटस्याकृतिभिर्विचेष्टतो
दुरत्ययानुक्रमणः स मावतु ॥६॥

दिदृक्षवो यस्य पदं सुमंगलम
विमुक्त संगा मुनयः सुसाधवः ।
चरन्त्यलोकव्रतमव्रणं वने
भूतात्मभूता सुहृदः स मे गतिः ॥७॥

न विद्यते यस्य न जन्म कर्म वा
न नाम रूपे गुणदोष एव वा ।
तथापि लोकाप्ययसम्भवाय यः
स्वमायया तान्यनुकालमृच्छति ॥८॥

तस्मै नमः परेशाय ब्रह्मणेsनन्तशक्तये ।
अरूपायोरुरूपाय नम आश्चर्य कर्मणे ॥९॥

नम आत्म प्रदीपाय साक्षिणे परमात्मने ।
नमो गिरां विदूराय मनसश्चेतसामपि ॥१०॥

सत्त्वेन प्रतिलभ्याय नैष्कर्म्येण विपश्चिता ।
नमः कैवल्यनाथाय निर्वाणसुखसंविदे ॥११॥

नमः शान्ताय घोराय मूढाय गुण धर्मिणे ।
निर्विशेषाय साम्याय नमो ज्ञानघनाय च ॥१२॥

क्षेत्रज्ञाय नमस्तुभ्यं सर्वाध्यक्षाय साक्षिणे ।
पुरुषायात्ममूलाय मूलप्रकृतये नमः ॥१३॥

सर्वेन्द्रियगुणद्रष्ट्रे सर्वप्रत्ययहेतवे ।
असताच्छाययोक्ताय सदाभासाय ते नमः ॥१४॥

नमो नमस्तेsखिल कारणाय
निष्कारणायाद्भुत कारणाय ।
सर्वागमान्मायमहार्णवाय
नमोपवर्गाय परायणाय ॥१५॥

गुणारणिच्छन्न चिदूष्मपाय
तत्क्षोभविस्फूर्जित मानसाय ।
नैष्कर्म्यभावेन विवर्जितागम-
स्वयंप्रकाशाय नमस्करोमि ॥१६॥

मादृक्प्रपन्नपशुपाशविमोक्षणाय
मुक्ताय भूरिकरुणाय नमोsलयाय ।
स्वांशेन सर्वतनुभृन्मनसि प्रतीत-
प्रत्यग्दृशे भगवते बृहते नमस्ते ॥१७॥

आत्मात्मजाप्तगृहवित्तजनेषु सक्तै-
र्दुष्प्रापणाय गुणसंगविवर्जिताय ।
मुक्तात्मभिः स्वहृदये परिभाविताय
ज्ञानात्मने भगवते नम ईश्वराय ॥१८॥

यं धर्मकामार्थविमुक्तिकामा
भजन्त इष्टां गतिमाप्नुवन्ति ।
किं त्वाशिषो रात्यपि देहमव्ययं
करोतु मेsदभ्रदयो विमोक्षणम् ॥१९॥

एकान्तिनो यस्य न कंचनार्थ
वांछन्ति ये वै भगवत्प्रपन्नाः ।
अत्यद्भुतं तच्चरितं सुमंगलं
गायन्त आनन्द समुद्रमग्नाः ॥२०॥

तमक्षरं ब्रह्म परं परेश-
मव्यक्तमाध्यात्मिकयोगगम्यम ।
अतीन्द्रियं सूक्ष्ममिवातिदूर-
मनन्तमाद्यं परिपूर्णमीडे ॥२१॥

यस्य ब्रह्मादयो देवा वेदा लोकाश्चराचराः ।
नामरूपविभेदेन फल्ग्व्या च कलया कृताः ॥२२॥

यथार्चिषोsग्नेः सवितुर्गभस्तयो
निर्यान्ति संयान्त्यसकृत् स्वरोचिषः ।
तथा यतोsयं गुणसंप्रवाहो
बुद्धिर्मनः खानि शरीरसर्गाः ॥२३॥

स वै न देवासुरमर्त्यतिर्यंग
न स्त्री न षण्डो न पुमान न जन्तुः ।
नायं गुणः कर्म न सन्न चासन
निषेधशेषो जयतादशेषः ॥२४॥

जिजीविषे नाहमिहामुया कि-
मन्तर्बहिश्चावृतयेभयोन्या ।
इच्छामि कालेन न यस्य विप्लव-
स्तस्यात्मलोकावरणस्य मोक्षम ॥२५॥

