सूर्य आदित्य हृदय स्तोत्रम (Aditya Hridaya Stotra) हिंदू धर्म में एक अत्यंत प्रभावशाली और पवित्र स्तोत्र है, जिसे विशेष रूप से भगवान सूर्य की आराधना के लिए पाठ किया जाता है। इसका उल्लेख प्रमुख रूप से रामायण के युद्ध कांड में मिलता है, जब भगवान राम रावण के साथ महायुद्ध में संलग्न होते हैं और उन्हें मार्गदर्शन देने के लिए ऋषि अगस्त्य भगवान सूर्य की उपासना का सुझाव देते हैं। यह स्तोत्र भगवान सूर्य को समर्पित है, जो जीवन, ऊर्जा, और प्रकाश के प्रतीक माने जाते हैं। आप हमारी वेबसाइट में हनुमान चालीसा और श्री हनुमान बजरंग बाण भी पढ़ सकते हैं।
‘आदित्य’ भगवान सूर्य का ही एक नाम है, जिसका अर्थ है अदिति का पुत्र। यह स्तोत्र इस तथ्य को उजागर करता है कि भगवान सूर्य न केवल संसार के जीवों को जीवनदायिनी ऊर्जा प्रदान करते हैं, बल्कि उनका हृदय प्रत्येक प्राणी के अंदर निवास करता है। यह प्रार्थना व्यक्ति के मन को स्थिरता, शांति और आत्मबल प्रदान करती है।
सूर्य उपासना का महत्व भारतीय संस्कृति में आदिकाल से रहा है। इसे स्वास्थ्य, शक्ति और सकारात्मकता के स्रोत के रूप में माना जाता है। आदित्य हृदय स्तोत्र का नियमित पाठ मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभकारी माना जाता है। इसे विशेष रूप से तब पढ़ा जाता है जब व्यक्ति जीवन में किसी चुनौती का सामना कर रहा हो या जब आत्मविश्वास की कमी महसूस हो रही हो।
इस स्तोत्र में भगवान सूर्य को त्रैलोक्य के अधिपति, अजेय और समस्त संसार को गति प्रदान करने वाले के रूप में वर्णित किया गया है। इसे सुनने या पढ़ने मात्र से व्यक्ति को आंतरिक शांति, साहस और ऊर्जा की अनुभूति होती है।
Aditya Hridaya Stotram Lyrics
- Hindi
- English
Aditya Hridaya Stotra in Hindi
॥ आदित्य हृदय स्तोत्रम् ॥
(विनियोग)
ॐ अस्य आदित्यह्रदय स्तोत्रस्य
अगस्त्यऋषि: अनुष्टुप्छन्दः आदित्यह्रदयभूतो।
भगवान् ब्रह्मा देवता निरस्ताशेषविघ्नतया
ब्रह्माविद्यासिद्धौ सर्वत्र जयसिद्धौ च विनियोगः॥
ततो युद्धपरिश्रान्तंसमरे चिन्तया स्थितम्।
रावणं चाग्रतो दृष्ट्वायुद्धाय समुपस्थितम्॥1॥
दैवतैश्च समागम्यद्रष्टुमभ्यागतो रणम्।
उपागम्याब्रवीद्राममगस्त्योभगवान् ऋषिः॥2॥
राम राम महाबाहोशृणु गुह्यं सनातनम्।
येन सर्वानरीन् वत्ससमरे विजयिष्यसि॥3॥
आदित्यहृदयं पुण्यंसर्वशत्रुविनाशनम्।
जयावहं जपेन्नित्यम्अक्षय्यं परमं शिवम्॥4॥
सर्वमङ्गलमाङ्गल्यंसर्वपापप्रणाशनम्।
चिन्ताशोकप्रशमनम्आयुर्वर्धनमुत्तमम्॥5॥
रश्मिमंतं समुद्यन्तंदेवासुरनमस्कृतम्।
पूजयस्व विवस्वन्तंभास्करं भुवनेश्वरम्॥6॥
सर्वदेवात्मको ह्येषतेजस्वी रश्मिभावनः।
एष देवासुरगणाँल्लोकान्पाति गभस्तिभिः॥7॥
एष ब्रह्मा च विष्णुश्चशिवः स्कन्दः प्रजापतिः।
