Names of Hanumanji – हनुमानजी के कई नाम है और हर नाम के पीछे कुछ ना कुछ रहस्य है। हनुमानजी के लगभग 108 नाम बताए जाते हैं। वैसे प्रमुख रूप से हनुमानजी के 12 नाम बताए जाते हैं। बलशालियों में सर्वश्रेष्ठ है हनुमानजी। कलिकाल में उन्हीं की भक्ति से भक्त का उद्धार होता है। जो जपे हनुमानजी का नाम संकट कटे मिटे सब पीड़ा और पूर्ण हो उसके सारे काम। तो आओ जानते हैं कि हनुमानजी के नामों का रहस्य।
Chalisa PDF पर पढ़े: संकट मोचन हनुमान अष्टक | हनुमान चालीसा | श्री हनुमान अमृतवाणी | सुंदरकांड पाठ | बजरंग बाण | हनुमान चालीसा पढ़ने के 21 चमत्कारिक फायदे |
Know the Secret of 11 Special Names of Hanumanji
- मारुति : हनुमानजी का बचपना का यही नाम है। यह उनका असली नाम भी माना जाता है।
- अंजनी पुत्र : हनुमान की माता का नाम अंजना था। इसीलिए उन्हें अंजनी पुत्र या आंजनेय भी कहा जाता है।
- केसरीनंदन : हनुमानजी के पिता का नाम केसरी था इसीलिए उन्हें केसरीनंदन भी कहा जाता है।
- हनुमान : जब बालपन में मारुति ने सूर्य को अपने मुंह में भर लिया था तो इंद्र ने क्रोधित होकर बाल हनुमान पर अपने वज्र से वार किया। वह वज्र जाकर मारुति की हनु यानी कि ठोड़ी पर लगा। इससे उनकी ठोड़ी टूट गई इसीलिए उन्हें हनुमान कहा जाने लगा।
- पवन पुत्र : उन्हें वायु देवता का पुत्र भी माना जाता है, इसीलिए इनका नाम पवन पुत्र हुआ। उस काल में वायु को मारुत भी कहा जाता था। मारुत अर्थात वायु, इसलिए उन्हें मारुति नंदन भी कहा जाता है। वैसे उनमें पवन के वेग के समान उड़ने की शक्ति होने के कारण भी यह नाम दिया गया।
- शंकरसुवन : हनुमाजी को शंकर सुवन अर्थात उनका पुत्र भी माना जाता है क्योंकि वे रुद्रावतार थे।
- बजरंगबली : वज्र को धारण करने वाले और वज्र के समान कठोर अर्थात बलवान शरीर होने के कारण उन्हें वज्रांगबली कहा जाने लगा। अर्थात वज्र के समान अंग वाले बलशाली। लेकिन यह शब्द ब्रज और अवधि के संपर्क में आकर बजरंगबली हो गया। बोलचाल की भाषा में बना बजरंगबली भी सुंदर शब्द है।