सोsहं विश्वसृजं विश्वमविश्वं विश्ववेदसम ।
विश्वात्मानमजं ब्रह्म प्रणतोsस्मि परं पदम् ॥२६॥

योगरन्धित कर्माणो हृदि योगविभाविते ।
योगिनो यं प्रपश्यन्ति योगेशं तं नतोsस्म्यहम् ॥२७॥

नमो नमस्तुभ्यमसह्यवेग-
शक्तित्रयायाखिलधीगुणाय ।
प्रपन्नपालाय दुरन्तशक्तये
कदिन्द्रियाणामनवाप्यवर्त्मने ॥२८॥

नायं वेद स्वमात्मानं यच्छ्क्त्याहंधिया हतम् ।
तं दुरत्ययमाहात्म्यं भगवन्तमितोsस्म्यहम् ॥२९॥

श्री शुकदेव उवाच –
एवं गजेन्द्रमुपवर्णितनिर्विशेषं
ब्रह्मादयो विविधलिंगभिदाभिमानाः ।
नैते यदोपससृपुर्निखिलात्मकत्वात
तत्राखिलामरमयो हरिराविरासीत् ॥३०॥

तं तद्वदार्त्तमुपलभ्य जगन्निवासः
स्तोत्रं निशम्य दिविजैः सह संस्तुवद्भि : ।
छन्दोमयेन गरुडेन समुह्यमान –
श्चक्रायुधोsभ्यगमदाशु यतो गजेन्द्रः ॥३१॥

सोsन्तस्सरस्युरुबलेन गृहीत आर्त्तो
दृष्ट्वा गरुत्मति हरिम् ख उपात्तचक्रम ।
उत्क्षिप्य साम्बुजकरं गिरमाह कृच्छा –
नारायणाखिलगुरो भगवन्नमस्ते ॥३२॥

तं वीक्ष्य पीडितमजः सहसावतीर्य
सग्राहमाशु सरसः कृपयोज्जहार ।
ग्राहाद् विपाटितमुखादरिणा गजेन्द्रं
सम्पश्यतां हरिरमूमुच दुस्त्रियाणाम् ॥३३॥

— श्री गजेन्द्र कृत

|| Gajendra Moksham Stotram ||

Shree Shuk uvaach –

evan vyavasito buddhiya samaadhaay mano hrdi॥
jajap paraman japyan praagjanmanyaanushikshitam ॥1॥

Gajendr uvaach –
oon namo bhagavate tasmai yat etachchidaatmyam॥
purushayaadibeejaay pareshayaabhidhimahi ॥2॥

yasminnidan yatshchedan yenedan ya idan svayan॥
yosmaatparasamaachch prastan prapadye svayambhuvam ॥3॥

yah svaatmanidan nijamaayaarpitan
kvachidvibhaatan kv ch tattirohitam॥
avidyaadrk lakshanubhayan tadikshate
sa aatma moolosvat maan parataparah ॥4॥

kaalen panchatvamiteshu krtsnasho
lokeshu paleshu ch sarv kaayashu॥
tamastadaaseed gahanan gabheeran
yastasy paaresabhiviraajate vibhuh ॥5॥

na yasy deva rshayah padan vidu-
rajantuh punahpraapti kosherahati gantumiritum॥
yatha natasyaakrtibhirvicheshtato
dooratyaanukramanah sa maavatu ॥6॥

didrkshavo yasy padan samungalam
vimukt sanga manushyah susaadhavah॥
charantyalokavratamavaranan vane
bhootaatmabhoot suhrdah sa me gatih ॥7॥

na vidyate yasy na janm karm va
na naam roope gunadosh ev va॥
tathaapi lokaapyasmaabhavaay yah
svamaaya taanyanukaalamrchchhati ॥8॥

tasmai namah pareshaay brahmanesantashaktaye॥
aroopayoruroopaay nam chamatkaar karmane ॥jay॥

nam aatm pradeepaay saakshine paramaatmane॥
namo giran viduraay manashchetasaamapi ॥10॥

sattven pratilaabhyaay naishkarmayen vipashchita॥
namah kaivalyanaathaay nirvaanasukhasanvide ॥॥

namah shaantaay ghoraay moodhaay gun dharmine॥
nirvisheshaay saamyai namo gyaanaghnaay ch ॥12॥