महेन्द्रो धनदः कालोयमः सोमो ह्यपां पतिः॥8॥
पितरो वसवः साध्याह्यश्विनौ मरुतो मनुः।
वायुर्वह्निः प्रजाप्राणऋतुकर्ता प्रभाकरः॥9॥
आदित्यः सविता सूर्यःखगः पूषा गभस्तिमान्।
सुवर्णसदृशो भानुर्हिरण्यरेतादिवाकरः॥10॥
हरिदश्वः सहस्रार्चिःसप्तसप्तिर्मरीचिमान्।
तिमिरोन्मथनः शम्भुस्त्वष्टामार्ताण्ड अंशुमान्॥11॥
हिरण्यगर्भः शिशिरस्तपनोभास्करो रविः।
अग्निगर्भोऽदितेः पुत्रःशङ्खः शिशिरनाशनः॥12॥
व्योमनाथस्तमोभेदीऋग्यजुःसामपारगः।
घनवृष्टिरपां मित्रोविन्ध्यवीथीप्लवङ्गमः॥13॥
आतपी मण्डली मृत्युःपिङ्गलः सर्वतापनः।
कविर्विश्वो महातेजाःरक्तः सर्वभवोद्भवः॥14॥
नक्षत्रग्रहताराणामधिपोविश्वभावनः।
तेजसामपि तेजस्वीद्वादशात्मन् नमोऽस्तु ते॥15॥
नमः पूर्वाय गिरयेपश्चिमायाद्रये नमः।
ज्योतिर्गणानां पतयेदिनाधिपतये नमः॥16॥
जयाय जयभद्रायहर्यश्वाय नमो नमः।
नमो नमः सहस्रांशोआदित्याय नमो नमः॥17॥
नम उग्राय वीरायसारङ्गाय नमो नमः।
नमः पद्मप्रबोधायमार्ताण्डाय नमो नमः॥18॥
ब्रह्मेशानाच्युतेशायसूर्यायादित्यवर्चसे।
भास्वते सर्वभक्षायरौद्राय वपुषे नमः॥19॥
तमोघ्नाय हिमघ्नायशत्रुघ्नायामितात्मने।
कृतघ्नघ्नाय देवायज्योतिषां पतये नमः॥20॥
तप्तचामीकराभायवह्नये विश्वकर्मणे।
नमस्तमोऽभिनिघ्नायरुचये लोकसाक्षिणे॥21॥
नाशयत्येष वै भूतंतदेव सृजति प्रभुः।
पायत्येष तपत्येषवर्षत्येष गभस्तिभिः॥22॥
एष सुप्तेषु जागर्तिभूतेषु परिनिष्ठितः।
एष एवाग्निहोत्रं चफलं चैवाग्निहोत्रिणाम्॥23॥
वेदाश्च क्रतवश्चैवक्रतूनां फलमेव च।
यानि कृत्यानि लोकेषुसर्व एष रविः प्रभुः॥24॥
एनमापत्सु कृच्छ्रेषुकान्तातेषु भयेषु च।
कीर्तयन् पुरुषःकश्चिन्नावसीदति राघव॥25॥
पूजयस्वैनमेकाग्रोदेवदेवं जगत्पतिम्।
एतत् त्रिगुणितं जप्त्वायुद्धेषु विजयिष्यसि॥26॥
अस्मिन् क्षणे महाबाहोरावणं त्वं वधिष्यसि।
एवमुक्त्वा तदागस्त्योजगाम च यथागतम्॥27॥
एतच्छ्रुत्वा महातेजानष्टशोकोऽभवत्तदा।
धारयामास सुप्रीतोराघवः प्रयतात्मवान्॥28॥
आदित्यं प्रेक्ष्य जप्त्वातु परं हर्षमवाप्तवान्।
त्रिराचम्य शुचिर्भूत्वाधनुरादाय वीर्यवान्॥29॥
रावणं प्रेक्ष्य हृष्टात्मायुद्धाय समुपागमत्।
सर्वयत्नेन महता वधेतस्य धृतोऽभवत्॥30॥
अथ रविरवदन्निरीक्ष्य रामंमुदितमनाः परमं प्रहृष्यमाणः।
निशिचरपतिसंक्षयं विदित्वासुरगणमध्यगतो वचस्त्वरेति॥31॥
॥ इति आदित्यहृदयम् मन्त्रस्य ॥
॥ Aditya Hridaya Stotram in English ॥
(Viniyoga)
Om Asya Adityahradaya Stotrasya
Agastyarishih Anushtupchhandah Aditya-hridayabhuto।
Bhagavan Brahma Devata Nirastasheshavighnataya
Brahmavidyasiddhau Sarvatra Jayasiddhau Cha Viniyogah॥
Tato YuddhaparishrantamSamare Chintaya Sthitam।
Ravanam Chagrato DrishtvaYuddhaya Samupasthitam॥1॥
Daivataishcha SamagamyaDrashtumabhyagato Ranam।