- कपिश्रेष्ठ : हनुमानजी का जन्म कपि नामक वानर जाति में हुआ था। रामायणादि ग्रंथों में हनुमानजी और उनके सजातीय बांधव सुग्रीव अंगदादि के नाम के साथ ‘वानर, कपि, शाखामृग, प्लवंगम’ आदि विशेषण प्रयुक्त किए गए। उनकी पुच्छ, लांगूल, बाल्धी और लाम से लंकादहन इसका प्रमाण है कि वे वानर थे। रामायण में वाल्मीकिजी ने जहां उन्हें विशिष्ट पंडित, राजनीति में धुरंधर और वीर-शिरोमणि प्रकट किया है, वहीं उनको लोमश ओर पुच्छधारी भी शतश: प्रमाणों में व्यक्त किया है। अत: सिद्ध होता है कि वे जाति से वानर थे।
- वानर यूथपति : हनुमानजी को वानर यूथपति भी कहा जाता था। वानर सेना में हर झूंड का एक सेनापति होता था जिसे यूथपति कहा जाता था। अंगद, दधिमुख, मैन्द- द्विविद, नल, नील और केसरी आदि कई यूथपति थे।
- रामदूत : प्रभु श्रीराम का हर काम करने वाले दूत।
- पंचमुखी हनुमान : पातल लोक में अहिरावण का वध करने जब वे गए तो वहां पांच दीपक उन्हें पांच जगह पर पांच दिशाओं में मिले जिसे अहिरावण ने मां भवानी के लिए जलाए थे। इन पांचों दीपक को एक साथ बुझाने पर अहिरावन का वध हो जाएगा इसी कारण हनुमान जी ने पंचमुखी रूप धरा। उत्तर दिशा में वराह मुख, दक्षिण दिशा में नरसिंह मुख, पश्चिम में गरुड़ मुख, आकाश की तरफ हयग्रीव मुख एवं पूर्व दिशा में हनुमान मुख। इस रूप को धरकर उन्होंने वे पांचों दीप बुझाए तथा अहिरावण का वध कर राम,लक्ष्मण को उस से मुक्त किया। मरियल नामक दानव को मारने के लिए भी यह रूप धरा था।
|| दोहा ||
उर प्रतीति दृढ़, सरन ह्वै, पाठ करै धरि ध्यान।
बाधा सब हर, करैं सब काम सफल हनुमान॥
|| स्तुति ||
हनुमान अंजनी सूत् र्वायु पुत्रो महाबलः।
रामेष्टः फाल्गुनसखा पिङ्गाक्षोऽमित विक्रमः॥
उदधिक्रमणश्चैव सीता शोकविनाशनः।
लक्ष्मणप्राणदाता च दशग्रीवस्य दर्पहा॥
एवं द्वादश नामानि कपीन्द्रस्य महात्मनः।
सायंकाले प्रबोधे च यात्राकाले च यः पठेत्॥
तस्य सर्वभयं नास्ति रणे च विजयी भवेत्।
यहां पढ़ें हनुमानजी के 12 चमत्कारिक नाम
- हनुमान हैं (टूटी हनु).
- अंजनी सूत, (माता अंजनी के पुत्र).
- वायुपुत्र, (पवनदेव के पुत्र).
- महाबल, (एक हाथ से पहाड़ उठाने और एक छलांग में समुद्र पार करने वाले महाबली).
- रामेष्ट (राम जी के प्रिय).
- फाल्गुनसख (अर्जुन के मित्र).
- पिंगाक्ष (भूरे नेत्र वाले).
- अमितविक्रम, ( वीरता की साक्षात मूर्ति)
- उदधिक्रमण (समुद्र को लांघने वाले).
- सीताशोकविनाशन (सीताजी के शोक को नाश करने वाले).
- लक्ष्मणप्राणदाता (लक्ष्मण को संजीवनी बूटी द्वारा जीवित करने वाले).
- दशग्रीवदर्पहा (रावण के घमंड को चूर करने वाले).