gyaanaay namastubhyan sarvaadhyakshaay kshetre॥
purushaayaatmamoolaay moolaprakrtaye namah ॥5॥

sarvendriyagunadrashtre sarvapratyayahetave॥
asatachchayayoktaay sadaabhaasay te namah 14॥

namoskhil namaste kaaranaay
nishkaranayaadbhut kaaranaay॥
sarvaagamanamayamahaarnaay
namopavargaay paraayanaay ॥15॥

gunaarichchhann chidushmapaay
tatkshobhavisphoorjit manasaay॥
naishkarmyabhaaven vivarjitaagam-
svayamprakaashaay namaskaaromi ॥16॥

maadrkaprapannapashupaashavimokshanaay
muktaay bhoorikurnaay namoshalaay॥
svaanshen sarvatanubhrnmansi spasht-
pratyagdrshe bhagavate brhate namaste ॥17॥

aatmaatmajaaptagrhavittajaneshu saktai-
rudushpraapanaay gunasangavivarjitaay॥
muktaatmabhih svahrdaye paribhaavitay
gyaanaatmane bhagavate naam eeshvaraay ॥18॥

yan dharmakaamaarthavimuktikaama
bhajanat ishtaan gatimaapnuvanti॥
kin tvashisho ratyaapi dehamavyayan
karotu mesadbhradayo vimokshanam ॥19॥

ekaantino yasy na kanchanaarth
vanchanti ye vai bhagavatprapannah॥
atyadbhutan tachchharitan samungalan
gaayant samudr aanandamagnaah ॥20॥

tamaaksharan brahm paran paresh-
mavyaktamaadhyaatmikayogagamyam॥
atiindriyan sookshmamivaatidoor-
manantamaadyan uttamameede ॥21॥

yasy brahmaadayo deva veda lokashcharaachaarah॥
naamaroopavibheden phalgvya ch kalyaan krtah ॥22॥

yathaarchishosagneh saviturgbhastayo
niryaanti sanyantyasakrt svarochish:॥
tatha yatosyaan gunasampravaaho
buddhirmanah khaani shareerasargah ॥3॥

sa vai na devaasuramartyatiryang
na stree na shando na pumaan na jantuh॥
nayan gunah karm na sann chaasan
nishedhashesho jayataadasheshah ॥24॥

jijeevishe nahamihaamuya ki-
mantarbahishchaavrtayebhyonya॥
ichchhaami kaalen na yasy viplav-
stasyaatmalokaavaranasy moksham ॥25॥

soshan vishvasrjan vishvamavishvan vishvavedasam॥
vishvaatmaanamajan brahm praanatosmi paran padam ॥26॥

yogaraandhit karmano hrdi yogavibhaavite॥
yogino yan prapashyanti yogan tan natossmyaham ॥27॥

namo namastubhyamasahyaveg-
shaktitrayaakhiladhigunaay॥
prapannapaalaay doorantashaktaye
kaadindriyaanaamanavaapyavartmane ॥28॥

nayan ved svamaatmaanan yachchhaktyaahandhiya hatam॥
tan dooratyamaahaatmyan bhagavantamitosmyaham ॥29॥

shree shukadev uvaach –
evan gajendramupavarnitanirvisheshan
brahmaadayo vividhalingabhidaabhimaanah॥
naite yadopaassurnikhilaatmakatvaat
tatraakhilaaraamayo hariraavaseet ॥30॥

tan tadvadarttamupalaabhy jagannivaasah
stotran nishmy divyah sah sanstuvadbhih॥
chhandomayen garuden samuhyamaan –
shchakrayudhosabhyagamadaashu yato gajendrah ॥31॥

sosantassarasyurubalen grheet aartato
drshtva garutamati harim kh upattachakram॥
utkshepy sambujakaran giramah krchchha –
naaraayanaakhilaguro bhagavaanmaste ॥32॥

tan veekshy peeditamajah sahasaavatiry
sagrahamaashu sarasah krpaayojjahaar॥
graahad vipatimukhaadrina gajendran
sampashyataan harirmumuch dustriyaanaam ॥33॥