UpagamyabravidramamagastyoBhagavan Rishih॥2॥
Rama Rama MahabahoShrinu Guhyam Sanatanam।
Yena Sarvanarin VatsaSamare Vijayishyasi॥3॥
Adityahridayam PunyamSarvashatruvinashanam।
Jayavaham JapennityamAkshayyam Paramam Shivam॥4॥
SarvamangalamangalyamSarvapapapranashanam।
ChintashokaprashamanamAyurvardhanamuttamam॥5॥
Rashmimantam SamudyantamDevasuranamaskritam।
Pujayasva VivasvantamBhaskaram Bhuvaneshvaram॥6॥
Sarvadevatmako HyeshaTejasvi Rashmibhavanah।
Esha DevasuragananllokanPati Gabhastibhih॥7॥
Esha Brahma Cha VishnushchaShivah Skandah Prajapatih।
Mahendro Dhanadah KaloYamah Somo Hyapam Patih॥8॥
Pitaro Vasavah SadhyaHyashvinau Maruto Manuh।
Vayurvahnih PrajapranaRitukarta Prabhakarah॥9॥
Adityah Savita SuryahKhagah Pusha Gabhastiman।
Suvarnasadrisho BhanurhiranyaretaDivakarah॥10॥
Haridashvah SahasrarchihSaptasaptirmarichiman।
Timironmathanah ShambhustvashtaMartanda Anshuman॥11॥
Hiranyagarbhah ShishirastapanoBhaskaro Ravih।
Agnigarbhoaditeh PutrahShankhah Shishiranashanah॥12॥
VyomanathastamobhediRigyajuhsamaparagah।
Ghanavrishtirapam MitroVindhyavithiplavangamah॥13॥
Atapi Mandali MrityuhPingalah Sarvatapanah।
Kavirvishvo MahatejahRaktah Sarvabhavodbhavah॥14॥
NakshatragrahataranamadhipoVishvabhavanah।
Tejasamapi TejasviDvadashatman Namoastu Te॥15॥
Namah Purvaya GirayePashchimayadraye Namah।
Jyotirgananam PatayeDinadhipataye Namah॥16॥
Jayaya JayabhadrayaHaryashvaya Namo Namah।
Namo Namah SahasranshoAdityaya Namo Namah॥17॥
Nama Ugraya VirayaSarangaya Namo Namah।
Namah PadmaprabodhayaMartandaya Namo Namah॥18॥
BrahmeshanachyuteshayaSuryayadityavarchase।
Bhasvate SarvabhakshayaRaudraya Vapushe Namah॥19॥
Tamoghnaya HimaghnayaShatrughnayamitatmane।
Kritaghnaghnaya DevayaJyotisham Pataye Namah॥20॥
TaptachamikarabhayaVahnaye Vishvakarmane।
NamastamoabhinighnayaRuchaye Lokasakshine॥21॥
Nashayatyesha Vai BhutamTadeva Srijati Prabhuh।
Payatyesha TapatyeshaVarshatyesha Gabhastibhih॥22॥
Esha Supteshu JagartiBhuteshu Parinishthitah।
Esha Evagnihotram ChaPhalam Chaivagnihotrinam॥23॥
Vedashcha KratavashchaivaKratunam Phalameva Cha।
Yani Krityani LokeshuSarva Esha Ravih Prabhuh॥24॥
Enamapatsu KrichchhreshuKantateshu Bhayeshu Cha।
Kirtayan PurushahKashchinnavasidati Raghava॥25॥
PujayasvainamekagroDevadevam Jagatpatim।
Etat Trigunitam JaptvaYuddheshu Vijayishyasi॥26॥