हनुमान जी के 108 नाम
- भीमसेन सहायकृते – भीमसेन के सहायक (भीम के मित्र)
- कपीश्वराय – वानरों के राजा
- महाकायाय – विशाल शरीर वाले
- कपिसेनानायक – वानर सेना के नेता
- कुमार ब्रह्मचारिणे – कुंवारे और ब्रह्मचर्य पालन करने वाले
- महाबलपराक्रमी – महान बल और वीरता वाले
- रामदूताय – राम के दूत
- वानराय – वानरों में श्रेष्ठ
- केसरी सुताय – केसरी के पुत्र
- शोक निवारणाय – दुःख दूर करने वाले
- अंजनागर्भसंभूताय – अंजना के गर्भ से उत्पन्न
- विभीषणप्रियाय – विभीषण को प्रिय
- वज्रकायाय – वज्र के समान शरीर वाले
- रामभक्ताय – भगवान राम के भक्त
- लंकापुरीविदाहक – लंका को जलाने वाले
- सुग्रीव सचिवाय – सुग्रीव के मंत्री
- पिंगलाक्षाय – पीली आंखों वाले
- हरिमर्कटमर्कटाय – हरि के प्रिय मर्कट (बंदर)
- रामकथालोलाय – राम कथा में मस्त रहने वाले
- सीतान्वेणकर्त्ता – सीता की खोज करने वाले
- वज्रनखाय – वज्र के समान नख वाले
- रुद्रवीर्य – रुद्र के वीर्य से उत्पन्न
- वायुपुत्र – वायु देव के पुत्र
- रामभक्त – राम के सच्चे भक्त
- वानरेश्वर – वानरों के भगवान
- ब्रह्मचारी – ब्रह्मचर्य का पालन करने वाले
- आंजनेय – अंजना का पुत्र
- महावीर – महान वीर
- हनुमत – हनुमान नाम वाले
- मारुतात्मज – वायु देवता के पुत्र
- तत्वज्ञानप्रदाता – तत्व ज्ञान देने वाले
- सीता मुद्राप्रदाता – सीता की अंगूठी देने वाले
- अशोकवह्रिकक्षेत्रे – अशोकवाटिका में कर्तव्य निर्वाह करने वाले
- सर्वमायाविभंजन – सभी माया को दूर करने वाले
- सर्वबन्धविमोत्र – सभी बंधनों से मुक्त करने वाले
- रक्षाविध्वंसकारी – राक्षसों का विनाश करने वाले
- परविद्यापरिहारी – शत्रु की विद्या नष्ट करने वाले
- परमशौर्यविनाशय – शत्रुओं के महान शौर्य को नष्ट करने वाले
- परमंत्र निराकर्त्रे – शत्रु मंत्रों का नाश करने वाले
- परयंत्र प्रभेदकाय – शत्रु यंत्रों को नष्ट करने वाले
- सर्वग्रह निवासिने – ग्रहों का निवास करने वाले
- सर्वदु:खहराय – सभी दुःखों को दूर करने वाले
- सर्वलोकचारिणे – सभी लोकों में विचरण करने वाले
- मनोजवय – मन की गति से भी तेज
- पारिजातमूलस्थाय – पारिजात वृक्ष के नीचे वास करने वाले
- सर्वमूत्ररूपवते – समस्त स्वरूप धारण करने वाले
- सर्वतंत्ररूपिणे – समस्त तंत्रों के ज्ञाता
- सर्वयंत्रात्मकाय – समस्त यंत्रों के स्वामी
- सर्वरोगहराय – सभी रोगों का नाश करने वाले
- प्रभवे – प्रभु के रूप में
- सर्वविद्यासम्पत – सभी विद्या के स्वामी
- भविष्य चतुरानन – भविष्य को जानने वाले
- रत्नकुण्डल पाहक – रत्न के कुंडल धारण करने वाले
- चंचलद्वाल – चंचल पूंछ वाले
- गंधर्वविद्यात्त्वज्ञ – गंधर्व विद्या के ज्ञाता
- कारागृहविमोक्त्री – कारागृह से मुक्त करने वाले
- सर्वबंधमोचकाय – सभी बंधनों से मुक्त करने वाले
- सागरोत्तारकाय – समुद्र को पार करने वाले
- प्रज्ञाय – बुद्धिमान