— Shree Gajendra krt॥


गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र के लाभ

गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र, श्रीमद्भागवत महापुराण के आठवें स्कंध में वर्णित एक पवित्र और प्रभावशाली स्तोत्र है। यह स्तोत्र भगवान विष्णु की महिमा और करुणा का गुणगान करता है और इसे पढ़ने और सुनने से अनेक आध्यात्मिक और मानसिक लाभ प्राप्त होते हैं। इस स्तोत्र के पाठ से भक्ति, विश्वास, शांति, और समर्पण की भावना में वृद्धि होती है। यहाँ गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र के लाभों का विस्तृत विवरण दिया गया है:

भक्ति और श्रद्धा में वृद्धि

गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र का पाठ भगवान विष्णु के प्रति भक्ति और श्रद्धा को प्रगाढ़ बनाता है। गजेंद्र की कथा यह सिखाती है कि सच्चे दिल से की गई प्रार्थना और भक्ति से भगवान विष्णु अवश्य प्रसन्न होते हैं और अपने भक्त की सहायता करते हैं। यह स्तोत्र हमारे अंदर ईश्वर के प्रति अटूट विश्वास और समर्पण की भावना को मजबूत करता है।

मानसिक शांति और संतुलन

इस स्तोत्र का नियमित पाठ मानसिक शांति और संतुलन प्रदान करता है। गजेंद्र के संघर्ष और उसकी भक्ति की कथा हमें यह सिखाती है कि जीवन में कठिनाइयाँ और चुनौतियाँ तो आती हैं, लेकिन ईश्वर की शरण में जाने से उन सभी समस्याओं का समाधान मिल सकता है। यह विश्वास और ज्ञान हमारे मन को शांत और स्थिर बनाता है।

संकट से मुक्ति

गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र का पाठ संकट और विपत्ति से मुक्ति दिलाता है। गजेंद्र की कथा में जब वह मगरमच्छ के चंगुल में फंस गया था, तब उसने भगवान विष्णु की शरण में जाकर उन्हें पुकारा। भगवान विष्णु ने उसकी प्रार्थना सुनी और उसे संकट से मुक्त किया। यह कथा हमें यह सिखाती है कि जीवन में जब हम किसी भी प्रकार के संकट में हों, तो भगवान विष्णु की शरण में जाने से हमें मुक्ति मिल सकती है।

आध्यात्मिक उन्नति

गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र का पाठ हमारी आध्यात्मिक उन्नति में सहायक होता है। यह स्तोत्र भगवान विष्णु की महिमा और उनकी असीम शक्ति का वर्णन करता है, जिससे हमारे अंदर आध्यात्मिक जागरूकता और ज्ञान की वृद्धि होती है। यह हमें जीवन के वास्तविक उद्देश्य और ईश्वर की अनुकंपा का अहसास कराता है।

नकारात्मक ऊर्जा से सुरक्षा

गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र का पाठ नकारात्मक ऊर्जा और बुरी शक्तियों से सुरक्षा प्रदान करता है। भगवान विष्णु की महिमा का गुणगान करने वाला यह स्तोत्र एक शक्तिशाली कवच के रूप में कार्य करता है, जो हमें बुरी दृष्टि और नकारात्मक शक्तियों से बचाता है।

शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार

इस स्तोत्र का नियमित पाठ शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को भी सुधारता है। गजेंद्र की कथा हमें यह सिखाती है कि जीवन में संघर्ष और कठिनाइयों के समय भी हमें धैर्य और विश्वास बनाए रखना चाहिए। यह मानसिक दृढ़ता और सकारात्मकता को बढ़ावा देता है, जिससे हमारा शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य भी अच्छा रहता है।

परिवार और समाज में सुख-शांति

गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र का पाठ करने से परिवार और समाज में सुख-शांति का वातावरण बनता है। भगवान विष्णु की महिमा का गान करने वाला यह स्तोत्र हमें सिखाता है कि ईश्वर की शरण में जाने से सभी प्रकार के कलह और विवाद समाप्त हो सकते हैं और हमारे परिवार और समाज में शांति और प्रेम का संचार हो सकता है।

आत्मविश्वास में वृद्धि

गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र का पाठ हमारे आत्मविश्वास को बढ़ाता है। गजेंद्र की कथा हमें यह सिखाती है कि हमें अपने जीवन में आने वाली कठिनाइयों से डरना नहीं चाहिए, बल्कि धैर्य और विश्वास के साथ उनका सामना करना चाहिए। भगवान विष्णु की कृपा से हम सभी प्रकार की बाधाओं को पार कर सकते हैं और अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर सकते हैं।