Asmin Kshane MahabahoRavanam Tvam Vadhishyasi।
Evamuktva TadagastyoJagama Cha Yathagatam॥27॥
Etachchhrutva MahatejaNashtashokoabhavattada।
Dharayamasa SupritoRaghavah Prayatatmavan॥28॥
Adityam Prekshya JaptvaTu Param Harshamavaptavan।
Trirachamya ShuchirbhutvaDhanuradaya Viryavan॥29॥
Ravanam Prekshya HrishtatmaYuddhaya Samupagamat।
Sarvayatnena Mahata VadheTasya Dhritoabhavat॥30॥
Atha Raviravadannirikshya RamamMuditamanah Paramam Prahrishyamanah।
Nishicharapatisankshayam ViditvaSuraganamadhyagato Vachastvareti॥31॥
॥ Iti Adityahridayam Mantrasya ॥
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सूर्य आदित्य हृदय स्तोत्र का महत्व
सूर्य आदित्य हृदय स्तोत्रम का भारतीय धार्मिक और सांस्कृतिक परंपरा में अत्यधिक महत्व है। यह स्तोत्र भगवान सूर्य की आराधना और उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए अत्यंत प्रभावी माना जाता है। इसका महत्व निम्नलिखित कारणों से है:
- आध्यात्मिक बल और आत्मविश्वास:
आदित्य हृदय स्तोत्रम व्यक्ति को मानसिक शांति, आत्मविश्वास और धैर्य प्रदान करता है। यह स्तोत्र भगवान सूर्य की शक्ति को स्वीकारते हुए व्यक्ति को मानसिक रूप से मजबूत और स्थिर बनाता है। - स्वास्थ्य लाभ:
भगवान सूर्य को स्वास्थ्य और ऊर्जा का स्रोत माना जाता है। नियमित रूप से आदित्य हृदय स्तोत्रम का पाठ करने से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है। इसे पढ़ने से थकान, तनाव, और अवसाद जैसे मानसिक विकारों से राहत मिलती है। इसके साथ ही, यह स्तोत्र रोगों से मुक्ति पाने और दीर्घायु प्राप्त करने में भी सहायक है। - बाधाओं का निवारण:
आदित्य हृदय स्तोत्रम जीवन की कठिनाइयों और चुनौतियों से निपटने के लिए अद्वितीय साधन है। इसे पढ़ने से व्यक्ति को जीवन की बाधाओं, विघ्नों और संकटों से छुटकारा मिलता है। भगवान सूर्य के आशीर्वाद से व्यक्ति के जीवन में आने वाली नकारात्मकता दूर होती है और सकारात्मकता का संचार होता है। - धार्मिक और पौराणिक महत्व:
इस स्तोत्र का उल्लेख रामायण में भी मिलता है, जब ऋषि अगस्त्य भगवान राम को युद्ध के दौरान इस स्तोत्र का पाठ करने का सुझाव देते हैं। यह बताता है कि भगवान सूर्य की उपासना से अजेय बल और विजय प्राप्त की जा सकती है। - धन, यश, और समृद्धि:
भगवान सूर्य की आराधना व्यक्ति के जीवन में समृद्धि, यश, और सुख का संचार करती है। आदित्य हृदय स्तोत्रम का नियमित पाठ जीवन में सफलता और उन्नति प्राप्त करने का माध्यम है। इसे पढ़ने से भगवान सूर्य की कृपा से व्यक्ति के कार्य सफल होते हैं और जीवन में तरक्की होती है। - ज्ञान और बुद्धि का विकास:
सूर्य को ज्ञान और प्रकाश का प्रतीक माना जाता है। आदित्य हृदय स्तोत्रम का पाठ व्यक्ति की बौद्धिक क्षमता और निर्णय लेने की शक्ति को बढ़ाता है। यह ध्यान और एकाग्रता को भी सुधारता है, जिससे व्यक्ति के कार्यों में दक्षता आती है।
इस प्रकार, आदित्य हृदय स्तोत्रम न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह व्यक्ति के जीवन के हर पहलू में सुधार लाने में सहायक होता है।
FAQs – Aditya Hridaya Stotra – सूर्य आदित्य हृदय स्तोत्रम
1. श्री आदित्य सूर्य मंत्र क्या है?
श्री आदित्य सूर्य मंत्र भगवान सूर्य की उपासना के लिए एक शक्तिशाली मंत्र है। इसका उच्चारण व्यक्ति को ऊर्जा, शक्ति और मानसिक स्थिरता प्रदान करता है। यह मंत्र भगवान सूर्य को प्रसन्न करने और जीवन में सकारात्मकता लाने के उद्देश्य से किया जाता है। इस मंत्र का प्रमुख हिस्सा आदित्य हृदय स्तोत्रम है, जिसमें भगवान सूर्य की महिमा का वर्णन किया गया है।
2. आदित्य हृदय स्तोत्र कब से शुरू करें?
आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ किसी भी शुभ दिन से शुरू किया जा सकता है, लेकिन रविवार, जो कि भगवान सूर्य का दिन है, विशेष रूप से उत्तम माना जाता है। इसे सूर्योदय के समय पढ़ना सबसे प्रभावकारी माना गया है, जब सूर्य की पहली किरणें व्यक्ति पर पड़ती हैं।
3. आदित्य हृदयम का प्रतिदिन जाप करने से क्या लाभ होता है?
आदित्य हृदयम का प्रतिदिन जाप करने से व्यक्ति को मानसिक शांति, आत्मविश्वास, और साहस प्राप्त होता है। यह शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को सुधारने, रोगों से मुक्ति, और ऊर्जा में वृद्धि के लिए अत्यंत लाभकारी माना जाता है। साथ ही, यह व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक बदलाव और बाधाओं से मुक्ति दिलाता है।
4. आदित्य हृदयम का जप कितनी बार करना चाहिए?
आदित्य हृदयम का पाठ प्रतिदिन कम से कम 3 बार करने की सलाह दी जाती है। यदि समय कम हो तो 1 बार का पाठ भी किया जा सकता है। विशेष इच्छाओं की पूर्ति के लिए 11, 21 या 108 बार पाठ करना भी शुभ माना जाता है।
5. स्तोत्र का पाठ कब करें?
आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ सूर्योदय के समय करना सर्वोत्तम है, जब सूर्य की किरणें नई ऊर्जा प्रदान करती हैं। यदि संभव न हो तो इसे दिन में किसी भी समय किया जा सकता है, लेकिन सूर्योदय और सूर्यास्त के समय इसका विशेष प्रभाव माना जाता है।
6. जप करने के बाद क्या करना चाहिए?
आदित्य हृदयम का जप करने के बाद भगवान सूर्य को जल अर्पण करना चाहिए, जिसे सूर्य अर्घ्य कहा जाता है। इसके बाद मन ही मन भगवान से अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए प्रार्थना करें और सकारात्मक सोच के साथ अपने कार्यों को आगे बढ़ाएं।