- प्रतापवते – प्रतापी
- बालार्कसदृशनाय – बाल सूर्य के समान तेजस्वी
- दशग्रीवकुलान्तक – रावण के कुल का अंत करने वाले
- लक्ष्मण प्राणदाता – लक्ष्मण को जीवनदान देने वाले
- महाद्युतये – महान तेज वाले
- चिरंजीवने – अमर रहने वाले
- दैत्यविघातक – दैत्यों का नाश करने वाले
- अक्षहन्त्रे – अक्षय कुमार का वध करने वाले
- कालनाभाय – काल के अभ्यंतर रहने वाले
- कांचनाभाय – स्वर्णमयी देह वाले
- पंचवक्त्राय – पांच मुख वाले
- महातपसी – महान तपस्वी
- लंकिनीभंजन – लंकिनी को हराने वाले
- श्रीमते – ऐश्वर्यवान
- सिंहिकाप्राणहर्ता – सिंहिका का वध करने वाले
- लोकपूज्याय – समस्त लोकों में पूजनीय
- धीराय – धीर और साहसी
- शूराय – शूरवीर
- दैत्यकुलान्तक – दैत्य कुल का अंत करने वाले
- सुरारर्चित – देवताओं द्वारा पूजित
- महातेजस – महान तेजस्वी
- रामचूड़ामणिप्रदाय – राम को सीता की चूड़ामणि देने वाले
- कामरूपिणे – इच्छानुसार रूप धारण करने वाले
- मैनाकपूजिताय – मैनाक पर्वत द्वारा पूजित
- मार्तण्डमण्डलाय – सूर्य मंडल में विचरण करने वाले
- विनितेन्द्रिय – इंद्रियों को वश में करने वाले
- रामसुग्रीव सन्धात्रे – राम और सुग्रीव का मिलन कराने वाले
- महारावण मर्दनाय – रावण का वध करने वाले
- स्फटिकाभाय – स्फटिक के समान शुद्ध
- वागधीक्षाय – वाणी के ज्ञाता
- नवव्याकृतपंडित – व्याकरण के महान पंडित
- चतुर्बाहवे – चार भुजाओं वाले
- दीनबन्धवे – दीनों के बंधु
- महात्मने – महान आत्मा वाले
- भक्तवत्सलाय – भक्तों पर स्नेह करने वाले
- अपराजित – कभी पराजित न होने वाले
- शुचये – पवित्र
- वाग्मिने – वाणी के धनी
- दृढ़व्रताय – दृढ़ निश्चयी
- कालनेमि प्रमथनाय – कालनेमि का वध करने वाले
- दान्ताय – संयमी
- शान्ताय – शांत स्वभाव वाले
- प्रसनात्मने – प्रसन्नचित्त वाले
- शतकण्ठमदापहते – रावण के अभिमान को नष्ट करने वाले
- योगिने – योगी
- अनघ – दोषरहित
- अकाय – शरीर से परे
- तत्त्वगम्य – तत्व का ज्ञान कराने वाले
- लंकारि – लंका पर विजय प्राप्त करने वाले
हनुमान जी की जन्म कथा: एक दिव्य और प्रेरणादायक कथा
हनुमान जी का जन्म एक अद्भुत और दिव्य कथा से जुड़ा है, जो हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है। उनकी उत्पत्ति त्रेता युग में हुई, और वे शक्ति, भक्ति, और बुद्धि के प्रतीक माने जाते हैं। हनुमान जी का जन्म भगवान शिव के अवतार के रूप में हुआ था। यह कथा इस प्रकार है:
अंजना और केसरी की कथा
हनुमान जी की माता अंजना एक अप्सरा थीं, जिनका नाम पूर्व जन्म में “पुंजिकस्थला” था। उन्होंने किसी ऋषि का अपमान किया था, जिसके कारण उन्हें शाप मिला कि वे पृथ्वी पर वानरी बनेंगी। इस शाप से मुक्ति पाने के लिए अंजना ने कठोर तपस्या की। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें वरदान दिया कि उनका पुत्र शिव का अंश होगा, जो महान बलशाली और गुणवान होगा।