मोक्ष की प्राप्ति

गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र का सबसे प्रमुख लाभ यह है कि इसका पाठ मोक्ष की प्राप्ति में सहायक होता है। गजेंद्र की कथा हमें यह सिखाती है कि जब हम सच्चे हृदय से भगवान विष्णु की शरण में जाते हैं और उनकी स्तुति करते हैं, तो हमें मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह स्तोत्र हमारे जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति दिलाकर हमें मोक्ष का मार्ग दिखाता है।

समर्पण और विनम्रता

इस स्तोत्र का पाठ हमें समर्पण और विनम्रता की शिक्षा देता है। गजेंद्र ने अपनी शक्ति और अहंकार को त्यागकर भगवान विष्णु की शरण में जाकर उनके प्रति समर्पण दिखाया। यह हमें यह सिखाता है कि हमें अपने अहंकार और आत्मशक्ति की सीमाओं को पहचानकर ईश्वर की शरण में जाना चाहिए और उनकी करुणा और कृपा पर विश्वास करना चाहिए।

गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र एक अत्यंत पवित्र और प्रभावशाली स्तोत्र है जो भगवान विष्णु की महिमा और करुणा का गुणगान करता है। इसका नियमित पाठ भक्ति, विश्वास, शांति, और समर्पण की भावना को बढ़ावा देता है और हमारे जीवन में अनेक आध्यात्मिक और मानसिक लाभ प्रदान करता है। यह स्तोत्र हमें संकट और विपत्ति से मुक्ति दिलाता है, मानसिक शांति और संतुलन प्रदान करता है, और मोक्ष की प्राप्ति में सहायक होता है। इसलिए, गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र का पाठ सभी भक्तों के लिए अत्यंत लाभकारी है।

गजेंद्र मोक्ष का पाठ कितने दिन करना चाहिए?

गजेंद्र मोक्ष का पाठ विभिन्न धार्मिक परंपराओं और व्यक्तिगत विश्वासों के आधार पर किया जाता है। आमतौर पर, यह पाठ 7 दिन, 11 दिन, या 21 दिन तक किया जाता है। कई भक्त इसे विशेष अवसरों जैसे अमावस्या, पूर्णिमा, या अन्य धार्मिक दिनों पर भी करते हैं। व्यक्ति की स्थिति और उद्देश्य के अनुसार पाठ की अवधि तय की जाती है।

गजेंद्र मोक्ष का पाठ करने से क्या लाभ होता है?

गजेंद्र मोक्ष का पाठ करने से निम्नलिखित लाभ होते हैं:

संकट से मुक्ति: यह पाठ संकट और परेशानियों से मुक्ति दिलाने में मदद करता है। गजेंद्र मोक्ष की कथा के अनुसार, भगवान विष्णु ने गजेंद्र की मदद की, इसलिए पाठ करने से कठिनाइयों में राहत मिलती है।

भक्तिकर्मी में वृद्धि: गजेंद्र मोक्ष के पाठ से भक्ति और आस्था में वृद्धि होती है, और भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है।

स्वास्थ्य और समृद्धि: यह पाठ स्वास्थ्य और समृद्धि के लिए भी लाभकारी माना जाता है, और जीवन में सुख और शांति प्राप्त करने में मदद करता है।

गजेंद्र मोक्ष में कितने श्लोक हैं?

गजेंद्र मोक्ष के पाठ में कुल 33 श्लोक होते हैं। ये श्लोक गजेंद्र की कहानी और भगवान विष्णु के प्रकट होने के विवरण को वर्णित करते हैं।

गजेंद्र मोक्ष में मगरमच्छ कौन था?

गजेंद्र मोक्ष की कथा में मगरमच्छ एक राक्षस था, जिसे “अग्रसर्व” के नाम से भी जाना जाता है। यह मगरमच्छ गजेंद्र के साथ एक जलाशय में निवास करता था और गजेंद्र को पकड़ लिया था। गजेंद्र ने भगवान विष्णु की प्रार्थना की और भगवान ने मगरमच्छ को हराकर गजेंद्र को मुक्ति दी।

Hemlata
Hemlatahttps://www.chalisa-pdf.com
Ms. Hemlata is a prominent Indian author and spiritual writer known for her contributions to the realm of devotional literature. She is best recognized for her work on the "Chalisa", a series of devotional hymns dedicated to various Hindu deities. Her book, available on Chalisa PDF, has garnered widespread acclaim for its accessible presentation of these spiritual texts.
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