अंजना का विवाह केसरी से हुआ, जो वानरों के राजा थे और अपने साहस और वीरता के लिए प्रसिद्ध थे। दोनों ने संतान की प्राप्ति के लिए गहन तपस्या की। केसरी ने भी भगवान शिव की आराधना की और शिव जी ने उनके पुत्र रूप में जन्म लेने का आशीर्वाद दिया।
वायु देव का आशीर्वाद
जब अंजना ने तपस्या की, उसी समय भगवान विष्णु ने राम अवतार लेने का निर्णय किया। शिव जी ने अपने अंश को पृथ्वी पर भेजने का निश्चय किया। एक अन्य कथा के अनुसार, राजा दशरथ ने संतान प्राप्ति के लिए यज्ञ किया और यज्ञ का प्रसाद उनकी तीन रानियों को दिया गया। उस समय वायु देव (हवा के देवता) ने एक हिस्से को अंजना के पास पहुँचा दिया, जिससे भगवान शिव का अंश अंजना के गर्भ में प्रविष्ट हुआ।
इस प्रकार, वायु देव ने अंजना की सहायता की और उनके गर्भ से हनुमान जी का जन्म हुआ। इस कारण हनुमान जी को “पवनपुत्र” भी कहा जाता है।
हनुमान जी का जन्म
हनुमान जी का जन्म मंगलवार के दिन हुआ, जो चैत्र मास की पूर्णिमा को माना जाता है। उनका जन्म स्थान सुमेरु पर्वत पर स्थित था। जन्म के समय हनुमान जी का स्वरूप अद्भुत और तेजस्वी था। उनके शरीर पर बालों की सुनहरी आभा थी, उनकी आँखें पिंगल (हल्की पीली) थीं, और उनका शरीर अत्यधिक बलशाली था। उन्होंने जन्म लेते ही अपनी शक्ति का प्रदर्शन किया।
सूर्य को निगलने की घटना
हनुमान जी बाल्यकाल से ही अत्यधिक बलशाली और चंचल थे। एक दिन जब वे छोटे थे, उन्होंने उगते सूर्य को एक लाल फल समझकर उसे खाने के लिए छलांग लगाई। वे इतनी तेज गति से उड़ने लगे कि सूर्य तक पहुँच गए और उसे निगलने का प्रयास किया। इस घटना से सृष्टि में अंधकार छा गया और सभी देवता परेशान हो गए। तब इंद्र ने अपने वज्र से हनुमान जी पर प्रहार किया, जिससे वे मूर्छित हो गए और उनकी ठोड़ी (हनु) टूट गई। इसी कारण उनका नाम “हनुमान” पड़ा।
वायु देव अपने पुत्र को इस प्रकार घायल देख अत्यंत क्रोधित हो गए और उन्होंने वायु का प्रवाह बंद कर दिया, जिससे समस्त जीव संकट में पड़ गए। तब सभी देवताओं ने मिलकर वायु देव को शांत किया और हनुमान जी को अनेक वरदान दिए। ब्रह्मा जी ने उन्हें अमरत्व का वरदान दिया, विष्णु जी ने अपार बल और बुद्धि दी, और इंद्र ने उन्हें वज्र से भी कठोर शरीर का आशीर्वाद दिया।
हनुमानजी के गुण
हनुमान जी अपने बाल्यकाल से ही अद्वितीय शक्ति, बुद्धि और भक्ति के धनी थे। वे भगवान राम के परम भक्त बने और उनके जीवन का उद्देश्य राम सेवा और धर्म की स्थापना में योगदान देना था। उनकी निस्वार्थ भक्ति और सेवाभाव ने उन्हें हिंदू धर्म में एक आदर्श चरित्र बना दिया।
इस प्रकार, हनुमानजी का जन्म एक दिव्य घटना थी, जो भगवान शिव, वायु देव और अंजना की तपस्या और आशीर्वाद से संभव हुआ। वे आज भी लाखों भक्तों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं और भगवान राम के प्रति उनकी भक्ति अद्वितीय मानी जाती है।